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कोलेस्ट्रॉल लेवल कम होने पर बढ़ जाता है हैमरेजिक डेंगू और शॉक सिंड्रोम का खतरा ज्यादा

Bhumika Sahu
3 March 2022 4:42 AM GMT
कोलेस्ट्रॉल लेवल कम होने पर बढ़ जाता है हैमरेजिक डेंगू और शॉक सिंड्रोम का खतरा ज्यादा
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सामान्य से कम कोलेस्ट्रॉल वाले लोगों के लिए डेंगू ज्यादा खतरनाक है। ऐसे मरीजों को हैमरेजिक डेंगू और शॉक सिंड्रोम का खतरा ज्यादा होता है। डेंगू से मौत के ज्यादा मामले इन्हीं मरीजों के होते हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सामान्य से कम कोलेस्ट्रॉल वाले लोगों के लिए डेंगू ज्यादा खतरनाक है। ऐसे मरीजों को हैमरेजिक डेंगू और शॉक सिंड्रोम का खतरा ज्यादा होता है। डेंगू से मौत के ज्यादा मामले इन्हीं मरीजों के होते हैं।

कोलेस्ट्रॉल के सामान्य स्तर वाले मरीज इस खतरे की चपेट में कम आते हैं। कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज की रिसर्च में यह तथ्य सामने आए हैं। रिसर्च पेपर इसी साल इंटरनेशनल जर्नल ऑफ एडवांस मेडिसिन में प्रकाशित हुआ है।
रिसर्च में खून में बायोकेमिकल मार्कर को आधार बनाया गया। रिसर्च में पाया गया कि जिन डेंगू मरीजों में एलडीएल और ट्राई ग्लिसराइड सामान्य स्तर से कम था, उनका सीपीके स्तर बढ़ा मिला। यह मार्कर हार्ट पर डेंगू संक्रमण के तगड़े असर को बताता है। रिसर्च टीम के सदस्य प्रो. विशाल गुप्ता का कहना है कि कोलेस्ट्रॉल की कमी से खून बनने की प्रक्रिया बाधित हुई।
ब्लड सेल टूटने लगे। मरीजों को बाहर से प्लेट्लेट देने की जरूरत पड़ी। खून की 17 बायोकेमिकल मार्कर जांचें कराई गईं तो कोलेस्ट्रॉल की कमी प्रमुख रूप से सामने आई।
हैमरेजिक और शॉक सिंड्रोम वाले सभी मरीजों में समान रूप से यह कमी सामने आई। जिन्हें सामान्य डेंगू बुखार रहा, उन मरीजों में कोलेस्ट्रॉल का स्तर सामान्य पाया गया।
यह है कोलेस्ट्रॉल की भूमिका-
एलडीएल और ट्राई ग्लिसराइड बैड कोलेस्ट्रॉल हैं पर यह एक निश्चित मात्रा में शरीर के लिए जरूरी भी हैं। ट्राई ग्लिसराइड का सामान्य स्तर 100 से 150 के बीच है। जिन मरीजों में यह 25-30 मिला, वे रिस्क में आ गए।
इसी तरह एलडीएल का सामान्य स्तर 70 से 100 है। खतरे में आए ज्यादातर मरीजों में यह 50 से कम मिला। सामान्य स्तर पर दोनों कोलेस्ट्रॉल का काम शरीर में कोशिकाओं पर एक सुरक्षा कवच बनाना है। इसकी कमी से खून की कोशिकाओं में कवच नहीं बन पाता। वह टूटने लगती हैं। इसीलिए प्लेट्लेट की जरूरत पड़ती है।
यही कोलेस्ट्रॉल सामान्य स्तर से ज्यादा हो जाए तो यह दिल की धमनियों में जमा होने लगता है। यह स्थिति मरीज को हार्ट अटैक की ओर ले जाती है।
दो साल में मिले निष्कर्ष-
रिसर्च 2019 में शुरू हुई और 2021 में पूरी हुई। मेडिसिन विभाग के प्रो. विशाल गुप्ता मुख्य शोधकर्ता हैं। उनके साथ विभागाध्यक्ष प्रो. रिचा गिरि और प्रो. सौरभ अग्रवाल भी शामिल थे। शोधकर्ताओं का दावा है कि देश में डेंगू मरीजों पर पहली बार इन मार्कर के आधार पर रिसर्च हुई है।
प्रो. विशाल गुप्ता, प्रमुख शोधकर्ता के अनुसार, बायोकमेकिल मार्कर के आधार पर रिसर्च से डेंगू इलाज को नई दिशा मिलेगी। डेंगू के गम्भीर मरीजों की अगर कोलेस्ट्रॉल, लिवर, किडनी प्रोफाइल जांचें पहले करा ली जाएं तो उनकी गम्भीरता का अंदाजा लग सकता है। विशेषज्ञ अलर्ट हो सकते हैं।


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