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टेलीविजन, मोबाइल फोन, कंप्यूटर स्क्रीन और अन्य डिजिटल उपकरणों के ज्यादा उपयोग से बच्चों की आंखों की रोशनी भी गंभीर रूप से प्रभावित होती है। महामारी की वजह से बच्चे स्क्रीन के सामने ज्यादा समय बिता रहे हैं जिससे उनकी आंखों पर नकारात्मक असर पड़ा है। इसके अलावा वायु प्रदूषण के कारण आंखों को बहुत ज्यादा रगड़ने से दृष्टि धुंधली होने के कई केस सामने आए हैं। जब आर्टिफिशियल प्रकाश की बात आती है, तो भारतीय माता-पिता का कहना है कि उनके बच्चे कम से कम 14 घंटे घर के अंदर बिताते हैं, और अधिकांश नेत्र विशेषज्ञों का मानना है कि प्रकाश का बच्चे की ध्यान केंद्रित करने की क्षमता पर सीधा असर पड़ता है इसलिए घर के अंदर रोशनी बेहतर होनी चाहिए।
डॉ ऋषि राज बोरह, (कंट्री डॉयरेक्टर, आर्बिस इंडिया) के अनुसार अक्सर ऐसा देखा जाता है कि बच्चों की आंखो की जांच को ज्यादा वरीयता नही दी जाती है। पिछले दो साल हम सभी के लिए मुश्किलों से भरे रहे हैं। इस दौरान बच्चों को भी कई सारी परेशानियों से गुजरना पड़ा है। उन्हे घंटो अपने फोन, टैबलेट और लैपटॉप पर पढ़ाई के लिए समय बिताना पड़ा है। स्कूल की तैयारियों में आंखो की जांच को भी शामिल करना चाहिए क्योंकि बच्चें ऑनलाइन पढ़ने के बाद अब स्कूलों में आ रहे हैं इसलिए उनकी आंखो की जांच बहुत जरूरी हो जाती है।
आंखो की जांच क्यों जरूरी है?
बच्चों की आंखो की जांच इसलिए भी ज़रूरी हो जाती है कि ताकि बच्चे की आंख स्वस्थ तथा सुरक्षित रहे और उन्हे देखने में कोई परेशानी न हो। उनका जीवन बिना किसी बाधा के आगे बढ़ता रहे इसके लिए जरूरी है कि आंखो की जांच कराएं। एक्सपर्ट के अनुसार, लगभग 25% स्कूली बच्चों को दृष्टि संबंधी समस्याएं होती हैं, इस वजह से उनकी पढ़ाई लिखाई बाधित होती है। इसके अलावा मायोपिया और इसके बढ़ने का खतरा स्कूल के दौरान बना रहता है। अगर किसी बच्चे को पढ़ने में परेशानी होती है तो उसकी आंखो की जांच तुरन्त करानी चाहिए और ज़रूरत पड़ने पर आंखो का चश्मा देना चाहिए।
एक्सपर्ट के मुताबिक़ खराब देखने की क्षमता से पीड़ित बच्चे पढ़ाई लिखाई में कमज़ोर होते हैं और उनके स्कूल से अनुपस्थित रहने की संभावना ज्यादा होती है। इसलिए यह महत्वपूर्ण हो जाता है कि माता-पिता अपने घरों मे प्रकाश बेहतर रखें । प्रकाश ऐसा रहना चाहिए जो चकाचौंध या झिलमिलाहट को कम करता हो। इस तरह के प्रकाश आंखों की परेशानी और सिरदर्द का कारण बन सकते हैं।
आंखो में होने वाली समस्याएं-
एक सर्वे के मुताबिक़ आंखो में एलर्जी का होना, नज़र कमज़ोर होना, मायोपिया (निकट दृष्टि दोष) 12 साल के कम उम्र के बच्चों में होने वाली आम समस्याएं हैं। केवल 50 प्रतिशत माता पिता अपने बच्चों की आंखो की जांच कराते हैं। सर्वे में पता चला है कि जहां 68 प्रतिशत भारतीय माता-पिता मानते हैं कि उनके बच्चों की नज़र उनके लिए महत्वपूर्ण है, वहीं इनमे से केवल 46 प्रतिशत ही नियमित रूप से अपने बच्चों की आंखों की जांच करवाते हैं। इस वजह से 12 साल से कम उम्र के बच्चों में मायोपिया के केस की संख्या में हाल में खतरनाक रूप से वृद्धि हुई है। भारत में 23 से 30 प्रतिशत बच्चे मायोपिया से पीड़ित हैं, खासकर जो बच्चे शहरों में रहते हैं और बाहर धूप में कम समय बिताते हैं वे इन समस्याओं से ज्यादा पीड़ित होते हैं।
पहली बार कब करवाएं बच्चे की आंखो की जांच-
जब बच्चा छह महीने का हो जाए तब आंखों की जांच शुरू कर देनी चाहिए। तीन साल की उम्र में बच्चों को पहली कक्षा में एडमिशन कराने से पहले एक बार और आंख की जांच करनी चाहिए। पांच से छह साल की उम्र के बीच उनकी एक और बार आंख की जांच होनी चाहिए। अगर कुछ समस्या का पता चलता है तो स्कूली आयु वर्ग के बच्चों के लिए हर दूसरे वर्ष आंखों की जांच की जानी चाहिए। बच्चे के ऑप्टोमेट्रिस्ट या नेत्र रोग विशेषज्ञ की सलाह पर साल में एक बार उनकी आंखो की जांच करानी चाहिए। इन बच्चों को चश्मे या कॉन्टैक्ट लेंस पहनने की ज़रूरत हो सकती है।
माता पिता ध्यान रखें ये टिप्स-
संकेतो को पढ़ना-
माता-पिता को न केवल अपने बच्चों के सम्पूर्ण स्वास्थ्य के बारे में, बल्कि उनकी आंखों के बारे में भी सचेत रहना चाहिए। उन्हें नज़र से सम्बंधित समस्याओं पर विशेष रूप से ध्यान देना चाहिए। एक आंख को ढंक कर चीजों को देखना, चेहरे के बहुत करीब करके पढ़ना, कम ध्यान देना, और सिरदर्द या बेचैनी होना आदि ऐसे संकेत हैं जो बताते हैं कि बच्चे को नज़र से सम्बंधित समस्या है।
डिजिटल उपकरणों का कैसे कर रहे हैं इस्तेमाल बच्चे-
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के लंबे समय तक उपयोग के कारण डिजिटल आई स्ट्रेस हो सकता है। आंखों में जलन या खुजली, सिरदर्द, धुंधला दिखना और थकावट होना आदि सभी आंखो की समास्याओं के लक्षण हैं ।
20 मिनट का ब्रेक लेने के लिए कहें-
फोन, टैबलेट और लैपटॉप की चकाचौंध से बचने के लिए डॉक्टर 20 मिनट का ब्रेक लेने और कंप्यूटर स्क्रीन को एडजस्ट करने की सलाह देते हैं।
सही आई गियर पहनें-
सुनिश्चित करें कि आपके बच्चे खेल खेलते समय प्रोटेक्टिव आईवियर पहनते हैं और धूप से बचने के लिए धूप का चश्मा पहनते हैं।