लाइफ स्टाइल

जानिए कैसे बनायें मजबूत रिश्ता अपने टीनेजर बच्चे के साथ

Tara Tandi
19 July 2022 8:35 AM GMT
जानिए कैसे बनायें मजबूत रिश्ता अपने टीनेजर बच्चे के साथ
x
किशोरावस्था एक ऐसा समय होता है जब बच्चे में शारीरिक और मानसिक रूप से कई सारे परिवर्तन हो रहे होते हैं।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। किशोरावस्था एक ऐसा समय होता है जब बच्चे में शारीरिक और मानसिक रूप से कई सारे परिवर्तन हो रहे होते हैं। इस दौरान उसे जरूरत होती है एक ऐसे सपोर्ट सिस्टम की जो उसकी स्थिति को समझे और उसकी उलझनों का सीधा जवाब दे। अधिकांश माता-पिता इस समय में बच्चों पर प्रश्नों की बौछार करने लगते हैं, उन पर ज्यादा प्रतिबंध लगाने लगते हैं या उन्हें बार बार सलाह देने लगते हैं। यह बात बच्चों को चिढ़ा सकती है, गुस्सा दिला सकती है और हो सकता वे हमेशा के लिए कोई गाँठ मन में पाल लें। इसलिए जरूरी है कि किशोर होते बच्चों के साथ थोड़ी सहजता, सावधानी और समझदारी से पेश आया जाए। आजकल के बच्चों के पास जानकारी पाने के लिए अनगिनत साधन हैं लेकिन इनमें से सब पर आँख मूंदकर विश्वास नहीं किया जा सकता। क्योंकि ये साधन अधिकांशतः वर्चुअल दुनिया से जुड़े हैं। यहाँ यह आवश्यक हो जाता है कि आप बच्चे को उस वर्चुअल दुनिया के सहारे छोड़ने के बजाय अपने अनुभवों से उसे सिखाएं-बताएं। इससे उसे जानकारी तो मिलेगी ही, आपके और उसके बीच का बॉन्ड भी और मजबूत होगा। जानिए कैसे बनायें मजबूत रिश्ता अपने टीनेजर बच्चे के साथ।

