लाइफ स्टाइल

दूधिया कच्छ की सैर

Kajal Dubey
3 May 2023 6:57 PM GMT
दूधिया कच्छ की सैर
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कच्छ अद्भुत नज़ारों से भरपूर है. इस विस्तृत, दूधिया मरुस्थल में जहां एक ओर आप मांसाहारी गीदड़ों को गुड़-चावल खाते देखेंगे, वहीं आपको 200 वर्षों से मानवरहित एक डरावने और भूतहे गांव से भी रूबरू होने का मौक़ा मिलेगा. आप उस बंदरगाह को भी निहार सकेंगे, जहां सदियों से जहाज़ बनाने का काम किया जाता है. यहां हम आपको इस विस्तृत दूधिया मरुभूमि की कुछ अनूठी विशेषताएं बता रहे हैं.
कई बार असाधारण, प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर नयनाभिराम नज़ारे हमारे आसपास ही आबाद होते हैं, पर हमारा मन दूर-दराज़ के मोहक ठिकानों के सपने संजोते रहता है. मैं एक बात स्वीकारना चाहती हूं, गुजरात के कच्छ का रण के बारे में जानने से पहले मैंने दुनिया के सबसे बड़े नमक के मैदान के रूप में बोलिविया के अद्भुत सालार दे उयूनी के बारे में सुन रखा था. लेकिन जब मैंने रण के श्वेत विस्तार के चित्रों को देखा, तब मैं ख़ुद को वहां ले जाने से रोक नहीं पाई. मैंने अपना कैमरा लिया, बैग पैक किया और मानसून ख़त्म होते ही सीधे भुज के लिए निकल गई. भुज को कच्छ की राजधानी कहा जाता है. यहां आसानी से पहुंचा जा सकता है. पूरे क्षेत्र का भ्रमण करने के लिए आप इसे अपना बेस बना सकते हैं.
अमिताभ बच्चन, जो पिछले पांच वर्षों से गुजरात पर्यटन विभाग के ब्रैंड ऐम्बैसेडर हैं, द्वारा अपने ख़ास लहज़े में कही जानेवाली टैगलाइन ‘कच्छ नहीं देखा, तो कुछ नहीं देखा’ सैलानियों को इस राज्य की ओर खींच लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है. यदि आप कच्छ के रण में घूमने की योजना बना रहे हैं तो मैं आपको ठंडी के मौसम में वहां जाने की सलाह दूंगी. अक्टूबर तक कच्छ के रण सूख जाते हैं, वे धीरे-धीरे दलदली भूमि से रेगिस्तान में रूपांतरित हो जाते हैं. इसके साथ ही रणोत्सव यानी तीन महीने चलनेवाला महोत्सव, जिसे कच्छ फ़ेस्टिवल भी कहा जाता है, पर्यटकों को क्षेत्र की खांटी संस्कृति से परिचित कराने का काम बख़ूबी करता है. इस महोत्सव की सबसे ख़ास बात यह है कि आपको रण रिसॉर्ट के मुख्यद्वार के पास धोर्डो गांव में लग्ज़ीरियस तंबुओं में ठहरने का अवसर मिलता है. यहां अलग-अलग प्रकार की खानेपीने की चीज़ों और हस्तकला से संबंधित स्टॉल्स की कतार देखने मिलेगी. इस बार यह महोत्सव 9 नवंबर 2015 से मनाया जा रहा है, जो 23 फ़रवरी 2016 तक चलेगा. आप अपनी यात्रा की योजना कुछ इस तरह बनाएं कि आपको पूर्णिमा की रात यहां ठहरने का मौक़ा मिले. ठंडी के मौसम में, पूर्णिमा की रात में कच्छ के दूधिया विस्तार की झलक बेजोड़ होती है.
काली पहाड़ी की चढ़ाई
कालो डूंगर यानी काली पहाड़ी भुज से 90 किमी की दूरी पर है. यह कच्छ की सबसे ऊंची पहाड़ी चोटी है. कालो डूंगर की यात्रा उतनी ही दिलचस्प है, जितना मज़ेदार इसकी चोटी पर पहुंचना. भुज से 20 किमी आगे बढ़ने पर आपको रास्ते में एक नीली तख्ती दिखेगी, जो आपको सूचित करेगी कि आप कर्क रेखा पर हैं. जैसे-जैसे आप आगे बढ़ेंगे, भूदृश्यों को हरे रंग से भूरे और फिर काले रंग में परिवर्तित होता देखेंगे. इन्हीं काले पत्थरों के चलते इसका नाम कालो डूंगर रखा गया है. तैयार रहिए आगे एक और साइनबोर्ड मिलेगा, जिसपर लिखा होगा ‘मैग्नेटिक फ़ील्ड ज़ोन’. यहां इंजिन बंद होने के बावजूद वाहन बड़ी तेज़ी से नीचे आते हैं. यही कारण है कि भू-वैज्ञानिकों की इस इलाक़े में रुचि बढ़ गई है. वे अभी तक इसका परीक्षण कर रहे हैं-ऐसा हमारे ड्राइवर ने हमें किसी बड़े रहस्य का उद्घाटन करनेवाले स्वर में बताया.
