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आइए जानते हैं कौन से हैं वो पैरेंटिंग के रूल्स है जिन्हें हर पैरेंट को अब बदल लेना चाहिए

Kajal Dubey
6 March 2022 10:17 AM GMT
आइए जानते हैं कौन से हैं वो पैरेंटिंग के रूल्स है जिन्हें हर पैरेंट को अब बदल लेना चाहिए
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बच्चों की परवरिश करना दुनिया के सबसे मुश्किल कामों में से एक है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। बच्चों की परवरिश करना दुनिया के सबसे मुश्किल कामों में से एक है। माता-पिता होने के नाते हम सभी चाहते हैं कि हमारे बच्चे अच्छे और ईमानदार बनें, इसलिए उनकी परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ते। वैसे समय चाहे कितना भी क्यों न बदल गया हो, माता-पिता की पेरेंटिंग का तरीका आज भी वही है। उनकी खुद की परवरिश जैसे हुई है, वह भी चाहते हैं कि अपने बच्चों की परवरिश ठीक वैसे ही करें। लेकिन ये जरूरी नहीं है कि जिस तरह आप बड़े हुए हैं, आपका बच्चा भी वैसे ही बड़ा हो।

समय और प्रगति के साथ हमें वर्तमान में अच्छी तरही से घुलने-मिलने के लिए अपने जीवन में कुछ बदलावों को अपनाना चाहिए। पालन-पोषण के साथ, बच्चे के लिए क्या अच्छा है, वह क्या चाहता है, इसके आधार पर पेरेंटिंग के नए रूल्स को फॉलो करना चाहिए। अगर आप भी पेरेंटिंग के पुराने और घिसे-पिटे तरीके अपनाते आ रहे हैं, तो अब समय आ गया है कि इन्हें बदलें। इससे बच्चे न केवल मोटिवेट होंगे, बल्कि उन्हें काम करने की नई दिशा और प्रोत्साहन भी मिलेगा। तो आइए जानते हैं कौन से हैं वो पैरेंटिंग के रूल्स, जिन्हें हर पैरेंट को अब बदल लेना चाहिए।
​दोपहर का खाना 12 बजे तक खा लें
सबसे जरूरी बात कि बच्चे को जबरदस्ती खाना ना खिलाएं। उसे खुद भूख लगने दें। आमतौर पर बच्चे बेतरतीब ढंग से खाते हैं। हालांकि, एक तरह से यह अच्छा है क्योंकि इससे बच्चे अलग-अलग खाद्य पदार्थों के साथ एक्सपेरिमेंट करना सीख जाते हैं। बच्चा बड़ा होकर भोजन की वैरायटी पहचानता है। विशेषज्ञ कहते हैं कि किसी बच्चे को जबरदस्ती खिलाना उसके भोजन की किस्मों से परिचित होने के दायरे को सीमित करता है। इससे बच्चों में विटामिन और मिनरल्स की कमी हो जाती है।
​टीवी और मोबाइल के लिए 1 घंटा
सभी पैरेंट्स लगभग ऐसा करते हैं, ताकि बच्चे टीवी और मोबाइल के आदी न हों। लेकिन अब स्थिति थोड़ी बदल गई है। बच्चों के लिए शिक्षा सहित इन दिनों सभी कुछ ऑनलाइन है। बच्चों को मोबाइल फोन का उपयोग करने से रोकने के बजाय उन्हें वास्तव में ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। यदि आपको लगता है कि लंबे समय तक स्क्रीन के सामने रहने से बच्चे की निगाहें कमजोर होंगी, तो इसे समझाने का एक बेहतर तरीका है को-कुरिकुलर एक्टिविटीज। कागज, शिल्प हो या मिट्टी के बर्तन या खाना बनाना, उन्हें किसी ऐसी चीज में शामिल करें, जो उनके लिए रोमांचक हो और दिलचस्प भी।
​संडे को कामों की लिस्ट
पहले के समय और शायद आज भी माता-पिता बच्चों को इस बात के लिए फोर्स करते हैं। रविवार के दिन बच्चों को ढेर सारे काम पहले से ही बता देते हैं। बच्चों का मन हो या न हो, तब भी करना पड़ता था। अगर आप भी एक पैरेंट हैं, तो बच्चे के हाथ में संडे के कामों की लिस्ट न थमाएं। उन्हें अपनी आदतें खुद चुनने दें। जरूरी नहीं कि हर बच्चे को सफाई करना पसंद हो, बल्कि कुछ बच्चों को खाना बनाना अच्छा लगता है। इसलिए बच्चे के समग्र विकास के लिए उन पर कुछ भी थोपना अच्छी आदत नहीं है। यह उनके शौक और जुनून के दायरे को प्रतिबंधित करता है।
​ऐसा करने से पहले आपने किससे पूछा
किसी बच्चे को दूसरों पर निर्भर न बनाएं। हालांकि, पहले के जमाने में माता-पिता बच्चे को तब तक कोई काम करने की इजाजत नहीं देते थे, जब तक कि वो खुद इस चीज के लिए राजी न हों। लेकिन अब समय बदल गया है। पैरेंट्स को बच्चों को अपनी स्वीकृति पर निर्भर नहीं बनाना चाहिए। अगर बच्चे में कुछ जिज्ञासा पैदा होती हैं और उसने आपसे बिना पूछे काम को अंजाम दिया है, तो उसकी तारीफ करें। यदि उसने कुछ गलत किया है, तो एक तर्क के साथ समझाकर ऐसा करने से मना करें।


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