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रहस्य रोमांच: जब स्त्रियां पशु-मेलों में नीलाम होती थीं

Rani Sahu
11 Sep 2022 6:16 PM GMT
रहस्य रोमांच: जब स्त्रियां पशु-मेलों में नीलाम होती थीं
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पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को पशु-मेलों में खरीदा और बेचा तो जाता ही था लेकिन यह भी पूर्णत: सत्य है कि उस जमाने में पत्नियों को क्रूर पतियों के हाथों बेरहमी से पीटा भी जाता था और पत्नियों को पीटने वालों के लिए क्लब तक बने हुए थे। पत्नियों को पीटने के लिए बाकायदा कोड़े खरीदे जाते थे और इस निर्मम कार्य के शौकीन लोगों के लिए अखबारों में विज्ञापन भी छपते थे।
अठारहवीं शताब्दी के अंत में यह प्रथा अचानक ही समाप्त हो गई लेकिन विश्वसनीय सूत्रों से पता चला है कि कुछ जन जातियों में आज भी पत्नियों को पीटने का रिवाज है। फिजी द्वीप समूह में लेकेम्बा, मंबुआ और तेनो कबीलों में हर परिवार में पत्नी को पीटने के लिए अलग-अलग तरह के डंडे रखे जाते हैं। किस घर में कितना सुंदर डंडा है, यह उस परिवार का स्तर बताता है। यही प्रथा अफ्रीका के मैदीन्गो जन जाति में भी मिलती है।
आपने जंगली लोगों से संबंधित ऐसे कई कार्टून देखे होंगे जिन में पुरूष, स्त्रियों को घायल कर के धरती पर गिरा देते हैं और बालों से पकड़ कर खींचते हुए अपनी गुफाओं में ले जाते हैं तथा उन्हें जबरन अपनी पत्नी बना लेते हैं। संभव है आप ऐसे कार्टूनों की वास्तविकता को न समझे हों लेकिन सत्य तो यह है कि ब्रिटेन में सैम्सन काल से पूर्व लोगों में ऐसे रीतिरिवाज आम प्रचलित थे।
उस समय स्त्रियों को बलपूर्वक अधिकार में लिया जाता था अथवा खरीदा जाता था। छठी शताब्दी में कैंट के राजा एथलवर्ट ने एक कानून बनाया जिसमें कहा गया था कि भविष्य में किसी स्त्री को बलपूर्वक ले जाने वाले पुरूष को स्त्री के बाप को पचास शिलिंग अदा करने होंगे। यदि कोई पुरूष इस शर्त को नजर अंदाज करके स्त्री को ले जाता है तो स्त्री के बाप को कानून की सहायता से अपनी बेटी का मूल्य लेने का पूरा अधिकार है।
इस कानून के अंतर्गत एक बात और भी कही गई थी कि यदि कोई पुरूष किसी विवाहित स्त्री को भगा ले जाना चाहता है तो स्त्री को भगाने से पूर्व उसके पति को अपने खर्च से एक स्त्री लाकर देनी होगी अन्यथा वह उस स्त्री को भगा ले जाने का अधिकारी नहीं होगा।
पढऩे या सुनने में शायद आपको बड़ा अजीब लग रहा होगा लेकिन यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है कि उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य तक इंग्लैंड में स्त्रियों के साथ अत्यंत बुरा, शर्मनाक एवं अमानवीय व्यवहार किया जाता था। उस जमाने में कोई भी पति अपनी पत्नी को बेच सकता था लेकिन शर्त यह थी कि वह अपनी पत्नी के गले में पट्टा बांध कर खरीदार को सौंपे। प्राय: पति ही अपनी पत्नियों को बेचने के लिए पशुओं की मंडियों और मेलों में ले जाते थे और उनकी नीलामी कर देते थे।
पुरूषों द्वारा अपनी यौन-तुष्टि या नाम-मात्र धन के एवज में बिना किसी प्रकार की शर्म, संकोच अथवा हिचक के स्त्रियों की खरीद-फरोख्त की जाती थी। पत्नी से दिल भर जाने या किसी बात पर क्रुद्ध होकर पति अपनी पत्नी के गले में रस्सी बांध कर उसे बाजार में बेचने के लिए ले जाता था। जो व्यक्ति सब से ज्यादा बोली देता था, उसी का स्त्री पर अधिकार हो जाता था।
