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हर पैरेंट्स की चाहत होती है कि उनका बच्चा बड़ा होकर खूब इज़्ज़त और नाम कमाएं. यही वजह है कि खुद तमाम दुख झेलकर भी पैरेंट्स बच्चे की पढ़ाई-लिखाई में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते हैं.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हर पैरेंट्स की चाहत होती है कि उनका बच्चा बड़ा होकर खूब इज़्ज़त और नाम कमाएं. यही वजह है कि खुद तमाम दुख झेलकर भी पैरेंट्स बच्चे की पढ़ाई-लिखाई में कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते हैं. फिर बात चाहे बच्चे के प्रति सख्त रवैया अपनाने का हो या फिर उसे बोर्डिंग स्कूल भेजने का. यह कदम बच्चे के लिए जितना सख्त मालूम पड़ता है, असल में पैरेंट्स के लिए भी उतना ही कठोर होता है.
जो पैरेंट्स अपने बच्चे को बोर्डिंग स्कूल भेज चुके हैं या भेजना चाहते हैं क्या वे बोर्डिंग स्कूल सिंड्रोम के बारे में जानते हैं? बच्चे को खुद से दूर करने से पहले पैरेंट्स को इस सिंड्रोम के बारे में जानना समझना चाहिए. साथ ही इस बात का पता लगाना चाहिए कि कहीं आपका बच्चा भी इस सिंड्रोम का शिकार तो नहीं.
क्या है बोर्डिंग स्कूल सिंड्रोम?
इस शब्द का इस्तेमाल सबसे पहले साइकोथेरेपिस्ट और साइकोएनालिस्ट प्रोफेसर जॉय स्कावेररियन ने की थी. हालांकि इसे मेडिकल कंडीशन नहीं माना जाता है, लेकिन इस स्थिति में बच्चे का मन तनाव और चिंता से भरा होता है. साइकोथेरेपिस्ट निक डफेल के मुताबिक यह एक ऐसा ट्रॉमा है, जिसे बच्चे उस वक्त महसूस करते हैं, जब उन्हें बोर्डिंग स्कूल भेज दिया जाता है.
बोर्डिंग स्कूल सिंड्रोम में क्या महसूस करता है बच्चा
अकेलापन और घर से दूरी – जब बच्चे को बोर्डिंग स्कूल भेज दिया जाता है, तब उसके मन में कई तरह के सवाल और ख्याल उठते हैं. जिसमें वह अकेलापन महसूस करता है. उसे लगता है घर जैसी दूरी कोई जगह नहीं है. उसके अंदर यह डर बना रहता है कि अब उसे अनजाने लोगों के साथ रहना और एडजस्ट करना पड़ेगा.
सबके साथ घुल-मिल नहीं पाते – बोर्डिंग स्कूल सिंड्रोम से जूझ रहे बच्चे खुद को उस परिस्थिति में फिट नहीं पाते हैं. उनका किसी से बात करने, दोस्ती बढ़ाने या फिर घुलने-मिलने में मन नहीं लगता है. वे अकेले और चुप-चुप रहते हैं.
अपनों से दूरी से लगता है आघात – जिनके साथ आपने ज़िंदगी के कई साल गुज़ारे हैं, अचानक अगर उनका साथ छूट जाए, तो बड़ों को भी हताशा होती है. ये तो फिर भी बच्चे होते हैं, जिनके मन में माता-पिता, भाई-बहन और बाकि रिश्तेदारों से बिछड़ जाने का सदमा घर कर जाता है.
शांत होने लगता है उनका मन – घर पर धमा-चौकड़ी मचाने वाले बच्चे को अगर अचानक दूसरी जगह भेज दिया जाए, तो यकीनन उनका मन से डरने लगता है. इसी डर में बच्चे का नेचर शांत होने लगता है. उसे किसी से भी बात करना और बच्चों के साथ खेलना पसंद नहीं आता है, क्योंकि उसके मन में लगातार परिवार से अलग होने की बात घूमती रहती है.
Tara Tandi
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