होमवर्क में साझीदार बनें
यह सच है कि हर विषय का ज्ञान आपको नहीं हो सकता। इसलिए अतिरिक्त मार्गदर्शन की जरूरत भी हो सकती है। लेकिन होमवर्क के दौरान आपके साथ रहने से दो चीजें होंगी एक तो बच्चा कहीं कन्फ्यूज होने पर आपसे राय ले पायेगा और दूसरा वह इस काम को भी मन लगाकर करेगा, बोझ मानकर नहीं। कोशिश करें कि इसके लिए रोज एक समय निश्चित हो। आप चाहें तो इस समय अपना कोई छोटा-काम भी निपटा सकते हैं। चाहें तो अपनी अगले दिन की मीटिंग या किसी प्रेजेंटेशन पर भी काम कर सकते हैं और इस बारे में बकायदा बच्चों से राय भी ले सकते हैं। आजकल बच्चे तकनीक का प्रयोग बहुत अच्छे से जानते हैं हो सकता है उनकी राय आपके काम को आसान बना दे।
काम में सहभागी बनायें
घर के काम हों या बाहर के, बच्चों को भी कभी कभार अपने साथ जोड़ें। इस तरह से कि उनकी पढाई या खेल के समय में बाधा न पड़े। किचन में खाना बनाते समय, सफाई करते समय, कपड़े धोते समय, बैंकिंग कार्यों या बिजली के बिल आदि भरने जाते समय, बच्चों को भी हो सके तो अपने साथ रखें। इससे उसे इन कामों को सीखने में तो मदद मिलेगी ही, बच्चे यह भी समझ सकेंगे कि इन कामों में आपकी कितनी ऊर्जा, संसाधन और समय लगता है। इससे वे इन सब चीजों की वैल्यू करना सीखेंगे। साथ ही आपके काम का सम्मान करना भी। इस सबके साथ वे आपके साथ अपने रिश्ते को और करीब से महसूस करेंगे और यह सारे काम घर से बाहर रहने पर उनके काम भी आएंगे।
पैसों और प्लानिंग में राय लें
टीनएजर बच्चों के साथ सबसे बड़ी मुश्किल यह होती है कि लोग न तो उन्हें बड़ा समझकर व्यवहार करते हैं न ही छोटा। ऐसे में उन्हें उपेक्षित सा महसूस हो सकता है और यह स्थिति उन्हें रिश्तों से दूर कर सकती है। इसलिए घर का कोई छोटा मोटा काम हो या कहीं बाहर जाने की प्लानिंग, टीनेजर्स से भी राय जरूर लें। यह नहीं कि आप सिर्फ उनका पसंदीदा डेस्टिनेशन या फ़ूड पूछने तक ही इस राय को सीमित रखें। इसके बजाय बकायदा सारी तैयारियों से उन्हें जोड़ें। घर के बजट में भी उनकी राय लें। कई बार बच्चों को मालूम ही नहीं होता कि उनके पैरेंट्स किस तरह उनके लिए साधन और सुविधा जुटा रहे हैं और वे कोई चीज न मिलने पर गुस्सा हो जाते हैं, गलत कदम तक उठा लेते हैं। टीनेजर्स में यह काफी देखा जाता है। यदि आप पहले से उन्हें घर के बजट और खर्चों से जोड़ेंगे तो उन्हें आपकी परेशानियों का अंदाजा रहेगा और वे आपको सलाह भी दे सकेंगे।
एक्टिविटीज में साथ जुड़ें
चाहे कोई आर्ट क्लास हो या जिम या स्पोर्ट एक्टिविटी। किशोरावस्था में यह शारीरिक और मानसिक दोनों तरह के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ऐसी किसी एक्टिविटी को अगर आप बच्चों के साथ ज्वाइन करते हैं तो बच्चों का उत्साह बना रहता है, वे बेहतर प्रदर्शन करने की ओर ध्यान देते हैं और सबसे बढ़कर आप दोनों के पास इस एक्टिविटी से रिलेटेड बातें करके एक-दूसरे से जुड़े रहने का अवसर भी पाते हैं। इससे आपकी शरीरिक और मानसिक फिटनेस भी बनी रह सकती है। चाहे फिर ये रोज का ब्रिस्क वॉक या साइकिलिंग ही क्यों न हो। यह सही है कि दिनभर के आपके काम और बच्चों की पढ़ाई-स्कूल आदि के बाद इसके लिए समय निकालना एक चुनौती होगी। लेकिन किशोरावस्था के दौरान इस तरह से बच्चों के साथ समय बिताना बाद के लिए बहुत अच्छे परिणाम ला सकता है। यह आप पर निर्भर करता है कि आप इस समय को कैसे मैनेज करते हैं।
पूरी बात सुनिए और समझिए
पैरेंट्स को हमेशा यह लगता है कि वे बच्चों से ज्यादा जानते हैं। कुछ मामलों में यह बात सही भी हो सकती है लेकिन हमेशा अगर आप यही सोचकर बच्चों को ज्ञान देते रहेंगे तो एक समय बाद वे सुनना बंद कर देंगे। खासकर किशोरावस्था के दौरान बच्चे पहले ही बहुत सारे प्रश्नों से जूझ रहे होते हैं। ऐसे में हर वक्त आपका उन्हें टोकते रहना या हर विषय पर अपने ही विचार बताते रहना उन्हें और चिढ़ा सकता है। इस समय बच्चों को जरूरत होती है किसी ऐसे व्यक्ति की जो उनके मन में चल रही उथल-पुथल को सुन और समझ सके। इसलिए उनकी बातें सुनें भी। जानें कि वे क्या कहना चाहते हैं, वे किस तरह से चीजों को सोचते हैं, आदि। इससे आपको उनको और करीब से समझने का अवसर भी मिलेगा और आपके रिश्ते को और मजबूत बनाने का भी।
Next Story