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जानिए हेल्दी प्रैग्नेंसी के लिए ये जरुरी बातें

Bhumika Sahu
3 Jun 2022 9:09 AM GMT
जानिए हेल्दी प्रैग्नेंसी के लिए ये जरुरी बातें
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यह गर्भधारण से पूर्व होने वाले चैकअप में शामिल होना चाहिए.

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। गर्भावस्था के कारण महिलाओं के शरीर में हारमोन से जुड़े कई बदलाव आते हैं. इन में से कुछ बदलाव के कारण उन्हें मसूड़ों की बीमारी होने का जोखिम बढ़ जाता है. गर्भावस्था के दौरान शरीर में प्रोजेस्टेरौन का स्तर बढ़ जाता है, जिस से प्लाक में मौजूद बैक्टीरिया के प्रति गतिविधि तेज हो जाती है और इस से मसूड़ों की बीमारी यानी सूजन (जिंजिवाइटिस) की समस्या हो सकती है. प्लाक वह परत होती है, जो दांतों पर जम जाती है. आमतौर पर अच्छी ओरल केयर वाली गर्भवती महिलाओं में भी प्रोजेस्टेरौन का स्तर बढ़ने के कारण यह समस्या हो सकती है, इसलिए अगर कोई महिला गर्भधारण करने की योजना बना रही है, तो बेहतर होगा कि वह डैंटल चैकअप करा ले और अगर जरूरत हो तो दांतों की समस्या का इलाज भी करा ले. यह गर्भधारण से पूर्व होने वाले चैकअप में शामिल होना चाहिए.

