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लाइफ स्टाइल
क्या आपका अंतर्मुखी होना आपको ऑफ़िस में आगे नहीं बढ़ने दे रहा?
Kajal Dubey
14 May 2023 3:02 PM GMT
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ज़्यादातर लोगों के लिए यह आश्चर्यजनक हो सकता है कि शिक्षिका भारती शर्मा* हर साल सर्वश्रेष्ठ टीचर का पुरस्कार जीतती हैं. वह ख़ुद को अंतर्मुखी मानती हैं. “अपने छात्रों के साथ मुझे आपसी बातचीत में कोई दिक़्क़त नहीं होती, लेकिन सहकर्मियों के साथ छोटी-मोटी बातचीत में भी बहुत असहज हो जाती हूं. या जब स्कूल के बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स के सामने प्रेज़ेंटेशन देने के लिए कहा जाता है तो मैं घबरा जाती हूं.”
भारती शर्मा कोई अपवाद नहीं हैं. क्वाइट: द पावर ऑफ़ इंट्रोवर्ट्स इन अ वर्ल्ड दैट कान्ट स्टॉप टॉकिंग नामक चर्चित पुस्तक की लेखिका सुसेन केन अपनी टेड टॉक में बताती हैं कि महात्मा गांधी, एलिनोर रूज़वेल्ट और रोज़ा पार्क्स जैसे नेता भी अंतर्मुखी थे. तो फिर इस शब्द का सटीक मतलब क्या है? मेंटल हेल्थ काउंसलिंग के लिए ऑनलाइन प्लैटफ़ॉर्म योरदोस्त की साइकोलॉजिस्ट सुषमा हेब्बार कहती हैं,“एक अंतर्मुखी व्यक्ति अकेले समय बिताना चाहता है. वह शांत, गंभीर और आत्मविश्लेषी प्रवृत्ति का होता है.” यदि आपका स्वभाव भी कुछ ऐसा ही है तो हम आपकी मदद कर सकते हैं. हमने कुछ अंतर्मुखी स्वभाव वाले लोगों से बात की और उनसे पूछा कि ऑफ़िस में किन परिस्थितियों में वे तनाव महसूस करते हैं. और उसके बाद काउंसलर्स और साइकोलॉजिस्ट्स को साथ लिया और जाना कि अंतर्मुखी लोग कैसे इन तनावपूर्ण परिस्थितियों से उबर सकते हैं.
जमे रहिए
अरण्यणी कुमार* एक ग्रैफ़िक डिज़ाइनर हैं और बताती हैं,“मैं हमेशा एक शांत लड़की रही हूं. ऑफ़िस में दोस्त बनाने में मुझे लंबा समय लग जाता है. एक बार जब सहज हो जाती हूं तो मैं अपनी नौकरी नहीं बदलना चाहती, चाहे कंपनी में काम करते हुए मुझे काफ़ी समय ही क्यों न हुआ हो.” सुषमा इसका हल बताती हैं,“अंतर्मुखी व्यक्तियों को किसी नई जगह पर सहज होने के लिए ख़ुद को समय देना चाहिए. पहले तो ख़ुद को व्यस्त रखना सीखें. जैसे, उन कामों को करें जिन पर आपका नियंत्रण हो. ये काम एचआर से अपने काम की भूमिका, ज़िम्मेदारियों को समझना हो सकता है.” जब नई जगह आपको अपना काम समझ आ जाए, तो आप इससे एक क़दम और आगे बढ़ाएं. जैसे जब कोई बातचीत के लिए आतुर हो तो उस पर प्रतिक्रिया दें और दूसरों को देखकर मुस्कराएं.
संक्षिप्त बातचीत
विज़्डमलीफ़ टेक्नोलॉजीज़ की सीईओ अनुपमा पार्थसारथी ख़ुद अंतर्मुखी हैं. अपने साथ-साथ उन्होंने स्टाफ़ में अपने जैसे ही अंतर्मुखी लोगों को भी पहचान लिया है. इतने सालों में उन्होंने अपनी कमी और इससे निपटने का रास्ता खोज लिया है. और वह अपने जैसे दूसरे लोगों की मदद भी करती हैं. वह बताती हैं,“मैं कुछ दिनों के अंतराल पर अपनी टीम के सदस्यों से एक-एक कर बात करती रहती हूं. मैंने पाया कि अंतर्मुखी लोगों के साथ यदि आप बात की शुरुआत करते हैं, तो वे खुल कर बात करते हैं, लेकिन वे कभी ख़ुद पहल नहीं करते.”
ना कहना सीखें
भारती अपने सीनियर्स को ना कहना बड़ा मुश्क़िल लगता है, जो अक्सर उन पर ऐसे काम का भी बोझ लाद देते हैं, जिनसे एक टीचर के नाते उनका कोई लेना-देना नहीं होता. सुषमा कहती हैं,“दृढ़ता एक ऐसा गुण है, जिस पर आपको अमल करना होगा. एक अंतर्मुखी होने की वजह से वह सोच सकती हैं कि ऑफ़िस में चूंकि वे बहुत कम लोगों को जानती हैं, इसलिए उनको ना कहकर नाराज़ नहीं कर सकतीं. मैं ऐसे लोगों को छोटी-छोटी बातों पर ना कहना सिखाती हूं और उन्हें भरोसा दिलाती हूं कि समय के साथ आपकी इस दृढ़ता का अच्छा परिणाम मिलेगा.”
टीम का सहयोग
प्रीतम दास एक कंटेंट राइटर हैं और अकेले ही काम करना पसंद करते हैं. वह कहते हैं,“मुझे मिलकर काम करना या सामूहिक रूप से किसी समस्या को हल करना अच्छा नहीं लगता.” साइकोलॉजिस्ट नेहा कदाबम इसके लिए सुझाव देती हैं,“ज़रूरी है कि महसूस किया जाए, सब नियंत्रण में है. मैं सलाह दूंगी कि ऐसे लोग टीम वर्क के लिए मानसिक रूप से पहले से ही तैयार रहें, ताकि जब ऐसा मौक़ा आए तो उन्हें असहजता ना महसूस हो.”
खुलकर बात करें
अरण्यणी अपने सहकर्मियों के साथ बातचीत के दौरान घबरा जाती हैं, लेकिन जब वह अपने बॉस से मिलती हैं तो उनकी चिंता दोगुनी हो जाती है. “मैं डर के मारे इतना बेबस हो जाती हूं कि उनसे मुलाक़ात करने ही नहीं जा पाती, भले ही मुझे मिले प्रोजेक्ट को लेकर उनसे कुछ पूछना ही क्यों न हो.” सुषमा की सलाह है,“ख़ुद को सबसे ख़राब परिस्थिति का भी सामना करने के लिए तैयार रखें. ख़ुद से सवाल करें कि बॉस ऐसी कौन-सी बात कर सकते हैं, जो सबकुछ बर्बाद कर सकता है. ऐसे विचारों को दबाएं नहीं, बल्कि इस बारे में निश्चिततौर पर सोचें और योजना बनाएं कि आप इसका जवाब कैसे देंगी.”
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Kajal Dubey
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