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इस चार बातों को जानकर, आसानी से आप भी बोल सकते हैं हिंदी
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत में हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा भले ही न प्राप्त हो, लेकिन आधे से ज्यादा देश को इसी भाषा ने जोड़ रखा है। देश के कई हिस्सों में हिंदी मातृभाषा है तो बाकी जगह कार्यभाषा है। यूं शासकीय स्तर पर ऑफिशियल लैंग्वेज का दर्जा हिंदी को दिया गया है लेकिन असल में हिंदी जन जन की भाषा है क्योंकि हिंदी का जो स्वरूप आमतौर पर अपनाया जाता है उसमें कई सारी भाषाओं और बोलियों की मिठास मिली हुई है। और असल में हिंदी के इसी स्वरूप को अपनाने की जरूरत भी है। जानिए कैसे कुछ सामान्य बातों को समझकर आप आसानी से हिंदी को अपना सकते हैं।
जैसी बोलें वैसी लिखें:
ये हिंदी का सबसे बड़ा गुण है। आप हिंदी को जैसे बोलेंगे वैसे ही उसको लिख सकते हैं। अब यहां गड़बड़ इसलिए होती है क्योंकि हमारे यहां प्रांतीय स्तर पर अलग भाषाओं और बोलियों का असर हिंदी पर हो जाता है। इसी वजह से बोली गई हिंदी जब लिखी जाती है तो गड़बड़ हो जाती है। जैसे बांग्ला में पानी को भी खाने का अनुरोध किया जाता है और चाय को भी। इसी तरह दक्षिण भारतीय भाषाओं में स्त्रीलिंग और पुल्लिंग के लिए जिन शब्दों का प्रयोग होता है उसे हिंदी में बदलते समय वे असमंजस में आ जाते हैं। यदि आप सही हिंदी लिखना चाहते हैं तो सिर्फ सही हिंदी बोलने पर ध्यान केंद्रित करें।
हिंदी की बिंदी:
ये सामान्य गड़बड़ अक्सर लोग करते हैं। यहां तक कि जिन राज्यों में हिंदी ज्यादा बोली जाती है वहां भी ये गलती होती है। खासकर उन शब्दों को लिखते हुए जो अंग्रेजी के हैं। जैसे 'रोड' में बिंदी लगा देना और उसको 'रोड़' बना देना या 'मैं', 'में' और 'हैं' की बिंदी हटा देना। बिंदी लगाने का यह मामला भी बोलने पर ही निर्भर करता है। अगर आप बोलेंगे तो लिखेंगे भी वही। इसलिए लगातार सही बोलने की आदत डालें। इस तरह सही जगह बिंदी लगाने की आदत भी पड़ जाएगी।
मात्राओं का झोल:
छोटी और बड़ी मात्राएं अक्सर लोगों को असमंजस में डालती हैं। हालांकि यहां भी बोलने के तरीके पर ही सबकुछ निर्भर करता है लेकिन इसको सुधारने के लिए बचपन से कोशिश की जा सकती है। जैसे कई डेयरी उत्पाद बेचने वाली जगह पर लिखा होता है 'यहां दुध मिलता है'। अब जरा रुक कर सोचिए कि क्या आप दूध बोलते हैं या दुध? यहां छोटी मात्रा लगनी चाहिए या बड़ी? बस इसी तरह जब आप बच्चे को हिंदी पढ़ा रहे होते हैं तब उसे बड़ी मात्राओं पर जोर देकर पढ़ाएं और छोटी मात्राओं पर कम जोर देते हुए। इससे हमेशा उसकी आदत रहेगी कि वह मात्रा का सही उपयोग करे।
अपनी भाषा पर गर्व करें:
ये सबसे महत्वपूर्ण बात है। हिंदी कैसी बोलनी है, सही होगी या नहीं, लोग हिंदी बोलने पर मजाक तो नहीं उड़ाएंगे, ये सब बातें दिमाग से निकाल दें। अंग्रेजी बोलने के समय भी तो कई लोगों से गलतियां होती हैं। फिर भी लोग बोलने की कोशिश करते हैं। फिर हिंदी बोलने में हिचक कैसी। कोशिश करें कि जैसी भी हिंदी आपको आती है उसमें गर्व से बात करें। हिचकें या शर्माएं नहीं। किसी भी देश की भाषा उसकी पहचान होती है। इसलिए हिंदी बोलें, मन से बोलें।