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जानिए, ततैया के जहर से तैयार हुआ एंटीबायोटिक का दवा सुपरबग बैक्टीरिया को कैसे कर सकता है जड़ से खत्म
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिका के सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन के अनुसार आज के समय में एंटीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोध विकसित कर लेने वाले बैक्टीरिया चुनौती बनते जा रहे हैं। अमेरिका में हर लगभग 28 लाख लोग एंटीबायोटिक प्रतिरोधी संक्रमण की जद में आ जाते हैं और इनमें से तकरीबन 35,000 लोगों की मौत हो जाती है। अब अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ पेन्सिलवेनिया के पेरलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने एक ततैया (वाष्प) के जहर से एक नया एंटीबायोटिक अणु तैयार किया है।
अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इसके जहर से ऐसे एंटीमाइक्रोबियल अणु विकसित किए हैं जो उन बैक्टीरिया को खत्म करेंगे जिन पर दवाओं का असर नहीं हो रहा। अणु तैयार करने वाली अमेरिका की पेन्सिलवेनिया यूनिवर्सिटी का कहना है इससे तैयार होने वाली दवा से टीबी और सेप्सिस के खतरनाक बैक्टीरिया का इलाज किया जाएगा।
बैक्टीरिया पर बेअसर हो रही दवा का विकल्प-
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेस जर्नल में पब्लिश रिसर्च के मुताबिक, वैज्ञानिकों ने एशियन, कोरियन और वेस्पुला ततैया के जहर से प्रोटीन का छोटा से हिस्सा निकालकर उसमें बदलाव किया। बदलाव के कारण दवा के अणु में उन बैक्टीरिया को खत्म करने की क्षमता बढ़ी है जिन पर दवाएं बेअसर साबित हो रही हैं। इन बीमारियों का कारण बनने वाले बैक्टीरिया पर मौजूद एंटीबायोटिक दवाएं काम नहीं कर रही हैं।
चूहे पर किया गया अध्ययन-
चूहे पर किए गए अध्ययन में सामने आया कि जिन बैक्टीरिया पर दवा का असर नहीं हो रहा है उन पर इसका असर हुआ। वैज्ञानिकों का कहना है, वर्तमान में ऐसे नए एंटीबायोटिक्स की जरूरत है जो दवा से नष्ट न होने वाले बैक्टीरिया को खत्म कर सकें क्योंकि ऐसे संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं। हमें लगता है जहर से निकले अणु नए तरह के एंटीबायोटिक का काम करेंगे।
ऐसे तैयार हुई दवा-
रिसर्च के मुताबिक, ततैया के जहर से मास्टोपरन-एल पेप्टाइड को अलग किया गया है। यह इनसानों के लिए काफी जहरीला होता है और रक्तचाप के स्तर को बढ़ाता है जिससे इनसानों की हालत नाजुक हो जाती है। इसके इस असर को कम करके इसमें इतना बदलाव किया गया कि यह बैक्टीरिया के लिए जहर का काम करे। इंसानों के लिए यह कितना सुरक्षित है, इस पर क्लीनिकल ट्रायल होना बाकी है।
इन बैक्टीरिया पर हुआ प्रयोग-
वैज्ञानिकों ने दवा का ट्रायल चूहे में मौजूद ई-कोली और स्टेफायलोकोकस ऑरेयस बैक्टीरिया पर किया। नई दवा की टेस्टिंग के दौरान 80 फीसदी चूहे जिंदा रहे। लेकिन जिन चूहों को इस दवा की मात्रा अधिक दी गई उनमें दुष्प्रभाव दिखे। शोध में दावा किया गया है कि यह दवा जेंटामायसिन और इमिपेनेम का विकल्प साबित हो सकता है क्योंकि दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के मामले बढ़ रहे हैं। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि वो इस तरह के जहर से और एंटीबायोटिक अणु बना सकेंगे और इससे नई तरह की असरदार दवाएं बनाई जा सकेंगी।