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जानिए चाय का इतिहास और क्या हैं इसके गुण

Tara Tandi
9 Jun 2022 9:00 AM GMT
Know the history of tea and what are its properties
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चाय की कथा भी भक्तिकाल के भक्त- कवि तुलसीदास के कथन ‘हरि अनन्त, हरि कथा अनन्ता’ जैसी ही है. इसका इतिहास वाकई काफी रोचक है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। चाय की कथा भी भक्तिकाल के भक्त- कवि तुलसीदास के कथन 'हरि अनन्त, हरि कथा अनन्ता' जैसी ही है. इसका इतिहास वाकई काफी रोचक है. भारत में तो चाय को लेकर एक जुनून है और इसके नाम से ही चाय पीने की तलब सी पैदा हो जाती है. सामाजिक समरसता का भी उदाहरण है चाय, क्योंकि क्या गरीब क्या अमीर, क्या राजा क्या प्रजा और क्या नेता और क्या अभिनेता, सभी चाय के तलबगार हैं. संबंधों तक में चाय ने पैठ बना ली है. किसी के घर जाओ और चाय न मिले तो उसे अनादर माना जाता है. लोग कहते मिल जाएंगे कि 'मैं उसके घर गया और उसने चाय तक नहीं पूछी.'यानी उसकी बेज्जइती हो गई.

80 प्रतिशत भारतीयों की सुबह चाय से होती है
कभी वो वक्त था जब चाय के लिए रकम के तौर पर अफीम दी जाती थी. अंग्रेजों ने जब इसे भारत में उगाया और लोगों को पीने के लिए प्रेरित किया तो भारतीयों ने शुरू में इसे पीने से ही इनकार कर दिया था. उस दौर में गांव वाले अपने बच्चों को चाय नहीं पीने देते थे. वे बच्चों को डराते थे कि चाय पियोगे तो तुम्हारा 'कलेजा' जल जाएगा. लेकिन अब चाय के साथ मसला क्रांतिकारी हो चुका है. ऐसा माना जाता है कि करीब 80 प्रतिशत भारतीयों की सुबह की शुरुआत गरमा-गरम चाय की प्याली से होती है. काम में मन न लग रहा हो, सिर या शरीर में दर्द हो, नींद को दूर रखना हो या वक्त ही बिताना हो तो चाय जैसी कोई चीज नहीं.
चीन में चाय की खोज होना माना जाता है
इसमें दो-राय नहीं कि चाय चीन की देन है और इसी देश से यह पूरी दुनिया में फैली. यह प्रसंग काफी रोचक और अनगढ़ है. कहते हैं कि चाय की खोज ईसा पूर्व 2737 में चीन के सम्राट शेन नॅंग ने की. वह उबला पानी पीते थे, एक बार लाव-लश्कर के साथ जंगल से गुजर रहे थे. रास्ते में आराम के वक्त पीने के लिए पानी उबाला जा रहा था कि बर्तन में पेड़ की कुछ पत्तियां गिर गईं, जिससे पानी का रंग बदल गया. इसे पिया गया तो ताजगी महसूस हुई. इसे ही चाय कहा गया. लेकिन उसके बाद करीब 2 हजार साल तक ये 'चाय' चीन में नदारद रही जो विस्मय पैदा करता है.
tea chaiकहते हैं कि चाय की खोज ईसा पूर्व 2737 में चीन के सम्राट शेन नॅंग ने की.
फिर चाय का वर्णन चीन में ईसा पूर्व 350 ईस्वी में हुआ और सातवीं सदी तक यह खासी लोकप्रिय हो गई. एक प्रचलित कथा के अनुसार छठी शताब्दी में चीन के हुनान प्रांत में भारतीय बौद्ध भिक्षु बिना सोए ध्यान साधना करते थे. वे जागे रहने के लिए एक खास पौधे की पत्तियां चबाते थे, यह असल में चाय थी. सातवीं शताब्दी में ही बौद्ध भिक्षुओं के जरिए चाय का प्रचार जापान और कोरिया में हुआ.
