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लाइफस्टाइल : दुनियाभर में लगभग चार फीसदी बच्चे फूड एलर्जी का शिकार हैं। वैसे बच्चों में फूड एलर्जी होना आम है। स्कूल में टिफिन शेयरिंग से उनमें फूड एलर्जी का खतरा होता है। एक बच्चे का खाना दूसरे बच्चे को बीमार कर सकता है। ब्रिटेन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में ज्यादातर बच्चे मूंगफली से एलर्जिक होते हैं, तो वहीं एशिया में गेहूं, अंडे और दूध से बच्चों को एलर्जी का खतरा ज्यादा होता है। शोधकर्ताओं ने पहली बार बच्चों को फूड एलर्जी से बचाने के लिए एक गाइडलाइन तैयार की है। उनका मानना है कि इससे बच्चों में एलर्जी पैदा करने वाले खाद्य पदार्थों के प्रति सहनशक्ति विकसित करने में मदद मिल सकती है।
थेरेपी जो फूड एलर्जी दूर करने में हो सकती है मददगार
इस थेरेपी को ओरल इम्यूनोथेरेपी कहा जाता है। इसका पहली बार 1908 में इस्तेमाल किया गया था। तब इसके जरिए एक बच्चे की अंडे से एलर्जी ठीक की गई थी। साइंस डेली की रिपोर्ट के अनुसार कनाडा की मैकमास्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि ओरल इम्यूनोथेरेपी के दौरान बच्चों को एलर्जी पैदा करने वाले खाद्य पदार्थ बहुत ही थोड़ी मात्रा में दिए जाते हैं और फिर धीरे-धीरे उनकी मात्रा बढ़ाई जाती है। जिससे बच्चों में उन चीज़ों के प्रति सहनशक्ति बढ़ सके। इसके पॉजिटिव रिजल्ट्स देखने को मिले। अब तक डॉक्टरों के पास साक्ष्य-आधारित गाइडलाइन सीमित थी। नई गाइडलाइन आने से उन्हें काफी मदद मिलेगी। वे फूड एलर्जी से जूझ रहे बच्चों की ओरल इम्यूनोथेरेपी बेहतर तरीके से कर पाएंगे।
मैकमास्टर यूनिवर्सिटी में बाल रोग विशेषज्ञ और शोध के मुख्य लेखक डगलस मैक का कहना है कि, 'पहले कभी इस प्रक्रिया का मानकीकरण नहीं किया गया। हमें ओरल इम्यूनोथेरेपी के बारे में मार्गदर्शन की बहुत जरूरत है।'
फूड एलर्जी को लेकर नई गाइडलाइन्स
1. परिवारों को फूड एलर्जी, एनाफिलेक्सिस (गंभीर एलर्जी) और इम्यूनोथेरेपी के बारे में जानना चाहिए। उन्हें यह भी सीखना चाहिए कि बच्चों को सही तरीके से खाना कैसे खिलाएं। किन चीज़ों का ध्यान रखना है।
2. बच्चों को धीरे-धीरे एलर्जी कर सकने वाले खाद्य पदार्थों के संपर्क में लाना चाहिए।
3. ऐसे परिवार, जिनमें पहले भी फूड एलर्जी की समस्या रही है, उन्हें बाल रोग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही बच्चे की ओरल इम्यूनोथेरेपी करानी चाहिए।
4. ध्यान रखें कि एलर्जी वाले खाद्य पदार्थ से बच्चे का संपर्क खतरनाक स्तर पर न पहुंचे। हां, इस दौरान बच्चों में पेट दर्द और उल्टी जैसे लक्षण दिखना आम बात है।
वैसे ये गाइडलाइन्स डॉक्टर्स के लिए बनाए गए हैं। ये सीधे तौर पर पेरेंट्स और फैमिली के लिए नहीं हैं। इसलिए यह जरूरी है कि माता-पिता डॉक्टर्स का सर्पोट करें और फूड एलर्जी को सुरक्षित तरीके से खत्म करने में अपने बच्चों की मदद करें।
कम कीटाणु से इम्यून सिस्टम पर असर
शोधकर्ताओं का कहना है कि जब बच्चों के आसपास कम कीटाणु होते हैं, तो उनका इम्यून सिस्टम मूंगफली और दूध जैसे खाद्य पदार्थों के खिलाफ काम करने लगता है। पिछले दो दशकों से फूड एलर्जी के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। स्वास्थ्य वैज्ञानिकों का मानना है कि यह बढ़ती साफ-सफाई और स्वच्छता की वजह से हो रहा है। वैसे इसमें विटामिन डी की कमी भी एक बड़ी वजह है।
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Apurva Srivastav
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