लाइफ स्टाइल

पेट्स के साथ अपनी यात्रा को बनाएं आसान

Kajal Dubey
3 May 2023 6:29 PM GMT
पेट्स के साथ अपनी यात्रा को बनाएं आसान
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यात्राओं में कई बार हम अपने पेट्स भी अपने साथ ले जाते हैं, लेकिन ज़रूरी है कि सफ़र उनके लिए सजा न बन जाए. आइए जानें कि सफ़र के दौरान पेट्स को साथ ले जाते समय किन बातों का ख़्याल रखना चाहिए.
हवाई यात्रा के दौरान
1. यदि आप अपने पेट्स को हवाई यात्रा में साथ ले जाना चाहते हैं, तो इस संबंध में आपको सीट आरक्षित करवाते समय ही पेट्स को साथ ले जाने के संबंध में सूचना देना ज़रूरी है.
2. नियमतः जानवर, पंछियों को मुफ़्त सामान की तरह ले जाने की अनुमति नहीं है. उन्हें ले जाने के लिए लगभग अतिरिक्त सामान ले जाने जितना किराया देना पड़ता है.
3. एयर इंडिया द्वारा संचालित अमेरिका के लिए सीधी उड़ान यानी भारत-अमेरिका-भारत मार्ग पर सफ़र करने की अनुमति नहीं है, लेकिन यदि वह दृष्टिहीन या फिर बधिर यात्री की मदद करने के लिए प्रशिक्षित हों और यात्री पूरी तरह से उन पर निर्भर हो तो उन्हें यात्री कक्ष में ले जाया जा सकता है. मगर इसके लिए भी संबंधित चिकित्सकीय प्रमाण पत्र आवश्यक हैं.
4. पालतू जानवरों को तभी सफ़र की इजाज़त दी जाएगी, जब उन्हें ले जाने की सही सुविधाएं की गई हों और वाहक के पास दूसरे देश में पालतू जानवर को ले जाने के लिए आवश्यक और वैध सर्टिफ़ि केट, रेबीज़ टीकाकरण प्रमाण पत्र, एेंट्री परमिट और अन्य दस्तावेज हों. यदि किसी देश या प्रदेश में पालतू जानवर ले जाने की अनुमति नहीं है, तो इसकी पूरी ज़िरम्मेदारी उड़ान की नहीं यात्री की होगी.
5. फ़्लाइट में एंटर होने पर कैप्टन व एयर होस्टेस को सूचित करें.
6. मौसम को ध्यान में रखकर उड़ान चुनें और सीधी उड़ान को वरीयता दें.
कार से यात्रा के दौरान
1. लंबे सफ़र पर ले जाने से पहले उन्हें छोटी दूरी पर साथ ले कर जाएं, ताकि उनके भीतर सफ़र का डर न हो.
2. उनके खाने का समान, बर्तन, पानी, दवाई और फ़र्स्ट-ऐड बॉक्स हमेशा साथ रखें.
3. पेट्स को कभी चलते वाहन में खाना न दें. हिलते-डुलते वाहन में खाना खाना उन्हें ट्रेवल-सिक बना सकता है.
4. अगर आपने पेट्स को किसी क्रेट में रखा है, तो सुनिश्चित कर लें कि उन्हें सांस लेने के लिए ठीक से हवा मिल रही है.
5. बीच-बीच में गाड़ी रोककर उन्हें ठहरने का मौक़ा दें, ताकि रास्तों की उछाल से उन्हें दिक़्क़त न हो.
6. कार की पिछली सीट अपने पालतू जानवरों के लिए रिज़र्व करें और सुनिश्चित करें कि पालतू जानवर अपने सिर को खिड़की से बाहर नहीं निकालें.
7. पेट्स के लिए सीट बेल्ट का इस्तेमाल करें, जिससे उन्हें नियंत्रण में रखा जा सके. उन्हें अकेले कार में छोड़कर न जाएं.
रेल यात्रा के दौरान
1. रेल पालतू जानवरों को ले जाने की अनुमति देती है, पर किसी भी परेशानी से बचने के लिए सीट आरक्षित करवाना सही है.
2. वैकल्पिक रूप से, कुत्तों को ट्रेन के ब्रेक वैन में सामान के साथ ले जाया जा सकता है. हालांकि यहां उनको खिलाने की ज़िम्मेदारी स्वयं मालिक को उठानी होती है.
3. कुछ ट्रेनें कुत्ते को गार्ड-कोच के इनबिल्ट कॉप में रखने की अनुमति देती हैं. मगर नियम व शर्तें लागू हैं.
4. रेल मे पेट्स ले जाने के लिए कुत्ते के वज़न के अनुसार शुल्क का भुगतान करना पड़ता है.
