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हाथ धोकर संक्रमण रोकने की शुरूआत
कोरोना संकट ने हाथ धोने के महत्व को करीब 170 सालों के बाद एक बार फिर से रेखांकित कर दिया है। यह न सिर्फ संक्रामक बीमारियों से फैलाव रोकने में कारगर है बल्कि सबसे किफायती उपाय भी है। कोरोना संकट के दौरान यह बात साबित भी हुई। संसद में पेश किए आर्थिक सर्वेक्षण पर हाथ धोने की शुरूआत को लेकर एक संदर्भ का उल्लेख है।
इसमें कहा गया है कि बीमारियों से बचाव के लिए हाथ धोने के महत्व को सबसे पहले 1846 में महसूस किया गया। दरअसल, तब डाक्टर न तो दास्ताने पहनते थे और न ही हाथ धोते थे। इसकी वजह यह थी कि तब किटाणुओं के संक्रमण के जरिये बीमारी फैलने की कोई थ्योरी अस्तित्व में नहीं थी। यानी इससे बीमारी फैलने का अंदाजा ही नहीं था।
बताया गया है कि 1846 में हंगारी के एक सर्जन इग्नाज सेमेलवइस ने देखा कि उसके वार्ड में मृत्यु दर ज्यादा है जबकि नर्सों और मिडवाइफ द्वारा संभाले जा रहे दूसरे वार्ड में यह सात गुना कम है। उन्होंने इसके कारणों की पड़ताल की।
जिसमें यह पाया गया कि संक्रमण की वजह से ऐसा हो सकता है। दरअसल, सर्जन होने के नाते इग्नाज पहले पोस्टमार्टम करके आते थे और उसके बाद सीधे प्रसव कराने चले जाते थे। इस दौरान हाथ नहीं धोते थे।
जबकि नर्सें एवं मिडवाइफ के दिन की शुरूआत ही प्रसव कराने के कार्य से होती थी। यही से हाथ धोने की शुरूआत हुई। इससे संक्रमण कम होने आरंभ हो गए। इसके बाद 1885 में एक चिकित्सक लुइस पेश्चर ने किटाणुओं के संक्रमण की थ्योरी पेश की थी।
लेकिन हाथ धोने की शुरूआत का श्रेय इग्नाज को ही जाता है और उन्हें संक्रमण रोकने के लिए हाथ धोने की शुरूआत करने के लिए फादर आफ हैंड हाइजीन माना जाता है।
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