- Home
- /
- लाइफ स्टाइल
- /
- जानें, पॉलिसिस्टिक...
x
आख़िर क्या है पीसीओएस होने का कारण और महिलाओं की सेहत पर इसका प्रभाव?
जैसा कि हम पहले ही कह चुके हैं कि पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम का कारण है प्रजनन के लिए ज़िम्मेदार हार्मोन्स में असंतुलन. इन हार्मोन्स के चलते ओवरी में गड़बड़ी पैदा हो जाती है. ओवरी का काम है हर महीने एक अंडे जिसे ओवम कहते हैं को मैच्योर करना और उसे रिलीज़ करना. पीसीओएस के चलते कई बार ये एग्स डेवलप नहीं हो पाते या कभी-कभी हर महीने मासिक साइकिल के अनुसार रिलीज़ नहीं होते. जिसके कारण पीरियड्स अनियमित हो जाते हैं. जबकि यह सभी को पता है कि नियमित पीरियड महिलाओं की सेहत के सबसे सटीक इंडिकेटर हैं. पीरियड्स समय पर नहीं आने के कारण महिलाओं को गर्भधारण कर पाने में समस्या होती है. पीसीओएस महिलाओं में बांझपन (इन्फ़र्टिलिटी) का सबसे प्रमुख कारण है.
यह तो हो गई इसके प्रभाव की बात. यह होता क्यों है? यह होता है ओवरीज़ में छोटे-छोटे सिस्ट्स के बन जाने के कारण. इन सिस्ट्स में फ़्लूइड भरा होता है. शरीर में 5 अल्फ़ा-रिडक्टेस का लेवल बढ़ जाने और एल-कैरनिटाइन अमीनो एसिड का स्तर कम हो जाना पीसीओएस होने का एक प्रमुख कारण है. ऐसा माना जाता है कि महिलाओं में पुरुष हार्मोन्स की मात्रा बढ़ने से भी ओवरीज़ अंडे बनानेवाले हार्मोन्स नहीं रिलीज़ कर पातीं.
क्या होते हैं पीसीओएस के लक्षण?
आमतौर पर पीसीओएस के लक्षण प्युबर्टी यानी युवावस्था के शुरुआत में ही दिखने लगते हैं. कई मामलों में वे टीनएज के अंतिम हिस्से में स्पष्ट रूप से दिखने लगते हैं. ऐसे भी मामले होते हैं, जिनमें लंबे समय तक पीसीओएस के लक्षण दिखाई नहीं देते. इस वजह से महिला को पता ही नहीं चलता कि उसे पीसीओएस है.
सबसे आम लक्षण है अनियमित पीरियड्स या बिना प्रेग्नेंसी के पीरियड्स का मिस होना. वज़न बढ़ना, थकान, शरीर पर अनचाहे बालों की वृद्धि तेज़ी से होना, सिर के बालों का पतला होना, गर्भ धारण करने में असफलता, टीनएज के बाद भी मुहांसे होना, बार-बार मूड बदलना, पेट में दर्द रहना, तेज़ सिर दर्द होना और अनिद्रा की समस्या होना.
तो अगर आपको जल्दी-जल्दी वैक्सिंग के लिए जाना पड़ रहा हो, एक्सरसाइज़ के बावजूद वज़न बढ़ रहा हो, मुहांसे बुरी तरह परेशान कर चुके हों, पीरियड्स भी रेग्युलर न हो और आपका मूड अक्सर ऑफ़ रहता हो तो पीसीओएस की संभावना से नाकारा नहीं जा सकता.
इससे निपटने के लिए क्या विकल्प उपलब्ध हैं?
हालांकि हम पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम जैसी गंभीर बीमारी में आपको ख़ुद से इलाज करने की सलाह क़तई नहीं देंगे, पर हम उन विकल्पों के बारे में सिर्फ़ बताना चाहेंगे, जो आमतौर पर डॉक्टर्स अपनाते हैं.
