लाइफ स्टाइल

बच्‍चों को उनकी भावनाएं प्रदर्शित करने दें

Kajal Dubey
3 May 2023 11:25 AM GMT
बच्‍चों को उनकी भावनाएं प्रदर्शित करने दें
x
एक दिन मेरा पांच वर्षीय बेटा, जब खेलकर लौटा तो बड़ा गुमसुम था. मैंने पूछा कि क्या किसी से लड़ आए हो? उसने कहा, नहीं. पर मैं आपसे कुछ पूछना चाहता हूं...क्या मैं रो भी नहीं सकता? मैंने कहा ऐसा बिल्कुल नहीं है, पर तुम ये पूछ क्यों रहे हो. तब उसने मुझे जो बताया, उससे मुझे इस बात का एहसास बड़ी शिद्दत से हुआ कि हमारी पोर-पोर में लिंगभेद इस क़दर समाहित है कि मानवता जैसे शब्द की कोई अहमियत ही नहीं रह गई है.
उसने कहा, मेरे दोस्त रोहन का किसी से झगड़ा हुआ. उसे एक भइया ने पीट दिया. वह रोने लगा. तभी उसके पापा वहां से गुज़रे तो उसने उन्हें सारी बात बताई. उसके पापा ने कहा कि सबसे पहले तो तुम रोना बंद करो. लड़के नहीं रोते, रोना तो लड़कियों का काम होता है. और जिन्होंने उसे मारा था वो भैया भी हंस रहे थे. तो क्या मां लड़के वाक़ई नहीं रोते?
दो पल चुप रहकर मैंने उसे समझाया कि ऐसा बिल्कुल नहीं है. ये स्टीरियोटाइप है, जिसे हमें और तुम्हें ही मिलकर तोड़ना है. इत्तफ़ाक़ की बात है इसके अगले दिन टीवी पर एक कार्यक्रम के दौरान, जिसे मैं और मेरा बेटा साथ बैठकर देख रहे थे, अभिनेता आमिर ख़ान ने सबके सामने इस बात को स्वीकारा कि वो बहुत इमोशनल हैं. जब-तब रो पड़ते हैं. यह देखने के बाद मैंने अपने बेटे से कहा, देखो इतना बड़ा कलाकार भी रोता है. इसका मतलब लड़के भी रो सकते हैं, क्योंकि रोना एक तरह से अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का ज़रिया है, मानवीय है. और रोने से जी हल्का होता है...ये तो हम सभी जानते हैं.
वो कितना समझा, नहीं जानती. पर आज 14 वर्ष का होने के बाद भी अपनी भावनाओं को व्यक्त करते समय यदि उसका जी होता है तो वो कम से कम मेरे और अपने पिता के सामने तो रो ही लेता है.
Next Story