अन्य ज़रूरी सावधानियां
• सफ़र पर पेट्स को ले जाते हुए सुनिश्चित करें कि उन्हें सभी टीके लगवा लिए गए हैं.
• साथ में पेट्स हेल्थ सर्टिफ़ि केट रखें कि उन्हें कोई संक्रामक बीमारी नहीं है. उनके तमाम चेककप हो चुके हैं और नतीज़े (रिपोर्ट्स) सामान्य हैं.
• यात्रा के दौरान पेट्स का खो जाना एक सामान्य समस्या है. इसलिए अपने साथ हमेशा अपने पेट्स की फ़ोटो रखें और पेट्स के कॉलर में पहचान से जुड़ी ज़रूरी जानकारियां अनिवार्यतः लिखकर रखें. मसलन नाम, पता, फ़ोन नंबर.
• सुनिश्चित करें कि पेट्स के नाख़ून कटे हुए हों.
• यात्रा पर ले जाते समय उन्हें कम से कम चार से छह घंटे फ़ीड न करें.
• अपने पते और संपर्क विवरण के साथ एक अस्थायी यात्रा आईडी का इस्तेमाल करें.
ऐसे शहर में आकर कोई भी रोमांचित होगा, जो कुछ सदियों पहले सांस्कृतिक पुनरुत्थान का केंद्र था. हम यहां के गोमती नगर के विभूति खंड में स्थित शहर के नए-नवेले फ़ाइवस्टार होटल हयात रिजेंसी में ठहरे थे. इसके जनरल मैनेजर कुमार शोभन ख़ुद लखनऊ के रहने वाले हैं. वह बताते हैं कि किस तरह वे होटल की शुरुआत से ही सर्वश्रेष्ठ स्तर की सेवा के साथ-साथ यहां के रहने के अनुभव को समकालीन स्वरूप देने की कोशिश कर रहे हैं. उनके अनुसार,‘‘हमारी प्रिठहशक्षित और उत्साही टीम और ब्रैंड के लाजवाब अंदाज के चलते, चाहे कॉफ़ी मीटिंग हो या खाने की मेज... हमारे मेहमानों को सामाजिक अदान-प्रदान, सहयोग और उत्सव मनाने का भरपूर मौक़ा मिलता है. 19 सूइट्स के साथ 206 कमरों वाला यह होटल ख़ूब करीने से सजा है. यह प्रकाशमान और खुला स्थान उपलब्ध कराता है. हमने एक सूइट लिया, जिसमें बुनियादी ज़रूरत की सभी चीज़ें मौजूद थीं और इसकी साज-सजावट भी अलहदा थी. 43 इंच का एलईडी एचडी टीवी, मल्टी फ़ंक्शनल वर्क प्लेस, बैठने का आरामदेह स्थान और बेहतर सुविधा-संपन्न बाथरूम यानी हमारे स्टे को सही मायने में ‘नवाबी’ कहा जा सकता था. इसके बाद शुरू हुआ घूमने-फिरने का सिलसिला. अकेली घूमने वाली महिलाओं को सलाह: शहर में घूमने के लिए आारामदेह पोशाक पहनें, स्कार्फ़ साथ रखें और बेहतर होगा कि टैक्सी किराए पर लें. लखनऊ की हमारी यात्रा शुरू हुई पुराने अवध की गलियों से. चौक का इलाक़ा, जहां आज मशहूर टुंडे कबाब (जी हां, वही मुंह में रखते ही घुल जाने वाले कबाब जिनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें पहली बार एक बिना दांतों वाले राजकुमार के लिए तैयार किया गया था) मिलते हैं. चौक की घुमावदार गलियों में आपको मिलेंगी बेहतरीन चिकनकारी की दुकानें. हाथ से की जाने वाली यह चिकनकारी मशीन की एम्ब्रॉयडरी से कहीं महंगी होती है. बेहतर यह भी होगा कि आप किसी स्थानीय के साथ शॉपिंग करें. हमारी ख़रीदारी कुछ इतनी हो गई थी कि वापसी की हमारी यात्रा ख़ूब महंगे सामान के साथ लदी-फदी रही.
ख़रीदारी के बाद, हमारा अगला एजेंडा इदरिस की बिरयानी चखने का था. जिन्हें मालूम नहीं, इदरिस की बिरयानी कॉलेस्ट्रॉल से मरने का अच्छा बहाना है, लेकिन स्वाद का लुत्फ़ उठाते हुए. लज़ीज़ दम बिरयानी धीमी आंच पर पकती है और इसका लाजवाब स्वाद, अब भी मेरे मुंह में पानी ला रहा है. इसे भूलकर भी न खाने की ग़लती न करें.
