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छोले-भटूरे बनाने का सबसे आसान रेसिपी जानिए

Teja
17 Dec 2021 8:08 AM GMT
छोले-भटूरे बनाने का सबसे आसान रेसिपी जानिए
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दिल्ली की कई छोले-भटूरे की दुकानों के बाहर लिखा होता है कि पहाड़गंज के असली छोले-भटूरे यहीं मिलते हैं. मतलब यही है कि अगर आपको स्वाद से भरपूर पंजाबी स्टाइल के छोले-भटूरे खाने हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क | दिल्ली की कई छोले-भटूरे की दुकानों के बाहर लिखा होता है कि पहाड़गंज के असली छोले-भटूरे यहीं मिलते हैं. मतलब यही है कि अगर आपको स्वाद से भरपूर पंजाबी स्टाइल के छोले-भटूरे खाने हैं तो उनका कोई न कोई रिश्ता पहाड़गंज से जुड़ा हुआ है. तो हम ऐसा क्यों नहीं करते कि आपको सीधे पहाड़गंज ही लिए चलते हैं और वहीं छोले-भटूरे की इस डिश का असली मजा उठा लेते हैं. आज हम आपको ऐसी दुकान पर ले चल रहे हैं जिसके बारे में कहा जाता है कि दिल्ली वालों को असली पंजाबी चने-भटूरे (छोले-भटूरे) का स्वाद चखाने का श्रेय इस दुकान को दिया जा सकता है. बड़ी बात यह भी है कि आप किसी फूड लवर (Food Lover) से पूछेंगे कि दिल्ली में ऐसी कौन सी दुकान है, जहां असली छोले-भटूरे मिलते हैं तो वह तुरंत इस दुकान (रेस्तरां) का नाम बता देगा.

यहां के चने भटूरे हैं खास
जिस पहाड़गंज पर हम आपको लिए चल रहे हैं, वह छोटे होटलों व गेस्ट हाउसों के लिए भी खासा मशहूर है. देसी विदेशी घुमक्कड़ टूरिस्ट इन्हीं आशियानों में रुकते हैं. उसका कारण यह है कि इनके किराए बहुत ही मुफीद है, साथ ही पहाड़गंज इलाके में खाने-पीने से लेकर सभी सुविधाएं मौजूद हैं. पहाड़गंज की इसी चूना मंडी (राजगुरु मार्ग) पर चने-भटूरे की 'सीता राम दीवान चंद चना भटूरा' की दुकान है. असल में दुकान वाले तो अपने को चना भटूरा बेचने वाला बताते हैं और दुकान के साइन बोर्ड पर भी यही नाम लिखा हुआ है, लेकिन प्रचलन के चलते इस दुकान को छोले-भटूरे की दुकान ही कहा जाता है. दुकान के अंदर एक स्टैंडिंग हॉल बनाया गया है, लोग काउंटर से छोले-भटूरे की प्लेट लेते हैं और खड़े होकर ही खाते हैं. यहां बैठने की कोई व्यवस्था नहीं है. उसका कारण यह है कि ज्यादा ग्राहकों को सर्व करने के चलते यहां बैठने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है.
चने-भटूरे की 'सीता राम दीवान चंद चना भटूरा' की ये दुकान काफी फेमस है.चने-भटूरे की 'सीता राम दीवान चंद चना भटूरा' की ये दुकान काफी फेमस है.
यहां का स्वाद लोगों को है पसंद
जब आप यहां आकर छोले-भटूरे की प्लेट लेंगे तो देखकर लगेगा कि बड़ा ही सीधा-सादा सिस्टम है यहां का. एक पेपर प्लेट में दो भटूरे दे दिए जाएंगे और एक अलग दोने (कटोरी) में गाढ़े छोले रखे होंगे. इस छोले में दो-एक मसाले वाले आलू के टुकड़े होंगे और ऊपर से हरी चटनी का छिड़काव होगा. अलग से एक छोटी पेपर प्लेट में मसाले भरी हरी मिर्च, कटी प्याज और सीजनल अचार होगा, जिसमें गाजर, आम, आंवला आदि शामिल है. बस यही है इस डिश की कहानी. आपको यह भी बताते चलें कि दुकान में पनीर वाले यह भटूरे तले नहीं जाते हैं. वह कहीं और से बनाकर यहां लाए जाते हैँ और यहां एक बड़े तवे में उनको दोबारा गरम कर पेश किया जाता है. आप भटूरे का एक टुकड़ा छोले के साथ मुंह में डालेंगे तो आपको तुरंत समझ में आ जाएगा कि स्वाद अलग, अनूठा और जानदार है.
यहां छोले भठूरे की कीमत 79 रुपये है.यहां छोले भठूरे की कीमत 79 रुपये है.
असल में यहां भटूरे के साथ पिंडी चना परोसा जाता है, जिसकी ग्रेवी बहुत गाढ़ी होती है और वह देखने में स्पाइसी तो लगेगा, लेकिन इसका स्वाद तीखे के बजाय मसालेदार होगा. यह इतने स्वादिष्ट होते हैं कि आप पूरा खत्म कर ही संतुष्ट होते हैं. यहां साथ में मीठी लस्सी भी सर्व की जाती है. छोले भठूरे की कीमत 79 रुपये है जबकि लस्सी का गिलास 40 रुपये में मौजूद है.
चने भठूरे के अलावा लस्सी का गिलास 40 रुपये में यहां मौजूद है.चने भठूरे के अलावा लस्सी का गिलास 40 रुपये में यहां मौजूद है.
1950 में साइकिल से शुरू हुआ था धंधा
चने-भटूरे के इस काम को वर्ष 1950 में सीता राम दीवान चंद ने शुरू किया था. उनका परिवार पाकिस्तान स्थित लाहौर से आया था. पहले उन्होंने साइकल पर इलाके के डीएवी स्कूल के बाहर इन्हें बेचा. उसके बाद इलाके के ही इंपीरियल सिनेमा के बाहर रेहड़ी पर गरमा-गरम भटूरे तलकर बेचे. फिर चूना मंडी में दुकान ले ली. बाद में दुकान की जिम्मेदारी उनके बेटे प्राण नाथ कोहली के जिम्मे आ गई. अब साथ में इस पूरे बिजनेस को उनके बेटे पुनीत कोहली ने संभाला हुआ है. सुबह 8 बजे दुकान खुल जाती है और शाम 6 बजे या उससे पहले भी सारा सामान निपट जाता है. कोई अवकाश नहीं है.


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