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एक्सपर्ट की सलाह: एक संकल्पना है ब्रेन फ़ॉग. आजकल लोग ट्रेन, बस या गाड़ियों में बैठते ही या तो अपने मोबाइल खोल लेते हैं या फिर सो जाते हैं. दिन के किसी भी समय यह असमय नींद क्यों आ जाती है? ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि हमारा लिवर टॉक्सिन्स से भरा रहता है, क्योंकि वह बेचारा अपना डिटॉक्सिफ़िकेशन ही नहीं कर पाता. खर्राटे लेना, जब-तब नींद आ जाना या फिर नींद का न आना-अब इस पर अध्ययन होने लगा है. तो क्यों हमें समय पर सो जाना चाहिए? दो बातें हैं: पहली, शारीरिक विश्राम और दूसरी, हम लिवर को डीटॉक्सिफ़िकेशन के लिए कुछ समय दें. रात 10-11 बजे से लेकर सुबह के 3-4 बजे तक शरीर इस डीटॉक्सिफ़िकेशन की प्रक्रिया को पूरा करता है. यदि हम इस समय सोते हैं तो यह शरीर के लिए बेहतर है. चूंकि हम सेडेंट्री लाइफ़स्टाइल जी रहे हैं, अत: हमें एक दिन में छह से अधिक घंटे की नींद की ज़रूरत नहीं होती. यदि आपको दस घंटे की नींद चाहिए या संडे की सुबह आप 11 बजे से पहले उठ नहीं सकती हैं तो आपके शरीर में किसी तरह का असंतुलन है. फिर ऑक्सिजन की प्रॉपर सप्लाय के लिए आपको घंटेभर का समय ख़ुद को देना चाहिए, क्योंकि आजकल प्रदूषण का स्तर बहुत ज़्यादा है: फ़ॉग, स्मॉग, वाहनों से निकलनेवाला प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण और एसी यानी एयर कंडिशनर से होनेवाले प्रदूषण, क्योंकि इसमें अप्राकृतिक रूप से केवल इंटरनल एयर ही सर्कुलेट होती है. हमारे लंग्स तक यह प्रदूषण पहुंच रहा है. यदि हमें लंग्स को सेहतमंद रखना है तो किसी न किसी तरह की एक्सरसाइज़ ज़रूरी है. यह आसान-सी ब्रीदिंग एक्सरसाइज़ हो सकती है. पावर योग या ज़ुम्बा जैसी चीज़ों की ज़रूरत नहीं है. 10 मिनट का मेडिटेशन या कुछ समय ख़ुद के साथ गुज़ारना, पसंदीदा म्यूज़िक सुनना पर्याप्त है. और यह एक्सरसाइज़ बोझ की तरह मत कीजिए, सहजता से कीजिए. वह कीजिए, जो आपको पसंद है. पॉज़िटिव मूड चेंजेस आपकी सेहत में सकारात्मक बदलाव लाएंगे.
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