कालो डूंगर की चोटी पर आसपास का नज़ारा देखने के लिए एक डेक बनाया गया है. इस डेक से आप इस श्वेत मरुस्थल का विहंगम दृश्य देख सकते हैं. रण का सफ़ेद विस्तार वहां से एक दूधिया नदी की तरह प्रतीत होता है. वहां से आपको एक ब्रिज भी दिखेगा, जो इंडिया ब्रिज के नाम से जाना जाता है. ब्रिज के उस पार पाकिस्तान है. हम आपको दोपहर के समय कालो डूंगर के दत्तात्रेय मंदिर में जाने की सलाह देंगे. यदि आपकी क़िस्मत अच्छी हुई तो आपको यहां एक अत्यंत असाधारण नज़ारा देखने मिल सकता है. भूखे गीदड़ों का समूह मंदिर के पास बने एक ऊंचे चबूतरे पर इकट्ठा होता है. मंदिर के पुजारी उन गीदड़ों को चावल, दाल और गुड़ से बना हुआ प्रसाद खिलाते हैं. हमें बताया गया कि भूखे गीदड़ों को भोजन कराने की यह प्रथा पिछले 400 वर्षों से चली आ रही है.
भूतिया शहर आगे है!
भुज से लगभग 170 किमी दूर है लखपत नगर, जहां केवल सड़क मार्ग द्वारा ही पहुंचा जा सकता है. यह भारत-पाक सीमा से लगा भारत के पश्चिमी छोर पर सबसे आख़िरी शहर है. यह कोरी खाड़ी और कच्छ के रण को जोड़ता है. इसका नाम लखपत यहां की समृद्घि के चलते पड़ा था. दरअस्ल यहां रोज़ाना एक लाख कौड़ी (प्राचीन कच्छ की मुद्रा) का कारोबार होता था. व्यस्ततम बंदरगाह होने के अपने रुतबे को लखपत ने वर्ष 1819 में तब खो दिया, जब एक भूकंप के चलते सिंधु नदी ने अपना मार्ग बदल लिया. नदी शहर से दूर बहने लगी. फ़िलहाल यह एक डरावना और इंसानी आबादी विहीन शहर है. जहां की सड़कें सूनी हैं और घर टूटे-फूटे. सबकुछ 7 किमी लंबी क़िलेबंदी से घिरा हुआ है. क़िले की दीवारें 18वीं शताब्दी में बनाई गई थीं.
यहां आप लखपत गुरुद्वारा में ठहर सकते हैं, जो एक धनी व्यापारी के घर में बना हुआ है. सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक 16वीं सदी में मक्का जाते समय इसी जगह ठहरे थे. यह एक सादगी से भरी और सफ़ेद रंग की संरचना है. इसके कमरों की अच्छे से देखभाल की गई है. बेहतर संरक्षण के लिए इस गुरुद्वारे को यूनेस्को द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है. यहां के कर्मचारी आपको लंगर का सादा और स्वादिष्ट भोजन खाने का आग्रह करेंगे. गुरुद्वारे में रहना-खाना मुफ़्त है. यदि आप अपनी इच्छा से कुछ दान करना चाहें तो सहर्ष स्वीकारा जाता है.
समंदर के पास
भुज से केवल एक घंटे की दूरी पर है मांडवी. यह बंदरगाह शहर अपने काशीविश्वनाथ बीच और विजय विलास महल के लिए जाना जाता है. विजय विलास महल में फ़िल्म लगान और हम दिल दे चुके सनम की शूटिंग हुई थी, ऐसा आपको वहां के स्थानीय निवासी गर्व से बताएंगे. यह महल आपको किसी पुरानी अंग्रेज़ी कोठी की याद दिलाएगा. महल की मुख्य शोभा बढ़ाने में यहां के फव्वारे, अच्छी तरह से रखरखाव किए गए बगीचे और पैदल चलने के लिए विशेष रूप से बनाई गई पगडंडियों का बड़ा योगदान है. मांडवी सदियों से जहाज़ बनाने के लिए मशहूर है. यहां आकर आप देख सकते हैं कि लकड़ी के विशालकाय जहाज़ कैसे बनाए जाते हैं, वो भी हाथों से. यहां का समंदर किनारा सीगल्स को आकर्षित करता है. ये सीगल्स इंसानों को देखने के इतने आदी हो चुके हैं कि वे आपके साथ चहलक़दमी करने में बिल्कुल भी हिचक महसूस नहीं करते.
भुज का बुलावा
भुज में आप बस यूं ही चहलक़दमी करते हुए निकल जाइए. आईना महल, प्राग महल का बेल टॉवर, कच्छ म्यूज़ियम वो जगहें हैं, जहां आप समय बिता सकते हैं. या फिर आप सबकुछ भूलकर हमीरसर झील के किनारे बैठ चिडि़यों को देखते रहने का आनंद लें. बड़े दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि वर्ष 2001 के गुजरात भूकंप ने शहर के एक बड़े हिस्से को नष्ट कर दिया था. उसके डेढ़ दशक बाद भी ऐसा लग रहा है, मानो भुज अभी तक अपने बिखरे टुकड़ों को समेटने की कोशिश कर रहा है. यहां के लोगों की कमाई का सबसे बड़ा ज़रिया पर्यटन से होनेवाली कमाई है. यह भी इस इलाक़े के भ्रमण पर आने का एक बड़ा कारण है.
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