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जानिए एक दिलचस्प किस्सा, जिसमे एक प्रोफेसर के जुनून ने उन्हें बना दिया चंदन के बाग का मालिक

Nilmani Pal
22 Oct 2020 4:16 PM GMT
जानिए एक दिलचस्प किस्सा, जिसमे एक प्रोफेसर के जुनून ने उन्हें बना दिया चंदन के बाग का मालिक
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सदर तहसील क्षेत्र के सरैंयामाफी गांव के रहने वाले प्रोफेसर रवि प्रकाश तिवारी बचपन से ही कुछ अलग सीखने और करने की मंशा रखते रहे हैं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। उत्तर-प्रदेश के सुल्तानपुर में एक प्रोफेसर के कुछ अलग करने के जुनून ने उन्हें 'चंदन'के बाग का मालिक बना दिया। अब वह अपने भाई के साथ मिलकर देश में'चंदन'की जरूरत का हिस्सा बनना चाहते हैं। इसके अलावा वह मुसम्मी की भी खेती करने की व्यवस्था में लगे हैं। सदर तहसील क्षेत्र के सरैंयामाफी गांव के रहने वाले प्रोफेसर रवि प्रकाश तिवारी बचपन से ही कुछ अलग सीखने और करने की मंशा रखते रहे हैं। पढ़ाई पूरी करने के बाद एक अदद नौकरी के लिए डॉ तिवारी देश के विभिन्न राज्यो के अच्छे संस्थानों में संविदा पर शिक्षण कार्य करते हुए फिर अपनी माटी में लौट आये। अब वह गणपत सहाय स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत है।

प्रोफेसर ने चंदन के लिए जमीन मुफीद नहीं होने के कयासों को झूठा साबित करते हुए सुगंध फैलाने वाली हरी-भरी बगिया को जीवंत कर दिया। अब आसपास के दर्जनों किसान उनसे प्रेरित होकर खेती का गुर सीखने पहुंच रहे है। 2018 में उन्होंने इसकी खेती शुरू की थी। तीन बीघे के चक में 400 पौधे लगे । पौधों की रखवाली के लिए इलेक्ट्रिक फेंसिग लगाया गया। इसमें पानी के बचत के उदेश्य से सिचाई के लिए टपक विधि का प्रयोग करते हैं। इससे एक तरफ पानी की बचत भी होती है तो वहीं दूसरी तरफ पौधों व फसलों को भी फायदा होता है।

प्रोफेसर रवि प्रकाश बताते हैं कि इन पेड़ों को भोजन देना पड़ता है। एक चंदन पौधे के भोजन के लिए पांच अन्य पौधे लगाने पड़ते है। 12 फुट की दूरी पर चंदन के पौधे रोपे गए हैं। बीच की खाली जगह में भोजन के लिए मीठी नीम, कड़वी नीम, सहजन, केरोजोना, अरहर के पौधे लगाए हैं। समय-समय पर मटर, मसूर, चना, सोआ -मेथी की भी खेती करते हैं। इससे उनको नुकसान भी नहीं होता। चंदन का पेड़ 12 साल में तैयार हो जाता है । पौधा वृक्ष का रूप ले लेता है और उस वृक्ष की जड़ें व डालें काफी मोटी हो जाती हैं। हमारे देश में उपयोग का केवल दस प्रतिशत चंदन होता है, बाकी विदेश से आता है, जिससे इसकी काफी मांग है।

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