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लाइफ स्टाइल
संतान को योग्य बनाने के लिए जरूर जान लें ये 5 बातें
Gulabi Jagat
4 March 2021 10:14 AM GMT
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चाणक्य के अनुसार संतान को योग्य बनाने के लिए माता पिता को कठोर परिश्रम करना चाहिए
Chanakya Niti Hindi: चाणक्य के अनुसार संतान को योग्य बनाने के लिए माता पिता को कठोर परिश्रम करना चाहिए. क्योंकि योग्य संतान जहां कुल का नाम रोशन करती है वहीं श्रेष्ठ राष्ट्र के निर्माण भी अपना विशिष्ट योगदान प्रदान करती है. लेकिन प्रश्न उठता है कि संतान को कैसे योग्य बनाया जाए. क्योंकि हर माता पिता का सपना होता है कि उसकी संतान आज्ञाकारी और योग्य बने लेकिन इस दिशा में हर किसी को पूर्ण सफलता नहीं मिलती है.
चाणक्य के अनुसार कुशल और योग्य संतान माता पिता का अभिमान होती है. योग्य संतान माता पिता के सम्मान में वृद्धि करती है. वे माता पिता भाग्यशाली होते हैं जिनकी संतान योग्य होती है. संतान को योग्य बनाने के लिए आचार्य चाणक्य ने कुछ महत्वपूर्ण बातें बताई हैं इन बातों को जरूर जानना चाहिए.
संतान को सदाचार के गुणों से पूर्ण बनाएं
चाणक्य के अनुसार संतान को सदाचारी बनाना चाहिए. ये कार्य माता पिता द्वारा ही पूर्ण किया जा सकता है. क्योंकि संतान की प्रथम पाठशाला घर ही होती है. मां यदि शिक्षक हैं तो पिता पाठशाला के प्राचार्य हैं. इसलिए दोनों को मिलकर बच्चों में ऐसे संस्कार डालने का प्रयास करना चाहिए जिससे वे जीवन में श्रेष्ठ बन सकें.
झूठ बोलने से रोकें
चाणक्य के अनुसार बच्चों में झूठ बोलने की आदत बहुत जल्दी पनपती है. इस स्थिति को लेकर माता पिता को अत्यंत गंभीर रहना चाहिए . संतान को ऐसा माहौल और शिक्षा प्रदान करें जिससे वे इस आदत से दूर रहें.
जीवन में अनुशासन की उपयोगिता के बारें में बताएं
चाणक्य कहते हैं कि जीवन में यदि सफल होना है तो अनुशासन के महत्व को समझना ही होगा. जीवन में यदि अनुशासन नहीं है तो सफल होने के लिए संतान को संघर्ष करना पड़ता है.
परिश्रम करने के लिए प्रेरित करें
चाणक्य के अनुसार माता पिता बच्चों को परिश्रम करने के लिए निरंतर प्रेरित करते रहना चाहिए. परिश्रमी बनने से लक्ष्य आसानी से प्राप्त होते हैं. इसलिए बच्चों को परिश्रम के महत्व के बारे में जरूर बताएं.
शिक्षा के प्रति जागरूक बनाएं
शिक्षा यानि ज्ञान सभी प्रकार के अंधकार को दूर करती है. इसलिए बेहतर शिक्षा के लिए प्रेरित करना चाहिए. संतान को उच्च और आर्दश शिक्षा के बारे में बताएं.
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