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जानिए कैसे आपकी खुशियों का पैमाना तय करते हैं आपके जीन

Tara Tandi
7 Nov 2020 9:55 AM GMT
जानिए कैसे आपकी खुशियों का पैमाना तय करते हैं आपके जीन
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कुछ लोग हर हाल में खुश रहने की कला में माहिर होते हैं, जबकि कइयों के मन में दुनिया के तमाम सुख-साधन भी जीवन से संतुष्टि का भाव नहीं जगा पाते।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क| कुछ लोग हर हाल में खुश रहने की कला में माहिर होते हैं, जबकि कइयों के मन में दुनिया के तमाम सुख-साधन भी जीवन से संतुष्टि का भाव नहीं जगा पाते। एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी के हालिया अध्ययन में जीन को इस अंतर के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक इनसान की 40 फीसदी खुशियां उसकी जेनेटिक संरचना पर निर्भर करती हैं। बाकी 60 प्रतिशत खुशियां जीवन में किसी उद्देश्य की मौजूदगी, रोजमर्रा के कामकाज से जुड़ाव के स्तर और भविष्य को लेकर सकारात्मक सोच से तय होती हैं।

मुख्य शोधकर्ता सुजैन जिन की मानें तो '5-एचटीटीएलपीआर' जीन की मौजूदगी जीवन से संतुष्टि का स्तर कई गुना बढ़ा देती है। 2016 में हुए एक अमेरिकी अध्ययन में भी तीन ऐसी जीन की पहचान की गई थी, जो खुशियों का ग्राफ ऊपर ले जाने में अहम भूमिका निभाते हैं।

हालांकि, जिन ने यह भी कहा कि खुशियों से जुड़े जीन के नदारद होने का यह मतलब नहीं है कि इनसान हंसते-खेलते जीवन की उम्मीद नहीं पाल सकता। स्वस्थ खानपान और व्यायाम अपनाने के साथ ही रोज रात को आठ घंटे की मीठी नींद लेने, रचनात्मक कार्यों में मन लगाने, प्रकृति के साथ समय गुजारने व दूसरों की मदद करने से 'फील गुड' का एहसास जगाने में खासी मदद मिलती है।

चार का चमत्कार जरूरी

1.5-एचटीटीएलपीआर : इस जीन की मौजूदगी बेहतर आत्मविश्वास, सकारात्मक सोच और जुझारूपन के लिए जिम्मेदार मिली, जो जीवन से संतुष्टि का भाव जगाने के लिए अहम हैं।

2.सकारात्मक अनुभव : यह अतीत और वर्तमान से जुड़े सकारात्मक अनुभवों पर निर्भर करती है। इससे व्यक्ति में यह आत्मविश्वास जगता है कि उसका भविष्य भी अच्छे से गुजर जाएगा।

3.जीवनशैली से जुड़ाव : घर हो या ऑफिस का कामकाज, परिजन हों या सहकर्मी और आसपास रहने वाले लोग, जीवन से संतुष्टि का एहसास पैदा करने के लिए सभी से जुड़ाव महसूस करना जरूरी है।

4.उद्देश्य की मौजूदगी : किसी की मदद करने का जज्बा और खुद के सपनों को हकीकत का चोला पहनाने का अरमान भी खुशियों का स्तर तय करता है। इससे यह भाव जगता है कि जो हम कर रहे, वो बेमाना नहीं।

'फील गुड' का फंडा

1.स्वयंसेवा : 2020 की शुरुआत में प्रकाशित एक अमेरिकी अध्ययन में सड़क पार करने या फिर राशन-दवा लाने में किसी की मदद करने से फील गुड होने की बात सामने आई थी।

2.योग-व्यायाम : मेयो क्लीनिक के शोध में योग-व्यायाम को स्ट्रेस हार्मोन 'कॉर्टिसोल' का स्त्राव घटाने और 'फील गुड' हार्मोन 'सेरोटोनिन' का उत्पादन बढ़ाने में कारगर पाया गया था।

3.पौष्टिक आहार : 'मॉलीक्यूलर साइकैटरी' में छपे यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के अध्ययन में ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर मेडिटरेनियन डाइट को मूड सुधारने में असरदार करार दिया गया था।

4.प्रकृति का साथ : 2014 में प्रकाशित हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के एक अध्ययन में पेड़-पौधों के बीच समय गुजारने वाले लोगों में बेचैनी, उदासी और जीवन से नाउम्मीदी का भाव कम मिला था।

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