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आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर जानिए भारत की पांच सशक्त महिलाओं के बारे में.....

Tara Tandi
5 Jun 2022 1:23 PM GMT
Know about the five powerful women of India on the occasion of Amrit Mahotsav of Independence.
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भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर देश में आजादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। पूरे देश में हर कोई इस आजादी के जश्न को अपने अपने स्तर और तरीकों से मना रहा है। देश के हर राज्य, जिले और कस्बे में कही साइकिल रैली, कहीं हर घर में तिरंगा झंडा फहराया जाएगा। आजादी के अमृत महोत्सव में भारत को आजादी दिलाने वाले अमर शहीदों को याद किया जा रहा है। देश को अंग्रेजों की गुलामी की जंजीरों से निकालने के लिए राजा महाराजा के दौर में कई स्वतंत्रता सैनानी हुए, उसके बाद 1857 की क्रांति, आजाद भारत का सपना समय के साथ और प्रबल होता गया। अंग्रेजों की नीति के खिलाफ नरम दल, गरम दल अस्तित्व में आए। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे सेनानियों ने हंसते हंसते फांसी के फंदे को गले लगा दिया। इन सभी वीरों की गाथा आज भी लोगों के रगो में खून में उबाल ला देती हैं। लेकिन भारत की भूमि पर कई ऐसी महिलाएं भी हुईं, जिन्होंने आजादी की लौ को जलाकर रखा। इन वीरांगनाओं और महिला स्वतंत्रता सेनानियों ने आजादी के लिए पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। कई ऐसी दमदार महिला क्रांतिकारी हुईं, जिन्होंने ऐशो आराम की जिंदगी को त्याग कर देश के नाम अपना जीवन लगा दिया। आजादी के अमृत महोत्सव के मौके पर जानिए भारत की पांच सशक्त महिलाओं के बारे में जो ऐशोआराम की जिंदगी छोड़कर स्वतंत्रता संग्राम के मैदान में कूद पड़ीं।

रानी लक्ष्मी बाई
भारत के इतिहास में भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे क्रांतिकारियों का नाम सबसे ज्यादा याद किया जाता है। लेकिन अगर किसी महिला क्रांतिकारी का नाम पूछो, तो सबसे पहले झांसी की रानी लक्ष्मी बाई का नाम याद आता है। देश की पहली महिला क्रांतिकारी रानी लक्ष्मी बाई ने अपनी धरती और अपनी बेटे की रक्षा के लिए अंग्रेजों से आखिरी सांस तक लड़ाई की। एक महिला पीठ पर बच्चे को टांगे हाथ में अपनी धारदार तलवार लिए सैकड़ों अंग्रेज सैनिकों के सामने डटकर खड़ी रहीं और ब्रिटिश राज और अंग्रेजों के छक्के छुड़ाते हुए शहीद हो गई। उनका जीवन हर नारी के लिए एक मिसाल है। उनका नाम सशक्त महिला का पर्याय बन चुका है, जो किसी भी दमदार महिला के लिए उपयोग किया जाने लगा है।
दुर्गावती देवी
दुर्गावती देवी को इतिहास में दुर्गा भाभी के नाम से जाना जाता है। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की तरह भले ही दुर्गा भाभी देश के लिए फांसी पर न चढ़ी हों लेकिन उनके कंधे से कंधा मिलाकर आजादी की लड़ाई लड़ती रहीं। उनके हर आक्रमक योजना का हिस्सा बनी। दुर्गा भाभी ने बम बनाना सीखा था। जब देश के सपूत अंग्रेजो से लोहा लेने के लिए घर से निकलते तो वह उन्हें टीका लगाकर विजय पथ पर भेजती थीं। उन्हें गुलाम भारत की आयरन लेडी कहा जा सकता है। जिस पिस्तौल से चंद्र शेखर आजाद ने खुद को गोली मारकर बलिदान दिया था, वह पिस्तौल दुर्गा भाभी ने ही आजाद को दी थी। लाला लाजपत राय की मौत के बाद उनका गुस्सा इस कदर हावी था कि वह खुद स्काॅर्ट को जान से मारना चाहती थीं लेकिन उन्हें ये मौका नहीं मिला। हालांकि स्काॅर्ट की हत्या के बाद भगत सिंह की पत्नी बन कर अंग्रेजो से बचाने के लिए उनके प्लान का हिस्सा जरूर बनीं।
सुचेता कृपलानी
हरियाणा के अंबाला में साल 1908 में जन्मी सुचेता कृपलानी को आजाद भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री के तौर पर जाना जाता है लेकिन देश की आजादी के लिए उन्होंने भी आंदोलन में भाग लिया था। सुचेता भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान प्रथम मोर्चे पर खड़ी थीं। अंग्रेजो की गुलामी से देश को आजाद कराने के लिए उन्होंने अपनी आवाज बुलंद की थी। भारत के विभाजन के समय हुए दंगों में भी सुचेता कृपलानी ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर कार्य किया।
कस्तूरबा गांधी
महात्मा गांधी स्वतंत्रता संग्राम में अहिंसा का पथ पर चलते हुए देश को आजाद कराने के लिए संघर्ष करते रहे। लेकिन कस्तूरबा गांधी उनके हर कदम पर बापू के कदम से कदम मिलाकर चलती रहीं। उन्होंने आजादी के लिए भुला दिया कि महात्मा गांधी उनके पति हैं। उन्होंने बापू से पति धर्म निभाने की उम्मीद नहीं रखी, बल्कि खुद बापू की ताकत बन उन्हें संघर्ष करने के लिए हिम्मत देती रहीं। एक संपन्न परिवार की बेटी महात्मा गांधी के साथ आश्रम में रहने आ गई। अपने कामों से हर देशवासी की 'बा' बन गईं। गांधीजी ने दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रहे अत्याचार के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था लेकिन कम ही लोगों को पता है कि इसमें कस्तूरबा की भूमिका कितनी अहम थीं। कस्तूरबा ने आवाज उठाई तो तीन महीने के लिए उन्हें जेल की सजा हो गई। जेल में भी कस्तूरबा रूकी नहीं, उन्होंने जेल में कैदियों को प्रार्थना का महत्व सिखाया।
विजया लक्ष्मी पंडित
विजया लक्ष्मी पंडित एक कुलीन परिवार से ताल्लुक रखती थीं। वह जवाहर लाल नेहरू की बहन थीं लेकिन देश की आजादी के लिए वह भी स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ीं। सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेने पर उन्हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन वह डरी नहीं। भारत की राजनीति के इतिहास में विजया लक्ष्मी पंडित पहली महिला मंत्री बनीं। इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष और स्वतंत्र भारत की पहली राजदूत भी बनीं।
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