मसूड़ों की बीमारी जिंजिवाइटिस दांतों के आसपास मौजूद कोमल कोशिकाओं का एक संक्रमण होता है. इस में दर्द नहीं होता और यही वजह है कि इस पर ध्यान नहीं जाता और इसलिए इस का इलाज भी नहीं हो पाता है. इस के चेतावनी संकेतों में मसूड़ों का लाल या उन से खून निकलना, सूजन आना या कमजोर होना आदि शामिल है. ऐसे मसूड़े जिन की दांतों पर पकड़ ढीली हो गई हो या फिर वे दांतों से अलग हो रहे हों, इस बीमारी के संभावित संकेत हैं. मुंह में खराब स्वाद का रहना, सांस की बदबू या फिर स्थाई दांतों की पकड़ में बदलाव आना भी मसूड़ों में बीमारी होने का संकेत है.
अगर गर्भवती महिला के दांतों की बीमारी का इलाज नहीं किया गया तो इस से काफी गंभीर नतीजे निकल सकते हैं. कभीकभी मसूड़ों के किनारों और दांतों के बीच सूजन भी दिखाई देती है. यह सूजन नुकसानरहित होती है. लेकिन इस से भी खून निकलने लगता है. यह अकसर लाल शहतूत के आकार की होती है, जिसे गम ऐप्युलिस कहते हैं. इस सूजन को प्रैगनैंसी ट्यूमर भी कहते हैं, लेकिन इस की प्रवृत्ति कैंसर की नहीं होती है. यह गम ऐप्युलिस डिलिवरी के बाद अपनेआप गायब हो जाते हैं. लेकिन उस के बाद भी दिखाई दे, तो उसे डैंटल सर्जन लोकल ऐनेस्थीसिया दे कर निकाल सकता है.
अगर गर्भवती महिलाएं इन समस्याओं का उपचार न कराएं तो ये बहुत गंभीर रूप भी ले सकती हैं. मसूड़ों की समस्या और अचानक गर्भपात, समयपूर्व प्रसव, प्रीऐक्लंप्सिया और गैस्टेशनल डायबिटीज के बीच कुछ संबंध हो सकता है. कई शोधकर्ता इन विषयों पर काफी समय से शोध कर रहे हैं. इन शोधों के नतीजे कुछ भी हों, लेकिन इन से एक बात तो यह साफ है कि गर्भधारण की योजना बनाने से पहले यह तय करना बेहतर है कि आप के मुंह में किसी भी प्रकार का संक्रमण न रहे. अगर इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो प्रैगनैंसी जिंवाइटिस होने के कारण दांत को सपोर्ट करने वाली हड्डी को नुकसान भी पहुंच सकता है.
मसूड़ों की बीमारी बढ़ कर दांतों से सटी हड्डियों और दांतों को कसने वाली सस्पैंसरी ऐपेरेटस में भी पहुंच कर पेरियोडोंटल बीमारी की वजह बन सकती है. पेरियोडोंटल बीमारी से ऐसी गंभीर बीमारी हो सकती है, जिस में वांछित नतीजे हासिल करने के लिए डैंटल सर्जन की जरूरत होती है. पेरियोडोंटल बीमारी के लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन यह लंबे समय में होने वाली बीमारी है और इस की वजह से दांत पसीजने लगते हैं और मसूड़ों पर जोर पड़ता है. दिन में मसूड़ों में लगा सफेद या पीला डिस्चार्ज दिखाई देता है, जिस से मुंह से बदबू आती है और स्वाद खराब रहता है. पेरियोडोंटल बीमारी से पीडि़त जच्चा शिशु के मुंह का चुंबन लेते समय ये कीटाणु उस के मुंह तक पहुंचा सकती है, जो उस के लिए नुकसानदेह हो सकता है.
जर्नल औफ नैचुरल साइंस, बायोलौजी ऐंड मैडिसिन के अनुसार, मसूड़ों में जलन पैदा करने वाले बैक्टीरिया रक्तप्रवाह के साथ गर्भ में पल रहे भू्रण तक पहुंच सकते हैं. मसूड़ों की बीमारी से ऐसे ऐंडोटौक्सिंस उत्पन्न हो सकते हैं, जो साइटोकाइंस और प्रोस्टाग्लैंडिंस का उत्पादन बढ़ा देते हैं. पेरियोडोंटाइटिस (लंबे समय तक रहने वाली मसूड़ों की बीमारी) से पीडि़त गर्भवती महिला में समयपूर्व प्रसव होने की आशंका 4 से 7 गुना अधिक रहती है. मसूड़ों से जुड़ी समस्या को अकसर महिलाएं गंभीरता से नहीं लेती हैं, विशेषतौर पर तब जब उस में दर्द न हो रहा हो. लेकिन जब मसूड़ों की समस्या के कारण समयपूर्व प्रसव होता है या सामान्य से कम वजन के शिशु का जन्म होता है, तब इस के नतीजे भी गंभीर होते हैं.
बैक्टीरिया संक्रमण से निकले इस जानलेवा हानिकारक तत्त्व या जहर के कारण नवजात शिशु का वजन सामान्य से कम रह सकता है.
यूएस नैशनल लाइबे्ररी औफ मैडिसिन, नैशनल इंस्टिट्यूट्स औफ हैल्थ जैसे विश्वसनीय सैंटरों द्वारा प्रकाशित किए गए शोध में सामने आया है कि समयपूर्व प्रसव और कम वजन वाले बच्चों के 1 महीना भी जीवित न रहने की आशंका 40 गुना अधिक होती है. 1 महीने तक जीवित रहने वाले ऐसे बच्चों में न्यूरोडैवलपमैंटल गड़बड़ी, स्वास्थ्य से संबंधित समस्याएं और जन्मजात विकार का जोखिम काफी ज्यादा होता है, बल्कि समयपूर्व प्रसव होना ही लंबी अवधि की सभी न्यूरोलौजिकल परिस्थितियों में से करीब आधे से ज्यादा मामलों की वजह है. समयपूर्व प्रसव के बाद जन्मे शिशुओं में फेफड़ों की जन्मजात बीमारी, आंतडि़यों में जख्म, कार्डियोवैस्क्युलर विकार, कमजोर शारीरिक प्रतिरोधक क्षमता और श्रव्य व दृश्य समस्याएं होती हैं. व्यावहारिकता के लिहाज से कम संभावनाओं के साथ जन्म लेने वाले शिशुओं में मृत्यु दर बहुत अधिक होती है. उन में जटिलताओं की दर भी काफी ज्यादा होती है.
मसूड़ों की बीमारी से ऐसे ऐंडोटौक्सिंस उत्पन्न हो सकते हैं, जो साइटोकाइंस और प्रोस्टाग्लैंडिंस का उत्पादन बढ़ा देते हैं. गर्भवती महिलाओं में साइटोकाइंस के उच्च स्तर से गर्भाशय की झिल्ली फट सकती है और इस तरह समयपूर्व प्रसव हो सकता है. (साइटोकाइंस ऐसे नियामकीय प्रोटीन होते हैं, जो कोशिकाओं के बीच संदेशवाहक के तौर पर काम करते हैं) बैक्टीरिया संक्रमण से निकले इस जानलेवा तत्त्व या जहर के कारण नवजात का वजन सामान्य से कम रह सकता है. बैक्टिरियल संक्रमण से निकलने वाले इस जानलेवा जहर के कारण सामान्य से कम वजन वाले शिशु जन्म ले सकते हैं. समयपूर्व प्रसव और नवजात शिशु का वजन सामान्य से कम रहने के करीब 30 से 50 फीसदी मामलों की वजह ऐसे संक्रमण होते हैं. मसूड़ों की समस्या भी उन संक्रमणों में से एक है, जिन के कारण ऐसे नतीजे आते हैं.
फिर भी अच्छी खबर यह है कि मसूड़ों की बीमारियों का आसानी से इलाज संभव है और इन की रोकथाम भी आसानी से की जा सकती है. इन का इलाज कराना बहुत आसान है. अत: अगर आप गर्भधारण की योजना बना रही हैं, तो सब से पहले अपने डैंटिस्ट के पास जाएं और जांच कराएं कि आप को दांतों से संबंधित कोई समस्या तो नहीं है. अगर है तो उस का तुरंत इलाज करवाएं.
गर्भावस्था के दौरान क्या करें
जैसे ही आप गर्भधारण करें, तुरंत डैंटिस्ट से मसूड़ों का चैकअप कराएं.