प्राय: पति ही पत्नी का मूल्य निर्धारित करता था। खरीदारों में अधिकतर बूढ़े, विधुर या अपाहिज कुंवारे ही होते थे। सुन्दर स्त्रियों का मूल्य समाचार-पत्रों में प्रकाशित होता था। यद्यपि स्त्री को बेचने का औसत मूल्य दस शिलिंग था, तथापि कई मौकों पर उन्हें केवल छ:-छ: पैंस में ही बेच डाला जाता था।
उन्हीं दिनों लंदन के एक समाचार-पत्र में एक लज्जाजनक विज्ञापन प्रकाशित हुआ था जो एक किसान की ओर से जारी किया गया था जिसका घोड़ा गुम हो गया था। उसने घोड़ा लौटाने वाले को पांच गिन्नी इनाम देने की घोषणा की थी। इस विज्ञापन के साथ ही उसने यह घोषणा भी की थी कि जो व्यक्ति उसकी भागी हुई पत्नी को ढूंढ लाएगा, उसे तीन गिन्नी इनाम में दी जाएंगी।
एक अन्य जानकारी के अनुसार, एक व्यक्ति ने केवल आठ शिलिंग में अपनी कमसिन पत्नी को ईंटें बनाने वाले एक अधेड़ मजदूर के हाथों बेच डाला और अच्छी कीमत अदा करने के लिए उसने न केवल उस मजदूर का शुक्रि या ही अदा किया बल्कि उसे शुभकामनाएं भी दी।
इसैक्स के एक व्यक्ति ने किसी बात पर क्रुद्ध होकर अपनी पत्नी को केवल आधे क्र ाउन में ही बेच डाला। उसने अपनी पत्नी के गले में रस्सा डाल कर उसे बाजार में तीन चक्कर लगाने के लिए मजबूर किया। बाद में उसने उस राशि से एक संगीत कार्यक्र म सुना और हाथ झाड़ता हुआ घर चला गया।
लंदन के एक बढ़ई ने तो हद ही कर दी। उसने विवाह के केवल तीन सप्ताह के बाद ही अपनी नव-विवाहिता को बेच डाला। एक अन्य केस मेें एक गधा हांकने वाले ने अपने एक मित्र को तेरह शिलिंग के बदले में अपनी पत्नी सौंप दी और फिर तीनों ने एक सार्वजनिक जगह पर इकठे बैठ कर बीयर पी।
ऐन मैनलराड नामक एक लेखक ने अपनी एक पुस्तक में 1832 में एक पति द्वारा अपनी पत्नी को बेचे जाने का वर्णन किया था। उसने लिखा था कि जोजफ टामसन नामक एक किसान अपनी पत्नी कार्लीस्ल को बेचने के लिए मार्किट में ले गया। अपनी खूबसूरत पत्नी के गले में रस्सी डाल कर वह एक कुर्सी पर खड़ा हो गया और ऊंचे स्वर में बोला, 'भद्र पुरूषो, मैं अपनी पत्नी को बेचना चाहता हूं। यदि कोई सज्जन इसे खरीदने का इच्छुक हो तो आगे आकर बोली लगा सकता है।'
अपनी पत्नी की ओर संकेत करके उसने आगे कहा, 'इसकी और मेरी यह इच्छा है कि हम सदैव के लिए एक-दूसरे से अलग हो जाएं। मैंने इसे अपने आराम और घर की देख-भाल के लिए अपनी पत्नी बनाया था लेकिन इसने मुझे सदा पीड़ा ही दी और घरेलू वातावरण के लिए भी यह बिल्कुल अभिशाप सिद्ध हुई।
उसने अपनी पत्नी की कीमत पचास शिलिंग लगाई लेकिन एक घंटे बाद ही उसने बीस शिलिंग और एक शिकारी कुत्ते के बदले में हैनरी मूवर्स नामक एक व्यक्ति के हाथों में बेच दिया। फिर वह दोनों शांतिपूर्वक एक दूसरे से अलग हो गए।
मध्यकालीन युग में स्त्री का स्थान जूती के समान था। एक रिवाज भी इस बात का प्रतीक था और वह यह कि विवाह में दुल्हन का बाप दूल्हे को एक जूती दिया करता था। दूल्हा, दुल्हन के सिर पर जूती मारता था जिसका अर्थ यह होता था कि आज से तुम्हारा स्वामी यह पुरूष है। आजकल हनीमून कारों के साथ पुराने जूते बांधना भी इसी रिवाज का बचा-खुचा रूप है।
मध्य युग से एक और रिवाज भी चला आ रहा है और वह यह कि विवाह के समय दुल्हन केवल सफेद पोशाक पहनती है जिसका अर्थ होता है कि विवाह से पूर्व दुल्हन ने जो भी कर्ज आदि लिया हो, उसके लिए पति उत्तरदायी नहीं है।
Rani Sahu

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