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- जानिये गोवा के इतिहास...
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गोवा के इतिहास को समझने के लिए पहले वहां के प्राचीन इतिहास को समझना आवश्यक है क्योंकि प्राचीन काल का गोवा आज के गोवा से बिल्कुल भिन्न हुआ करता था।
गोवा एक प्राचीन हिंदू शहर था, जिसका अब बहुत कम भाग ही बचा है। इसका उल्लेख पुराणों और कई शिलालेखों में गोव, गोवापुरी और गोमंत के नाम से मिलता है। एक समय था जब यहां पर सामाजिक और सांस्कृतिक बैठकों का आयोजन किया जाता था।
प्राचीन समय से ही गोवा और मंदिरों का अटूट संबंध रहा है। कई हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर हैं। गोवा के दक्षिण भाग में ईसाई समाज का अधिक प्रभाव देखने के लिए मिलता है लेकिन गोवा का वास्तुशास्त्र हिंदू संस्कृति से प्रभावित है।
गोवा के हिंदू संस्कृति के उदाहरणों के बारे में बात की जाए तो हमें महालसा नारायण मंदिर, भगवती मंदिर जैसे कई मंदिर देखने के लिए मिलते हैं।
श्री मंगेश या मंगेशी मंदिर को देख लीजिए, जो गोवा की राजधानी पणजी से 20 किलोमीटर दूर है जो सैकडों सालों से पोंडा क्षेत्र में मोंगरी पहाडी के बीच स्थित है।
मंगेश शिव का ही एक रूप हैं और यह मंदिर शिवजी के इन्हीं रूप को समर्पित है। मंगेश शिवजी देशभर के सभी मंगेश गौड सारस्वत ब्राह्मणों के लिए पूज्य हैं और उमके कुलदेवता या आराध्य हैं।
महालसा नारायण मंदिर के बारे में बात करें तो यह गोवा के सबसे सुंदर मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भगवान विष्णु के मोहनी अवतार को समर्पित है, जिन्होंने राक्षसों से अमृत छिनने के लिए यह अवतार लिया था।
इसके अलावा तांबड़ी सरला महादेव मंदिर 12वीं शताब्दी में बनवाया गया एक महादेव मंदिर है, राजा रामचंद्र के मंत्री हेमाद्री ने इसे बनवाया था। ताम्बडी सुरला महादेव मंदिर पणजी से लगभग 65 किलोमीटर दूर है। आज भी यहां महाशिवरात्रि अत्यंत हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।
बड़े-बड़े शासकों का शासन
गोवा एक छोटा सा राज्य है उस पर सातवाहन से लेकर विजयनगर साम्राज्य तक और बहामनी सल्तन से लेकर पुर्तगालियों ने शासन क्यों किया था। इसका उत्तर है गोवा की भौगोलिक स्थिति यानी जिस स्थान पर गोवा है वहां से पूरे अरब सागर से होते हुए अफ्रीका महाद्वीप तक जुड़कर व्यापार किया जा सकता है। यही कारण था कि भारत के बड़े-बड़े साम्राज्यों ने गोवा पर शासन किया था।
यदि गोवा के इतिहास और उसके वर्तामन के बारे में संक्षेप में कहा जाए तो गोवा हमेशा से ही एक हिंदू शहर ही था। आज भले ही वहां की संस्कृति पर ईसाइयत का प्रभाव देखने के लिए मिलता है परन्तु उसका मूल आज भी हिंदू संस्कृति ही है।
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Apurva Srivastav
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