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अल्जाइमर के इलाज में मददगार हो सकती है नई तकनीक गामा एंट्रेनमेंट
Bhumika Sahu
31 Jan 2022 5:15 AM GMT
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दुनियाभर के विकसित देशों में अल्जाइमर के मरीजों की संख्या बढ़ी है। ऐसे में दुनियाभर के वैज्ञानिक इस बीमारी का इलाज खोजने में लगे हैं। इसी बीच साउथ कोरिया के ग्वांगजू इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (जीआईएसटी) के वैज्ञानिकों की ओर से किए गए एक शोध में अल्जाइमर के इलाज की नई उम्मीद जगी है। यह अध्ययन ट्रासंलेशन न्यूरोडिजेनरेशन में प्रकाशित हुआ है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दुनियाभर के विकसित देशों में अल्जाइमर के मरीजों की संख्या बढ़ी है। ऐसे में दुनियाभर के वैज्ञानिक इस बीमारी का इलाज खोजने में लगे हैं। इसी बीच साउथ कोरिया के ग्वांगजू इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (जीआईएसटी) के वैज्ञानिकों की ओर से किए गए एक शोध में अल्जाइमर के इलाज की नई उम्मीद जगी है। यह अध्ययन ट्रासंलेशन न्यूरोडिजेनरेशन में प्रकाशित हुआ है।
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने यह दर्शाने में कामयाब हुए हैं कि अल्जाइमर से निपटने के लिए अल्ट्रासाउंड आधारित गामा एंट्रेनमेंट मददगार हो सकता है। इस तकनीक में किसी व्यक्ति के ब्रेन वेव्स को 30 हर्ट्ज से ज्यादा किया जाता है, जिसे गामा वेव्स कहते हैं। ये काम बाहरी दोलन आवृत्ति से समेकित किया जा सकता है। यह प्रक्रिया स्वाभाविक रूप से किसी कारक को दोहराए जाने वाले उद्दीपन जैसे साउंड, लाइट या यांत्रिक कंपन के जरिए की जा सकती है।
चूहों पर किया अध्ययन
शोधकर्ताओं द्वारा चूहों पर किए गए अध्ययन में पाया गया है कि गामा एंट्रेनमेंट बी-एमिलाइड की परत जमने और टाउ प्रोटीन को जमा होने से रोकने में कारगर साबित होता है। ये दोनों ही अल्जाइमर के प्रतीक माने जाते हैं। शोधकर्ताओं ने बताया कि अल्ट्रासाउंड के 40 हर्ट्ज की मदद से गामा एंट्रेनमेंट को महसूस किया जा सकता है। इस विधि की खासियत उसके इस्तेमाल का तरीका है।
अल्ट्रासाउंड आधारित नया तरीका सुविधाजनक
जीआईएसटी में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग के असिस्टेंट प्रोफेसर और अध्ययन के सह लेखक जेई ग्वान किम का कहना है कि अन्य गामा एंट्रेनमेंट तरीकों (जो साउंड या टिमटिमाती प्रकाश पर निर्भर करते हैं) की तुलना में अल्ट्रासाउंड बिना किसी जख्म और संवेदी तंत्र को नुकसान पहुंचाए ही दिमाग में प्रवेश कर सकता है। इसके लिए अल्ट्रासाउंड आधारित यह तरीका ज्यादा सुविधाजनक है।
ऐसे किया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने अध्ययन के दौरान पाया कि चूहे को दो सप्ताह तक रोजाना दो घंटे अल्ट्रासाउंड पल्स के सामने रखने से दिमाग में बी-एमिलाइड की परत और टाउ प्रोटीन की मात्रा में कमी आई। इसके अलावा इलेक्ट्रोइन्फैलोग्राफिक विश्लेषण में यह भी पाया गया कि उन चूहों के दिमाग के कामकाज में सुधार हुआ। इसका मतलब यह है कि तंत्रिकाओं की कनेक्टिविटी को भी फायदा हुआ। इतना ही नहीं, इस प्रक्रिया में किसी प्रकार माइक्रोब्लीडिंग (ब्रेन हेमरेज) भी नहीं हुआ।
अल्जाइमर के इलाज के लिए नया रास्ता खुला
जेई ग्वान किम का कहना है कि हमारे अध्ययन से अल्जाइमर के इलाज के लिए नया रास्ता खुल सकता है। इसका कोई दुष्प्रभाव भी नहीं है। साथ ही अल्जाइमर से जुड़ी अन्य स्थितियों से भी बचाव हो सकता है। उन्होंने बताया कि हमारे इस एप्रोच से जहां बीमारी के बढ़ने की गति को कम करके मरीज के जीवन स्तर में सुधार लाया जा सकता है। वहीं, पार्किंसंस जैसी तंत्रिकाओं के क्षय वाली अन्य बीमारियों का भी इलाज किया जा सकता है।
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