इसके बाद, हम यहां की संस्कृति की टोह लेने पहुंचे बड़ा इमामबाड़ा. हमने इसके अहाते में लंबी सैर की. दुनिया की सबसे बड़ी मेहराबदार इमारत, बड़ा इमामबाड़ा में नमाज़ के लिए तीन मंज़िीला इमारत है, जिसका नाम है असाफ़ी मस्जििद. यहां भूलभुलैया, कुएं, विभिन्न आंगनों और साज-सज्जा वाले मैदान भी हैं. 18वीं सदी में नवाब असफ़-उद-दौला ने इसे परोपकार के उद्देश्य से बनाया था, ताकि 1785 के अकाल के दौरान लोगों को रोज़गार मिल सके. ग्यारह बरसों बाद, यह भवन खड़ा हुआ और उसके साथ ही यह कथन भी प्रचलन में आया: ‘जिसको न दे मौला, उसको दे असफ़-उद-दौला’. भड़कीले हरे रंग से रंगी अंदरूनी दीवारें बेशक़ इस भव्य इमारत के साथ पूरा न्याय न करती हों, लेकिन भवन निर्माण का यह अजूबा आज भी बिना किसी खंबे के खड़ा है.
ऑल डे डाइनिंग रेस्तरां, रोक्काWhere to go in Lucknow?
इसके बाद नंबर था छोटे इमामबाड़े का जिसे फ़ारसी और भारतीय-इस्लामिक वास्तुशिल्प के संगम से बनाया गया है. बैठक के लिए इस छोटे भवन का निर्माण नवाब मुहम्मद अलीशाह ने कराया था, जो आज उनके और उनके परिवार का मकबरा है. दूर से दिखने वाला इसका सुनहरा गुम्बद और मीनारें व बुर्ज इसे यहां की सबसे बड़ी इमारतों में शामिल करते हैं.
रूमी दरवाज़ा भी नवाब असफ़-उद-दौला ने बनवाया था. यह पुराने लखनऊ का प्रवेश द्वार है. इस्तांबूल की इमारत सब्लाइम पोर्ट से प्रेरित यह दरवाज़ा बड़े और छोटे इमामबाड़े को जोड़ता है.
अंधेरा हो चुका था और हम होटल लौट आए. कुछ पीने-पिलाने का दौर था. यहां का बरामदा शाम को ख़ुशगवार मधुशाला में तब्दील हो जाता है. स्थानीय विशेषताओं और मसालों के साथ परोसी जाने वाली कॉकटेल्स बिल्कुल सटीक रहती हैं. आप मुरादाबादी म्यूल (वोदका-जिंजरऐल-लाइम जूस मिक्स), काकोरी मैरी (वोदका-काकोरी मसाला-टोमैटो जूस मिक्स) या द चौक (टकीला-बेरी-टैमरिन्ड-सॉल्ट कॉकटेल) या मेरी तरह बरेली का झुमका भी पी सकते हैं, जिसमें वोदका के साथ जामुन और नींबू रस मिला होता है. इसके बाद, शुभ रात्रि.
बड़ा इमामबाड़ा में शाही हमाम Where to go in Lucknow?
पाककला
दूसरा दिन. लखनऊ के छुपे नज़ारे बुला रहे थे. हमारी सुबह हज़रतगंज में गुज़री, जहां के मुहाने पर यूनिवर्सल बुकसेलर्स की बड़ी दुकान है. इस दुकान पर मिलने वाले ख़ज़ाने के बारे में बताए बिना आगे बढ़ना ग़लत होगा. मृदुभाषी मानव प्रकाश और उनके परिवार द्वारा चलाया जाने वाला यह स्टोर समय के साथ-साथ बदला है और आज इसका शुमार देश की सबसे बड़ी ऑफ़लाइन और ऑनलाइन किताब की दुकानों में होता है. हज़रतगंज में चिकनकारी की कई दुकानें हैं और डिज़ाइनर कपड़ों की भी, लेकिन हमें रोका मोती महल के कुल्फी-फालूदा ने, जिसकी जितनी भी तारीफ़ की जाए कम होगी. कुछ क़दम की दूरी पर रॉयल कैफ़े की बास्केट चाट है, लेकिन लाल बाग़ में शर्मा चाट का कोई मुक़ाबला नहीं. उन दही-भल्लों की क्या बात करें, जो साक्षात किसी दूसरी दुनिया से आए लगते हैं? कुछ सोचने से बेहतर होगा कि उनका स्वाद लिया जाए.
