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आमतौर पर महिलाओं की डिलीवरी दो तरीकें से की जाती है।
आमतौर पर महिलाओं की डिलीवरी दो तरीकें से की जाती है। पहला नॉर्मल डिलीवरी और दूसरा सिजेरियन डिलीवरी। नॉर्मल डिलीवरी या प्रकृतिक प्रसव में समय आने पर बच्चा मां के पेट में नीचे की ओर पुश करने लगता है और धीरे-धीरे मां के यूट्रस का मुंह खुलता जाता है, और डॉक्टर की मदद से बच्चे को प्राकृतिक रूप से योनिमार्ग द्वारा बाहर निकाला जाता है। वहीं सिजेरियन डिलीवरी में महिला का सी-सेक्शन यानि आप्रेशन के जरिए बच्चे का जन्म होता है।
वहीं यह बहुत ही कम लोग जानते होंगे कि नॉर्मल डिलीवरी और सिजेरियन के अलावा वाटर बर्थ डिलीवरी से भी बच्चे को जन्म दिया जा सकता है। आईए जानते हैं इसके बारें में-
क्या है वाटर बर्थ डिलीवरी-
वाटर बर्थ डिलीवरी भी नॉर्मल डिलीवरी का ही एक प्रकार है। इसमें फर्क यह है और दावा किया जाता है कि इस दौरान प्रसव पीड़ा कम होती है। कुल मिलाकर वाटर बर्थ नॉर्मल डिलीवरी का वह तरीका है जो इस दौरान होने वाले दर्द को कम करने में मददगार है, अब अगर फेक्ट्स की बात की जाए तो कई अध्ययन यह बात कह चुके हैं कि वाटर बर्थ डिलीवरी में नार्मल डिलीवरी से 50 फीसदी दर्द कम होता है। इतना ही नहीं यह कई तरह के संक्रमण से भी मां और बच्चे को बचा सकती है।
कैसे की जाती है वाटर बर्थ डिलीवरी
वाटर बर्थ डिलीवरी में गर्भवती महिला को गुनगुने पानी के 500 लीटर बड़े टब में बैठाया जाता है। इस बात का भी पूरा ध्यान रखा जाता है कि टब की गहराई कम से कम ढाई से तीन फ़ीट हो। इसके अलावा यह पूरी तरह से गर्भवती के शरीर के आकार पर निर्भर करता है कि टब का आकार कैसा होगा। इस दौरान टब के पानी का तापमान एकसार रखने के लिए इसमें कई तरह के उपकरण लगाए जाते हैं। इनमें संक्रमण रोकने वाले और वाटर प्रूफ उपकरण होते हैं। प्रसव पीड़ा शुरू होने के कितने घंटे के बाद गर्भवती को टब में बिठाया जाएगा यह फैसला उसकी स्थिति का जायजा लेने वाले डॉक्टर करते हैं।
वाटर बर्थ डिलीवरी की फायदें-
डॉक्टर्स के अनुसार, वाटर बर्थ से योनि में होने वाला खिचाव या टियरिंग भी कम होती हैं। इसकी वजह है कि टिश्यू जब गरम पानी के संपर्क में आते हैं तो बहुत सॉफ्ट हो जाते हैं। क्योंकि गर्भवती गर्म पानी में होती है, तो उसके शरीर में एंड्रोफिन हार्मोन ज़्यादा बनते हैं, इसी वजह से दर्द का एहसास कम होता है। डॉक्टर्स का कहना है कि वाटर बर्थ डिलीवरी के दौरान एनेस्थीशिया की जरूरत काफी कम हो जाती है। वाटर बर्थ के दौरान ब्लड प्रेशर भी नियंत्रण में रहता है।
क्या खतरनाक है पानी में डिलीवरी करना ?
अमेरिकन प्रेगनेंसी एसोसिएशन के मुताबिक, महिलाओं को पानी में प्रसव के बारे में बहुत कम जानकारी है लेकिन पिछले 30 सालों में कई महिलाओं ने वाटर बर्थ के जरिए ही बच्चों को जन्म दिया है। रॉयल कॉलेज ऑफ ऑब्सटेट्रिशियन एंड गायनेकोलॉजिस्ट में छपे एक लेख के अनुसार, वाटर बर्थ में ऐसी अवस्था भी आ सकती है जिसमें पानी मां के खून में चला जाता है हालांकि यह बहुत कम होता है। इस प्रक्रिया को वाटर एंबॉलिज्म कहा जाता है।
गर्भनाल मुड़ जाए तो हवा के लिए बच्चा हांफने भी लग जाता है
यह भी हो सकता है कि जन्म के समय शिशु को बर्थ कैनाल में जटिलताओं का सामना करना पड़ें या फिर अगर गर्भनाल मुड़ जाए तो हवा के लिए बच्चा हांफने भी लग जाता है। शिशु जब तक मां के साथ गर्भनाल से जुड़े होते है तब तक वे उसी से सांस लेते हैं लेकिन उसके मुड़ने पर उन्हें सांस लेने में दिक्कत महसूस होने लगती है। वाटर बर्थ में एक यह भी खतरा है, कि शिशु के जन्म के तुरंत बाद गर्भनाल टूट भी सकती है। इससे बचने के लिए जरूरी है कि शिशु को ध्यान से मां की छाती की तरफ ले जाया जाए।
Rani Sahu
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