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कोविड इंफेक्शन ठीक होने के बाद भी आगे चलकर हार्ट से जुड़ी बीमारियों के खतरे को बढ़ा देता है.
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | कोविड इंफेक्शन ठीक होने के बाद भी आगे चलकर हार्ट से जुड़ी बीमारियों के खतरे को बढ़ा देता है. यदि आपको कोविड इंफेक्शन हो चुका है और आपके लक्षण काफी माइल्ड थे तो भी एक कोविड से कभी इंफेक्टेड न हुए व्यक्ति के मुकाबले आपके हार्ट को ज्यादा खतरा है.
यह खुलासा हुआ है अमेरिका में हुई एक नई साइंस रिसर्च स्टडी में, जो 7 फरवरी को "नेचर मेडिसिन" नाम के मेडिकल जरनल में प्रकाशित हुई है.
पूरी दुनिया के कोरोना महामारी के चपेट में आने के तकरीबन दो साल यह स्टडी प्रकाशित हुई है, जो कोरोना वारयस के हार्ट पर पड़ने वाले प्रभावों की जांच करने वाली अब तक की सबसे बड़ी मेडिकल स्टडी है. इस टडी का सैंपल साइज काफी बड़ा है, जिसमें तकरीबन 11 मिलियन यानि 110 लाख लोगों के हेल्थ रिकॉर्ड का विस्तार से अध्ययन किया गया है.
कोरोना वायरस को लेकर शुरू में हुए अध्ययनों में यह बात सामने आई थी कि इस वारस का मानव शरीर पर लांग लास्टिंग प्रभाव पड़ता है. कोविड से रिकवर करने के बाद भी कई बार उसका असर शरीर पर लंबे समय तक बना रहता है.
कोविड इंफेक्शन का ह्दय पर प्रभाव
दो साल बाद यह स्टडी भी उसी बात की पुष्टि कर रही है. इस स्टडी में उन 110 लाख लोगों के ह्दय के स्वास्थ्य के हरेक जरूरी पहलू को जांचने की कोशिश की गई, जिन्हें हपिछले दो साल में कोरोना हो चुका है. फिर उनके हार्ट हेल्थ का तुलनात्मक अध्ययन उन लोगों के हार्ट हेल्थ के साथ किया गया, जिन्हें कभी कोविड नहीं हुआ.
इस स्टडी में प्रतिभागियों की उम्र, उनके स्वास्थ्य और बीमारियों से जुड़े अन्य पहलुओं को भी ध्यान में रखा गया था. जैसेकि यह बात दीगर है कि सिगरेट, एल्होकल और ओबिसिटी का हार्ट हेल्थ पर बुरा प्रभाव पड़ता है.
अध्ययन में शोधकर्ताओं ने पाया कि जो लोग कोविड से गुजर चुके थे, उनके ह्दय का स्वास्थ्य ज्यादा वलनरेबल था. 20 प्रकार की ह्दय से जुड़ी बीमारियों के प्रति उनका हार्ट ज्यादा संवेदनशील पाया गया. इसमें वो लोग भी शामिल थे, जिनमें कोविड के लक्षण ज्यादा गंभीर नहीं थे. जिन्हें अस्पताल में भर्ती होने की नौबत नहीं आई थी और जो बिना दवाइयों के आसानी से कोविड से रिकवर भी कर गए.
यह स्टडी डॉक्टरों की इस आशंका को सही साबित कर रही है कि एक बार कोरोना वायरस से ग्रस्त होने के बाद हमारे शरीर पर उसका प्रभाव लंबे समय तक रहता है. शरीर ज्यादा वलनरेबल और संवेदनशील हो जाता है. रोग प्रतिरोधक क्षमता पर उसका असर पड़ता है
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