खाने-पीने के इस दौर से रुककर इतिहास के कुछ और पन्ने पलटे जाएं. रेज़िाडेंसी, जहां 1857 की क्रांति के दौरान अंग्रेज़ों के घर हुआ करते थे, वहां घेराबंदी के दौरान हज़ारों अंग्रेज़ पुरुष, महिलाएं और बच्चे अंदर ही बंद रह गए थे और आज इसी के पास के क़ब्रिस्तान में दफ़्न हैं. लखनऊ की घेराबंदी 87 दिनों तक चली थी. 1857 के विद्रोह की यह एक महत्वपूर्ण घटना थी. यह वह स्थान है, जहां आज इतिहास को आप अपनी आंखों से देख सकते हैं और जान सकते हैं, कैसे किसी भी युद्ध में निर्दोषों की बलि चढ़ती है.
कुछ उदासी और सोच में डूबे हमें शहर के कई बाग़ों और पार्कों में भी ले जाया गया. पहले पहल, शहीद स्मारक, जो गोमती नदी के किनारे स्थित है. फिर बुद्धा पार्क और हाथी पार्क, जहां बच्चों के खेलने के लिए ख़ासी जगह है.
हयात रिजेंसी, लखनऊ का सूइटWhere to go in Lucknow?
मौज-मस्ती के बाद हम रात के खाने के नियत समय पर हयात रिजेंसी के थाई और चाइनीज़ रेस्तरां लुकजिन पहुंचे. यहां फ़ूड ऐंड बेवरेज़ निदेशक वाल्टर परेरा ने सुदूर पूरब के कई ज़ायकों से परिचित कराया. सिचुआन स्टाइल और पोमेलो सलाद ऐपिटाइज़र के अच्छे विकल्प हैं. उसके बाद मेनकोर्स के लिए चिकन शूमाय और ब्लैक बीन सॉस में पका लैम्ब जिसके साथ येंग चाउ स्टाइल के फ्राइड राइस सर्व किए जाते हैं. खाने का अंत डेट पैनकेक के साथ हुआ. कोकोनट मिल्क और वॉटर चेस्टनट की थेमथिम क्रॉप के ज़ायके के लिए तो हम बेतक्कलुफ़ हो गए थे.
छोटा इमामबाड़ाWhere to go in Lucknow?
अलविदा
पिछले दो दिनों में खाना, ख़रीददारी, इतिहास दर्शन, घूमना, और फिर से खाना, यही दिनचर्या का हिस्सा रहा. तो आज, लखनऊ में अंतिम दिन क्या किया जाए? हम फिर से खाने पहुंचे. इस बार होटल के पूरे दिन खुले रहने वाले रोक्का रेस्तरां में, जहां इटैलियन और अवधी व्यंजन परोसे जाते हैं. क्वात्रो फ़ोर्मागी पिज़्ज़ा विद मोज़रेला, प्रोवोलोन, गोर्गोन्ज़ोला और पेकोरिनो किसी भी चीज़ पसंद करने वाले के लिए आदर्श हो सकते हैं. द फ्रिटो मिस्टो और नोच्ची एल पेस्टो ने खाना और भी मज़ेदार बना दिया था. आप इसे दोबारा खाने से ख़ुद को रोक नहीं पाएंगे.
पुराने लखनऊ शहर में टुंडे कबाबी रेस्तरांWhere to go in Lucknow?
थके पैरों को आरामदेह मालिश की भी ज़रूरत होती है. यहां मौजूद सिद्ध स्पा में ब्यूटी और वेलनेस थेरैपी एक साथ मिलती है, जो प्राचीन ज्ञान में रची-बसी नज़र आती हैं. अपनी मनःस्थिति के अनुसार, वातम्, पितम् और कफम् में से किसी का चुनाव किया जा सकता है. स्पा में महिलाओं आौर पुरुषों के लिए चार ट्रीटमेंट रूम्स हैं और अलग हाइड्रो क्षेत्र हैं, जिनमें स्टीम रूम और शावर लगे हैं. फिर से तरोताज़ा होने के लिए हमने 90 मिनट की मर्मशास्त्र मसाज आज़माई, जिसमें थकान दूर करने के अलग-अलग पैटर्न्स और मूवमेंट्स अपनाए जाते हैं. इसके बाद शरीर को बेशक़ आराम मिलता है, लेकिन दिमाग़ को उससे भी ज़्यादा. शहर दर्शन और ठहरने का हमारा अनुभव लाजवाब रहा है.
ब्रिटिश रेज़िडेंसी के खंडहरWhere to go in Lucknow?
इससे पहले कि हम रवाना हों, हमने बॉलरूम्स, मल्टी फ़ंक्शनल स्पेस और ब्रेकआउट रूम्स से सुसज्जित 18,000 वर्ग फ़ीट के इस भव्य भवन पर फिर से नज़र डाली. वहां एक कॉन्फ्रेंस चल रही थी, हम शांतिपूर्वक यहां से निकल गए. साथ में हमने रास्ते में खाने के लिए मफ़िहन्स लिए और पिछले तीन दिनों की ख़ूबसूरत यादों को अलविदा कहा. फिर मिलेंगे लखनऊ!
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