कई बार बर्थ कंट्रोल पिल्स का इस्तेमाल करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि इसमें एस्ट्रोजेन और प्रोजेस्टेरॉन होते हैं, जो हार्मोन्स के असुंतलन को ठीक कर देते हैं. पीरियड्स नियमित हो जाते हैं. बालों की वृद्धि की दर कम होती है. दूसरे इलाज में टाइप 2 डायबिटीज़ के लिए इस्तेमाल होनेवाली दवाई मेटफ़ॉर्मिन का इस्तेमाल किया जाता है. इससे शरीर में इंसुलिन का स्तर बढ़ता है. पीसीओएस के लक्षणों से निपटने में मदद मिलती है. वहीं पीसीओएस का सामना कर रही महिलाओं को प्रेग्नेंट होने में मदद के लिए क्लोमिफ़ेन दी जाती है. हालांकि इस दवा का सबसे बड़ा साइड इफ़ेक्ट यह है कि इससे जुड़वा या उससे भी ज़्यादा बच्चे होने की संभावना बढ़ जाती है.
दवाइयों से काम नहीं बनने पर सर्जरी की सलाह दी जाती है. पीसीओएस के लिए ओवरियन ड्रिलिंग नामक प्रोसिजर फ़ॉलो किया जाता है, जिसमें ओवरी में लेज़र की मदद से छोटे-छोटे होल बनाकर सिस्ट्स को नष्ट किया जाता है. इससे ओव्युलेशन के सामान्य होने में मदद मिलती है.
रही खानपान के माध्यम से पीसीओएस से राहत पाने की तो पम्पकिन सीड (कद्दू के बीज के) एक्सट्रैक्ट और सा पालमेटो (क्रकच ताल) एक्सट्रैक्ट को डायट में शामिल करने की सलाह दी जाती है. इससे 5 अल्फ़ा-रिडक्टेस एन्ज़ाइम को कम करने में मदद मिलती है. आमतौर पर डायट में बदलाव का नतीजा लगभग छह महीने बाद दिखना शुरू होता है.
जो भी हो, आपको पीसीओएस की समस्या का समाधान अपने डॉक्टर की सलाह के अनुसार ही करना चाहिए. इंटरनेट या कहीं और से पढ़कर ख़ुद इलाज करना भारी पड़ सकता है.
शारीरिक गतिविधियों को दोबारा शुरू करें
मसल्स की तरह ही हड्डियां भी एक्सरसाइज़ करने से मज़बूत बनती हैं. सेहतमंद हड्डियों के बेस्ट एक्सरसाइज़ है स्ट्रेंथ-बिल्डिंग, वॉकिंग, सीढ़ियां चढ़ना, वेट लिफ़्टिंग और डांसिंग. रोज़ाना 30 मिनट इनमें से किसी एक गतिविधि में व्यतीत करें. इससे बोन सेल्स स्टिम्युलेट होते हैं और बोन मिनरल डेंसिटी बढ़ती है और ऑस्टियोपोरोसिस का ख़तरा कम होता है.
सेहतमंद जीवनशैली अपनाएं
धूम्रपान और बहुत ज़्यादा अल्कोहल का सेवन बोन लॉस और हड्डियों की कमज़ोरी के प्रमुख कारणों में हैं. इन अनहेल्दी गतिविधियों से हड्डियों तक पहुंचनेवाले रक्त की मात्रा में कमी आती है, जिससे हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी बोन-फ़ॉर्मिंग सेल्स का प्रोडक्शन धीमा हो जाता है और कैल्शियम का अवशोषण ठीक तरीक़े से नहीं हो पाता. इन आदतों से तौबा करके आप अपनी हड्डियों को मज़बूत कर सकते हैं.
हड्डियों को सेहतमंद बनाने में आयुर्वेद की भूमिका
आयुर्वेद में कई जड़ी-बूटियां हैं, जिनका इस्तेमाल हड्डियों को सेहतमंद बनाने के लिए होता आया है. हड़जोड़, सलाई गुग्गुल, अश्वगंधा, बाला जैसे हर्ब्स तो बोन सेल्स को बेहतर बनाने और बोन मिनरल डेंसिटी को बढ़ाने के लिए जांचे-परखे हुए हैं. वहीं अर्जुन, मेथी, लाख आदि में प्राकृतिक रूप से कैल्शियम, फ़ॉस्फ़ोरस, विटामिन सी, म्यूकोपॉलिसैकेराइड्स, मिनरल्स और फ़ायटोएस्ट्रोजन मौजूद होते हैं, जो कि हड्डियों को सेहतमंद बनाने के लिए बहुत ज़रूरी हैं.
इन आयुर्वेदिक औषधियों की सबसे अच्छी बात यह है कि ये किसी भी तरह के साइड इफ़ेक्ट से मुक्त हैं. इनका लंबे समय तक इस्तेमाल करने से हड्डियां सेहतमंद बनती हैं.
Next Story