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यासीन मलिक को उम्रकैद के मायने

Subhi
27 May 2022 2:52 AM GMT
यासीन मलिक को उम्रकैद के मायने
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कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को एनआईए कोर्ट ने टेरर फंडिंग सहित अन्य मामलों में उम्रकैद और दस लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। यह फैसला इसलिए ऐतिहासिक है

नवभारत टाइम्स: कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक को एनआईए कोर्ट ने टेरर फंडिंग सहित अन्य मामलों में उम्रकैद और दस लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई है। यह फैसला इसलिए ऐतिहासिक है क्योंकि मलिक आतंकवादी गतिविधियों की साजिश में शामिल था। वह परदे के पीछे से इन घटनाओं की योजना बनाता था। वह खुद इन्हें अंजाम नहीं देता था। वैसे, अदालत ने मलिक को फांसी की सजा नहीं सुनाई, जिसकी एनआईए ने मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि मलिक ने जो अपराध किए हैं, वे रेयरेस्ट ऑफ रेयर नहीं हैं। गौर करने की बात है कि सुनवाई के दौरान मलिक ने अपराध कबूल कर लिया था। लेकिन सजा पर जिरह के दौरान उसने ऐसी बातें कहीं, जिनका मकसद शायद अपने समर्थकों को संदेश देना था। एनआईए के फांसी की सजा पर जोर दिए जाने पर उसने कहा, 'मैं किसी भी चीज के लिए भीख नहीं मांगूंगा। यह मामला अदालत के सामने है और फैसला मैं अदालत पर ही छोड़ता हूं।' इसी तरह आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होने पर उसने कहा कि अगर एनआईए इसे साबित कर देती है तो वह राजनीति से संन्यास ले लेगा।

जाहिर है, जेल में होने और उम्रकैद की सजा मिलने के बाद भी वह अपनी राजनीतिक भूमिका को लेकर सतर्क है। अजीब बात है कि लंबे वक्त तक हिंसा की राह पर चलने और उसकी वकालत करने वाले मलिक ने खुद को महात्मा गांधी की परंपरा से जोड़ने की कोशिश की। इस पर अदालत ने बिल्कुल ठीक कहा कि मलिक को इसका अधिकार नहीं है क्योंकि हिंसा छोड़ने का दावा करने के बावजूद उसने आज तक कश्मीर घाटी में हिंसक गतिविधियों की निंदा नहीं की है। मलिक को अपने किए की सजा मिली है तो वह ठीक ही है। लेकिन जहां तक कश्मीर का सवाल है तो हमें यह बात याद रखनी होगी कि वहां किसी एक व्यक्ति को किसी मामले में सजा दिला देना खास मायने नहीं रखता। उससे बड़ा सवाल यह है कि जम्मू-कश्मीर के आम लोग उस घटना को किस रूप में लेते हैं। उस संदर्भ में अच्छी बात है कि छिटपुट घटनाओं को छोड़कर कश्मीर घाटी में इसकी कोई बड़ी प्रतिक्रिया नहीं देखने को मिली। चाहे उग्रवाद और आतंकवाद से जुड़ी घटनाएं हों या अलगाववाद की वकालत करने वाली राजनीति- सरकार की असल चुनौती आम लोगों को इनसे अधिकाधिक दूर करते हुए इन्हें अलग-थलग साबित करने की है। और, यह काम वहां महज शांति व्यवस्था बनाए रखने से नहीं होगा। इसके लिए जरूरी है कि शांति व्यवस्था कायम रखने के साथ ही लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को भी बहाल किया जाए। अच्छी बात है कि सरकार उस मोर्चे पर भी सक्रिय है। उम्मीद है कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही चुनाव होंगे और लोगों को अपनी सरकार चुनने का मौका मिलेगा।


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