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जानिए श्राद्ध करते वक्त किन बातों का ध्यान रखना है जरूरी

Ritisha Jaiswal
18 Sep 2021 6:51 AM GMT
जानिए श्राद्ध करते वक्त किन बातों का ध्यान रखना है जरूरी
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भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से सोलह दिवसीय श्राद्ध प्रारंभ होते हैं, इसलिए श्राद्ध 21 सितंबर से शुरू हो रहे हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से सोलह दिवसीय श्राद्ध प्रारंभ होते हैं, इसलिए श्राद्ध 21 सितंबर से शुरू हो रहे हैं और आश्विन महीने की अमावस्या को यानि 6 अक्टूबर, दिन बुधवार को समाप्त होंगे | श्राद्ध को महालय या पितृपक्ष के नाम से भी जाना जाता है |माना जाता है इस दौरान श्राद्ध कर अपने पितरों को मृत्यु च्रक से मुक्त कर उन्हें मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है। आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए श्राद्ध के दौरान किन बातों का ध्यान रखना जरूरी है।

श्राद्ध के समय ध्यान रखें ये बातें
श्राद्ध कार्य दोपहर के समय करना चाहिए। वायु पुराण के अनुसार शाम के समय श्राद्धकर्म निषिद्ध है। क्योंकि शाम का समय राक्षसों का है।
श्राद्ध कर्म कभी भी दूसरे की भूमि पर नहीं करना चाहिए। जैसे अगर आप अपने किसी रिश्तेदार के घर हैं और श्राद्ध चल रहे हैं, तो आपको वहां पर श्राद्ध करने से बचना चाहिए। अपनी भूमि पर किया गया श्राद्ध ही फलदायी होता है। हालांकि पुण्य तीर्थ या मन्दिर या अन्य पवित्र स्थान दूसरे की भूमि नहीं माने जाते, लिहाजा आप पवित्र स्थानों पर श्राद्ध कार्य कर सकते हैं।
श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना बेहतर होता है।
श्राद्ध में तुलसी व तिल के प्रयोग से पितृगण प्रसन्न होते हैं। लिहाजा श्राद्ध के भोजन आदि में इनका उपयोग जरूर करना चाहिए।
श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान बड़ा ही पुण्यदायी बताया गया है। अगर हो सके तो श्राद्ध में ब्राह्मणों को भोजन भी चांदी के बर्तनों में ही कराना चाहिए।
श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन जरूर करवाना चाहिए। जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण को भोजन कराए श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन ग्रहण नहीं करते और ऐसा करने से व्यक्ति पाप का भागी होता है।
श्राद्ध के दिन बनाए गए भोजन में से गाय, देवता, कौओं, कुत्तों और चींटियों के निमित भी भोजन जरूर निकालना चाहिए। देखिये किसी भी हाल में कौओं और कुत्तों का भोजन उन्हें ही कराना चाहिए, जबकि देवता और चींटी का भोजन आप गाय को खिला सकते हैं ।
ब्राह्मण आदि को भोजन कराने के बाद ही घर के बाकी सदस्यों या परिजनों को भोजन कराएं ।
एक ही नगर में रहने वाली अपनी बहन, जमाई और भांजे को भी श्राद्ध के दौरान भोजन जरूर कराएं। ऐसा न करने वाले व्यक्ति के घर में पितरों के साथ- साथ देवता भी भोजन ग्रहण नहीं करते।
श्राद्ध के दिन अगर कोई भिखारी या कोई जरूरमंद आ जाए तो उसे भी आदरपूर्वक भोजन जरूर कराना चाहिए।
श्राद्ध के भोजन में जौ, मटर, कांगनी और तिल का उपयोग श्रेष्ठ रहता है। तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है। कहते हैं तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं, साथ ही श्राद्ध के कार्यों में कुशा का भी महत्व है। इसके अलावा श्राद्ध के दौरान चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बांसी अन्न निषेध है । आपको इन सब बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए


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