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जानें भारत में कहां से आया समोसा

Tara Tandi
22 May 2021 1:59 PM GMT
जानें भारत में कहां से आया समोसा
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समोसा इतना हिन्दुस्तानी लगता है कि लोगों के लिए ये अकल्पनीय होगा कि 500 साल पहले समोसा नाम की चीज़ हमारे उपमहाद्वीप में मौजूद नहीं थी

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| समोसा इतना हिन्दुस्तानी लगता है कि लोगों के लिए ये अकल्पनीय होगा कि 500 साल पहले समोसा नाम की चीज़ हमारे उपमहाद्वीप में मौजूद नहीं थी. समोसा केवल खाना नहीं, बल्कि राजनीति और देश की संस्कृति का हिस्सा बन गया है. जब तक रहेगा समोसे में आलू तब तक रहेगा बिहार में लालू, 1990 के दशक में बड़ा नारा था. वैसे बिहार की राजनीति से लालू प्रसाद यादव अब नहीं हैं लेकिन आलू आज भी समोसे में है और समोसा बिहार की हर छोटी बड़ी दुकान में मिलता है.

बहराल समोसे का पहली बार ज़िक्र हिंदुस्तान की सरहद के अंदर मध्य कालीन युग के यात्री इब्न बतूता करते हैं. इब्न बतूता मोरक्को से थे और रेशम मार्ग से होते हुए तुग़लक़ साम्राज्य के वक़्त हिंदुस्तान आये थे. इब्न बतूता ने अपने लेखन में समोसे जैसी चीज़ का ज़िक्र किया है. यानी 13वीं शताब्दी में पहली बार समोसे का ज़िक्र होता है. उसके बाद समोसे का ज़िक्र निमतनामा में होता है जो 1469 और 1500 के बीच लिखी गयी एक किताब है जिसमें उस वक़्त के खान पान का विस्तृत ज़िक्र है.
तब गियास अल दिन खिलजी का पूरे मालवा में आधिपत्य था. ख़ास बात ये है कि इस किताब में 8 तरह के समोसों का ज़िक्र हुआ है लेकिन किसी में भी आलू की बात नहीं की गयी. यानी समोसे में नारियल, क्रीम, गोश्त और अन्य चीज़ों का खूब इस्तेमाल होता था. फिर इसका ज़िक्र आईने अकबरी में हुआ और आमिर खुसरो भी समोसे का ज़िक्र किया और वो बताते हैं कि समोसों में प्याज और गोश्त भरा जाता था और देसी घी में छाना जाता था. यानी समोसे तेल के बजाये देसी घी में भी छाने जाते रहे हैं. 500 साल पहले और उसकी बाद के समोसों में मोटा मोटी फ़र्क़ एक ये हुआ कि हिन्दुस्तान में धीरे धीरे समोसों में तेज़ और गरम मसालों के खूब इस्तेमाल हुआ जो ईरान और मध्य एशिया में नहीं होता था. बाद में इनमें हरी मिर्च का भी इस्तेमाल होने लगा.
कैसे आया हिंदुस्तान?
जानकार कहते हैं कि समोसा रेशम मार्ग के ज़रिये हिन्दुस्तान आया. कहीं ये सम्बुसा कहा जाता था और कहीं समसा लेकिन शुरुआत के दौर में समोसों में गोश्त, पिस्ता और क्रीम जैसे खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता था. खाद्य इतिहासकार पुष्पेश पंत का कहना हैं कि वैसे तो समोसा मध्य एशिया से आया है लेकिन वो अब उपमहाद्वीप का खाना बन चुका है. उनका कहना है कि अब समोसे को विदेशी कहना गाला होगा.