कम से कम दिन में 2 बार ब्रश करें. 1 बार फ्लास करें और गर्भावस्था में जिंजिवाइटिस से बचने के लिए ऐंटीमाइक्रोबियल सौल्यूशन से कुल्ला करें.
ज्यादा मीठे खाद्य या पेयपदार्थों से परहेज करें. ऐसे खाद्यपदार्थों को तरजीह दें, जो प्रोटीन, कैल्सियम, फासफोरस और विटामिन ए, सी, डी के साथसाथ फौलिक ऐसिड के भी अच्छे स्रोत हों.
गर्भावस्था के दौरान नियमित चैकअप और स्केलिंग व क्लीनिंग से डैंटिस्ट को आप के मसूड़ों के स्वास्थ्य पर नजर रखने में मदद मिलेगी और किसी भी आने वाली समस्या का इलाज समय पर हो सकेगा.
गर्भावस्था के दौरान अगर मसूड़ों में किसी भी समस्या का संकेत मिलता है, तो तुरंत डैंटिस्ट से मिलें.
शिशु को जन्म देने के बाद भी डैंटिस्ट से जरूर मिलें विशेषतौर पर पहले तीन महीनों तक. शिशु के 12 महीने के होते ही उसे डैंटिस्ट के पास जरूर ले कर जाएं.
बारबार उबकाई और उलटी आने की समस्या से जूझ रही गर्भवती महिलाओं को दांतों की सतह को नुकसान से बचाने के लिए सलाह :
कमकम मात्रा में संपूर्ण आहार लें. दिन भर के दौरान कम मात्रा में ऐसा भोजन खाएं, जो प्रोटीन से भरपूर हो जैसे पनीर.
उलटी करने के बाद अच्छे टूथपेस्ट या 1 चम्मच बेकिंग सोडा (सोडियम बाईकार्बोनेट) को 1 कप पानी में मिलाएं या फिर फ्लोराइड युक्त कोई भी माउथवाश से कुल्ला करें. इस से दांतों की सतह पर मिनरल लौटाने में मदद मिलती है.
उलटी करने के तुरंत बाद ब्रश न करें, क्योंकि मुंह के ऐसिड से दांतों की सतह काफी कमजोर हो जाती है और तुरंत ब्रश करने से इन्हें और नुकसान पहुंच सकता है.
एक कोमल टूथब्रश और फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट से दिन में 2 बार ब्रश करें, इस से दांत मजबूत होंगे.

जिंजिवाइटिस मसूड़ों की बीमारी का शुरुआती चरण होता है और इसे पेशेवर स्कैलिंग व क्यूरेटेज से हटाया जा सकता है. डीप स्कैलिंग और क्यूरेटेज में प्लाक और टार्टर को मसूड़ों की ऊपरी और निचली सतह से हटा कर दांतों की पौलिशिंग की जाती है. मसूड़ों की समस्या का इलाज करने के लिए रूट प्लानिंग भी की जा सकती है, जिस के बाद दांतों की पौलिशिंग होती है. रूट प्लानिंग के दौरान दांतों की सतह पर मौजूद खुरदरे धब्बों को समान किया जाता है, जिस से मसूड़ों को चिपकने के लिए साफ सतह मिलती है. फ्लैप सर्जरी और म्यूको जिंजिवल सर्जरी जैसी सर्जिकल प्रक्रियाओं का इस्तेमाल कर मसूड़ों की ज्यादा गंभीर बीमारियों को दूर किया जा सकता है. हड्डियों को और नुकसान से बचाने के लिए बोन ग्राफ्टिंग भी की जा सकती है, जिस से दांत को टूटने और ऐक्सफौलिएशन से बचाया जा सकता है.


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