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सुनना कितना जरूरी होता है क्या कभी आपने इसके बारे में सोचा है और क्या आपने यह सोचा है कि सुनने पर बात करने के लिए, इसको समझने के लिए कोई एक खास दिन होना चाहिए
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सुनना कितना जरूरी होता है क्या कभी आपने इसके बारे में सोचा है और क्या आपने यह सोचा है कि सुनने पर बात करने के लिए, इसको समझने के लिए कोई एक खास दिन होना चाहिए? जैसे तमाम चीजों का दिन होता है, मुस्कुराने का दिन होता है, प्यार करने का एक दिन होता है, माता पिता के नाम कैलेंडर में एक खास दिन होता है. क्या उसी तरीके से सुनने के लिए भी कोई दिन होता है? जी हां बिल्कुल होता है. 18 जुलाई यानी आज वर्ल्ड लिसनिंग डे है. इसको हिंदी में विश्व श्रवण दिवस भी कह सकते हैं.
इस दिन को मनाने के पीछे का मूल मकसद सुनना और सुनने का अभ्यास करना है और इसके जरिए दुनिया की संस्कृतियों, समाजों, पर्यावरण और सभ्यताओं को समझने की कोशिश की जाती है. इसका मकसद मानव और प्रकृति के बीच में मौजूद संबंध को और प्रगाढ़ करना और उस संबंध में अंतर्निहित तत्वों को समझना है. यह ध्वनियों के अध्ययन का दिन है.
वर्ल्ड लिसनिंग डे का महत्व और इतिहास
वर्ल्ड लिसनिंग डे या विश्व श्रवण दिवस 18 जुलाई को कनाडा के संगीतकार और मशहूर पर्यावरणविद् रेमंड मरे शेफ़र के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. रेमंड को ध्वनिक पारिस्थितिकी के संस्थापक के रूप में देखा जाता है. 18 जुलाई, 1933 को इनका जन्म हुआ था. बड़े होकर उन्होंने खुद का वर्ल्ड साउंडस्केप प्रोजेक्ट विकसित किया. जिसने 1970 के दशक में ध्वनिक पारिस्थितिकी के मौलिक विचारों और प्रथाओं को रखा और उसको लेकर समाज में नए ढंग की जागरूकता विकसित की.
वर्ल्ड लिसनिंग डे को मनाने की शुरुआत 2010 में हुई थी. इसका मुख्य आकर्षण इसकी थीम होती है. जैसे 2017 की एक थीम देखें, 'लिसनिंग टू द ग्राउंड' थीम का नाम था. और इसको लेकर बताया गया कि "जैसे हम जमीन पर चलते हैं, कभी फुटपाथ पर, डामर की सड़क पर या किसी और सर्फेस पर. तो हमारे चलने में भी एक आवाज होती है, क्या हम उस आवाज को सुन सकते हैं, उसकी बारीकियों को समझ सकते हैं, अगर हमने उस आवाज को समझ लिया तो हो सकता है हम अपने लिए एक नई धरती खोज सकें. जहां ऐसा ही जीवन मुमकिन हो." ये बात एक बार में समझ आने वाली नहीं है लेकिन हम बार-बार पढ़ें तो समझ पाएंगे कि यह बात कितनी गहरी है और इसके जरिए समझ पाएंगे कि वर्ल्ड लिसनिंग डे के मायने कितने गहरे हैं.
इस बार की थीम है, "लिसनिंग एक्रोस बाउंड्रीज." इसकी भी कोशिश है कि यह बताया जा सके कि प्राकृतिक ध्वनियां मानव-निर्मित सीमाओं को नहीं पहचानती हैं. हमें वैज्ञानिक, चिकित्सा और संगीत के उद्देश्यों के साथ उनसे जुड़े ज्ञान की सभी शाखाओं में सुनने की भूमिका का पता लगाने के लिए सभी सीमाओं के पार जा सकें, सारी दुनिया बिना बाधा के हो जहां हम प्रकृति को महसूस कर सकें.
Tara Tandi
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