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जानें उत्तराखंड की शादियों में निभाए जाने वाले रिवाजों के बारे में

SANTOSI TANDI
2 Sep 2023 6:08 AM GMT
जानें उत्तराखंड की शादियों में निभाए जाने वाले रिवाजों के बारे में
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वाले रिवाजों के बारे में
भारतीय शादियों की रस्में काफी अलग होती हैं। यह राज्य, जाति और क्षेत्र अनुसार अलग-अलग होती हैं। शादी की हर रस्मों का मतलब भी अलग होता है। उत्तराखंड दो भागों में बटा हुआ है। इसमें गढ़वाल और कुमाऊं शामिल हैं। भारत के सबसे खूबसूरत राज्य उत्तराखंड की शादियों की बात ही अलग होती है।
यहां शादियों में निभाए जाने वाले रीति-रिवाज भी अनूठे हैं। अगर आपने आज तक पहाड़ी शादी नहीं देखी, तो यकीन मानिए आपने बहुत कुछ मिस किया है। आज इस आर्टिकल में हम आपको पहाड़ी शादी में निभाए जाने वाले रिवाजों के बारे में बताएंगे।
सबसे पहले निभाई जाती है यह रस्म
पहाड़ी शादी की रस्म की शुरुआत गणेश पूजा से होती है। हिंदू धर्म में माना जाता है कि भगवान गणेश सारे कष्ट और बाधा दूर कर देते हैं। इसलिए सबसे पहले गणेश पूजा की जाती है। इसके बाद, हल्दी, मेहंदी और संगीत की रस्म निभाई जाती है।
सुवाल पथाई की रस्म दी के दिन या शादी से एक दिन पहले निभाई जाती है। सुवाल एक तरह की डिश है, जिसे भगवान को प्रसाद के रूप में चढ़ाया जाता है। सुवाल बनाने के लिए गेंहू के आटे का इस्तेमाल किया जाता है। सुवाल के अलावा लाड़ो भी बनाए जाते हैं। यह चावल के आटे से बनते हैं।
सुवाल बनाने के लिए आटे को गूंथा जाता है। फिर इससे छोटी-छोटी रोटी बनाई जाती है। इन रोटियों को धूप में सुखाया जाता है। धूप में सुखाने के बाद तेल में फ्राई किया जाता है। वहीं, लाड़ों बनाने के लिए चावल के आटे को भूनते हैं। फिर आटे में तिल और गुड़ पानी डालकर अच्छे से मिक्स किया जाता है। अब इस आटे से गोल-गोल लड्डू बनाए जाते हैं, जिसे कुमाऊं में लाड़ो कहा जाता है।
बचे हुए आटे से समधी-समधन बनाते हैं। इन्हें सजाया भी जाता है। समधी की मूंछे बनाई जाती हैं। उन्हें बीड़ी पीते हुए दिखाया जाता है। वहीं, समधन को रंगाई पिछौड़, चूड़ी जैसे गहनों से से सजाया जाता है। समधी और समधन की इस मूर्ति को एक टोकरी में रखा जाता है, जिसे शादी के दिन दूल्हा-दुल्हन के रिश्तेदार एक-दूसरे को यह सौंप देते हैं। (दुल्हन को मेहंदी क्यों लगाई जाती है?)
कंगन बांधना
पहाड़ी शादियों में कंगन बांधने की रस्म निभाई जाती है। इसके लिए मुहु्र्त निकाला जाता है। अगर मुहु्र्त नहीं निकलता है, तो शादी की सुबह यह रस्म पूरी की जाती है। इस रस्म में दूल्हा-दुल्हन और उनके माता-पिता के हाथों में पंडित द्वारा एक पीले कपड़े में सुपारी और पैसे रखकर कलाई पर बांधा जाता है।
गढ़वाल में कंगन सभी के हाथों पर बांधा जाता है। यह कंगन शादी संपन्न होने के बाद उतारा जाता है। यह कंगन पंडित जी को वापस किए जाते हैं। (जानें हल्दी की रस्म का महत्व)
धूलि-अर्घ द कुछ ही दूरी पर दूल्हा एक चौकी यानी पटरे पर खड़ा होता है। दुल्हन का पिता दूल्हे की पूजा करता है। उसे तिलक लगाता है और घड़ी, अंगूठी और चेन पहनाता है। इस रस्म में घड़ी पहनाना जरूरी होता है।
इसके बाद दुल्हन का पिता दूल्हे के पैर छूता है। पंडित को भी घड़ी, अंगूठी, अटैची बैग दिया जाता है। जहां पर धूलि-अर्घ किया जाता है, वहीं पर सुबह दूल्हा-दुल्हन फेरे लेते हैं।
पहाड़ी शादी से जुड़ी अनोखी बातें
पहाड़ी शादियों में सभी सुहागिन महिलाएं पिछौड़ पहनती हैं। शादी के दिन दुल्हन को पहली बार पिछौड़ और नथ पहनाया जाता है। इसके बाद से हर शुभ काम में पिछौड़ और नथ पहनना अनिवार्य होता है। सुबह के समय दूल्हा-दुल्हन मुकुट पहनते हैं। शादी में दुल्हन जो नथ पहनती है, वह मामा द्वारा दी जाती है।
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