पुष्पेश पंत कहते हैं कि पश्चिम बंगाल में समोसा शिंगारा है और हैदराबाद में लुक्मी. गोवा में इसको चामुकास बोला जाता है और कोलकाता के क्लब्स में ये कॉकटेल समोसा कहलाया जा सकता है. इसमें दाल भी इस्तेमाल होती हैं और ये मीठे रूप में भी पकाया जाता है इसलिए समोसे का हिंदुस्तानीकरण पूरा हो चुका है. उनका मानना है की समोसा हिन्दुस्तान में फैला लेकिन उसकी पकड़ उत्तर, पश्चिम और पूर्वी भारत में ही रही और वो दक्षिण भारत में बहुत ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हो पाया.
हर 100 किलोमीटर पर बदलता है समोसा
खाने के जानकार मानते हैं कि दक्षिण भारत ने अपने लायक आलू की नयी डिश तैयार कर ली थी जिसे आलू बोंडा कहते हैं. समोसे की एक ख़ास बात ये है कि वो इतने लोकप्रिय होने के बाद किसी भी मंदिर के 56 भोग में भगवान को नहीं चढ़ाया जाता है. जानकार कहते हैं कि हिन्दुस्तान में पिछले 500 सालों में कई नयी चीज़ें आएं. सभी हिन्दुस्तान की खाद्य संस्कृति का हिस्सा बन गयी लेकिन सब धार्मिक और भगवान से जुड़े खान पान में अपनी जगह नहीं बना पाए. जैसे आज भी कई घरों में टमाटर का इस्तेमाल नहीं किया जाता है. पुष्पेश पंत कहते हैं कि जिस तरह से समोसे के अंदर का मसाला हर 100 किलोमीटर में बदल सकता है वैसे ही उसकी परत भी बदल जाती है. समोसे की परत कई जगह पतली होती है और कहीं बहुत मोटी. कराची में मिलने वाले पतली परत के समोसों को कागज़ी समोसा कहा जाता है.
बांग्लादेश में समोसों में प्रॉन से लेकर मछली का इस्तेमाल होता है और उससे लोग बहुत चाव से खाते हैं. मालदीव्स में भी समोसा मिलता है और उनको बाजिया कहा जाता है जिसमें टूना मछली मसाले के साथ समोसे में भरी जाती है. इस में दो राय नहीं कि पूरे उत्तर भारत में समोसा सबसे ज़्यादा बिकने वाली तली हुई खस्ता है. इसका एक कारण है कि गरम मौसम में काफी देर तक ये रखी जा सकती है. बाहर भी रखा जाये तो जल्दी ख़राब नहीं होगी. यही कारण है की हिन्दुस्तान से समोसा बर्मा होते हुए इंडोनेशिया और मलेशिया में अपनी जगह बना ली. समोसे केवल गाँव देहात या कहें कि आम आदमी का खस्ता नहीं है.
आजकल छोटे साइज के समोसे ड्रिंक्स के साथ दिख जायेंगे तो वहीं पतली परत के समोसे नामी गिरामी जगह मिल जायेंगे. कोलकाता के क्लब में इन्हे कॉकटेल समोसा बोला जाता है और पार्टियों में इनमे महंगी फिलिंग डाल कर अलग रूप दिया जाता है. आया कहीं से भी हो समोसे ने अपनी जगह पूरी दक्षिण एशिया और पूर्वी दक्षिण एशिया में बना ली है.
आप इसे तरह तरह की चटपटी चटनियों के साथ खा सकते है या उसके बिना. इसकी आप ठंडी और गरम चाट बना सकते हैं या श्याम की चाय के साथ खा सकते हैं. सफर में समोसे आपका टिकाऊ लंच भी हो सकता है और सुबह का गरम गरम नाश्ता भी. समोसा एक ऐसी चीज़ है जिसकी हम सबको याद बारिश में भी आती थी है. पकोड़ों से मन नहीं भरता तो समोसे ही याद आते हैं.
समोसा एक ऐसे क्रिकेट के प्लेयर की तरह है जो बल्लेबाज़ भी है और गेंदबाज़ भी. ज़रुरत पढ़ने पर वो विकेटकीपिंग भी कर सकता है और मार हुई तो मैच का ओपनिंग बैट्समैन भी. यही कारण है कि सरकारें आईं और गयीं, राजा आये और चले गए लेकिन समोसा वहीं का वहीं टिका हुआ है.


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