शाही परिवार ही ले पाता था चाय का लुत्फ
इतिहास बताता है कि 15वीं शताब्दी में पुर्तगाली और उसके बाद डच, फ्रेंच और ब्रिटिश सौदागर चीन पहुंचे और उन्होंने अपने देशों में चाय पहुंचाई. इसका स्वाद इतना निराला था कि उस वक्त सिर्फ शाही परिवार ही चाय पी पाता था, क्योंकि इसकी कीमत बहुत अधिक थी. चूंकि चाय चीन के अलावा कहीं नहीं उगती थी इसलिए चीनी कारोबारी यूरोपीय सौदागरों को चांदी और सोने के बदले चाय देते थे. ब्रिटिश कारोबारी थोड़ा और आगे निकल गए. उस वक्त चीन में अफीम पर प्रतिबंध था, इसलिए उन्होंने चाय के बदले चीनियों को अफीम देनी शुरू कर दी. वर्ष 1838 में जब चीन में अफीम तस्करों के लिए मौत की सजा निर्धारित कर दी, तब अंग्रेज कारोबारियों को चाय मिलने में समस्याएं आने लगीं, अफीम का यह संकट भारत में चाय के उत्पादन का कारण बन गया.
आसाम में पहला टी गार्डन हुआ था शुरू
ब्रिटेन की ईस्ट इंडिया कंपनी के पैर भारत में जम चुके थे. उन्होंने आसाम के सिंगफो कबीले को पेय पदार्थ के रूप में कुछ पीते देखा, जो स्वाद और गुण में चाय जैसा था. इसके बाद ही कंपनी ने 1837 में आसाम के चौबा क्षेत्र में पहला इंग्लिश टी गार्डन खड़ा किया और भारत में इसका उत्पादन शुरू हो गया. इसी दौरान कंपनी ने श्रीलंका में चाय का उत्पादन शुरू कर दिया. आज चाय की खेती अपनी मातृभूमि चीन के बाहर करीब 52 देशों में फल-फूल रही है.
ताजगी के लिए भी लोग पीते हैं चाय
अब सवाल यह है कि चाय इतनी मशहूर क्यों है और भारत सहित पूरा देश इसका दीवाना क्यों है. ऐसा क्यों हुआ कि 19वीं शती के उत्तरार्ध तक भारत में चाय की खपत न के बराबर थी. लेकिन आज भारत के हर चौराहे, नुक्कड़, टपरी पर कुछ न मिले, गरमा-गरम चाय अवश्य मिल जाएगी. अब चाय अपने औषधीय गुणों के कारण ही नहीं बल्कि रोजमर्रा के आनंद और ताज़गी के लिए एक जरूरत बन गई है.
tea चाय मूलरूप से कड़वी, गर्म तासीर वाली व ऊर्जादायक होती है. यह कफ-पित्त का शमन करती है.
देश के जाने-माने आयुर्वेदाचार्य आचार्य श्री बालकृष्ण का कहना है कि आयुर्वेद में चाय का प्रयोग औषधि के रूप में भी किया जाता है, लेकिन ज्यादा चाय पीने से नुकसान भी होता है. यह ऐसा पेय पदार्थ है जिसमें टैनिन और कैफीन होता है जो शरीर को स्फूर्ति प्रदान करने में सहायता करता है. इसलिए अक्सर थक जाने पर चाय पीने से फिर से स्फुर्ति का एहसास होता है. लेकिन हद से ज्यादा चाय लत बन जाए तो शरीर को नुकसान पहुंचाने लगती है.
ज्यादा चाय पीना नुकसानदायक
सोनीपत स्थित भगतफूल सिंह महिला विश्वविद्यालय की आयुर्वेद विभाग की प्रमुख डॉ. वीना शर्मा के अनुसार चाय मूलरूप से कड़वी, गर्म तासीर वाली व ऊर्जादायक होती है. यह कफ-पित्त का शमन करती है. यह उत्तेजित भी करती है. चाय के सेवन से अस्थमा के रोगियों को राहत मिलती है. काली चाय का सेवन मधुमेह का जोखिम कम करता है. चूंकि चाय में कैफीन होता है, इसलिए इसका ज्यादा सेवन अनिद्रा की समस्या पैदा कर सकता है. ज्यादा चाय का सेवन कब्ज पैदा करता है और पाइल्स की समस्या हो सकती है. उनका कहना है कि असल में काली चाय ही शरीर के लिए लाभकारी है, लेकिन इसका अधिक सेवन भी समस्याएं लाता है.
आयुर्वेद के प्राचीन ग्रंथों में चाय का वर्णन नहीं है, लेकिन इसके स्वाद और गुणों जैसे कई पेय पदार्थों की जानकारी है. 'चरकसंहिता' ग्रंथ के 'अन्नपानविधि अध्याय' के 'मद्यवर्ग' व 'इक्षुवर्ग' में कई
तरह के पेय पदार्थों का वर्णन है, जो चाय की तरह ही गुणकारी, स्फूर्तिवर्धक व आनंदकारी हैं, लेकिन उनका निर्माण चाय जैसी किसी पत्ती से नहीं किया गया है.
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