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भारत पहला देश है जहाँ सुरक्षित मातृत्व दिवस शुरु किया गया, जानें इसका इतिहास एवं उद्देश्य

Tara Tandi
11 April 2021 5:22 AM GMT
भारत पहला देश है जहाँ सुरक्षित मातृत्व दिवस शुरु किया गया, जानें इसका इतिहास एवं उद्देश्य
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'मातृत्व' प्रकृति का अनमोल तोहफा है. इसी से प्रकृति का विकास होता है.

जनता से रिश्ता वेबडेसक| 'मातृत्व' प्रकृति का अनमोल तोहफा है. इसी से प्रकृति का विकास होता है. यह किसी चमत्कार से कम नहीं है. इस संदर्भ में भारत की बात करें तो यह मातृत्व गर्भवती माँओं के लिए किसी सजा से कम नहीं. हमारे देश में ऐसी महिलाओं की कमी नहीं है, जो बच्चे को जन्म देते समय ही मौत को गले लगा लेती हैं, इसकी अनेक वजहें और अनेक उदाहरण आपको मिलेंगे. मातृत्व की इसी सुरक्षा एवं संरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक वर्ष 11 अप्रैल के दिन राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस (Motherhood Day) मनाते हैं. यूं तो सुरक्षित मातृत्व की परंपरा शुरु करने वाला भारत विश्व का पहला देश है, लेकिन क्या हम इस दिवस विशेष को उतनी ही गंभीरता से लेते हैं? आइये जानें क्या हैं हालात सुरक्षित मातृत्व के संदर्भ में हमारे देश में.

सुरक्षित मातृत्व पर हुए एक सर्वे के बाद जो रिपोर्ट आई, वह चिंताजनक है. रिपोर्ट के अनुसार भारत में जन्म देते समय प्रति एक लाख महिलाओं में से करीब 167 महिलाएं अपने नवजात का मुख देखे बिना काल-कवलित हो जाती हैं. इस तरह एक गर्भवती माँ के निधन से ना केवल बच्चों से माँ की गोद छिनती है, बल्कि इसका असर पूरे परिवार पर पड़ता है. इसलिए गर्भवती महिला की सेहत की प्रयाप्त देखभाल एवं प्रसव संबंधी जागरुकता फैलाने के मकसद से 11 अप्रैल 2003 को पहली बार राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में घोषित किया गया. खुशनसीबी है कि कुछ सरकारी योजनाओं एवंं स्वास्थ्य विभाग की जागरुकता के कारण मातृत्व मृत्यु दर में क्रमशः कमी आई है, हांलाकि स्थिति अभी भी चुनौतीपूर्ण है सरकार के लिए भी और हेल्थ मंत्रालय के लिए भी.
इतिहास एवं उद्देश्य
राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस (N.S.M.D.) की पहल व्हाइट रिबन एलायंस इंडिया (WRAI) द्वारा साल 2003 में शुरू की गई थी. दरअसल यह दिन महात्मा गांधी की पत्नी कस्तूरबा गांधी की जयंती के रूप में भी मनाया जाता है, उन्हें ही 'मां' का प्रतीक मानकर इस दिन की शुरुआत हुई थी. उस समय इस गैरसरकारी स्वयंसेवी संस्था का लक्ष्य विश्व स्तर पर मातृ एवं नवजात शिशु की मृत्यु दर को कम करना था. इस संस्था का कार्य प्रसव से पूर्व और पश्चात गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित एवं स्वस्थ रहने के अधिकार को बरकरार रखने के साथ उन्हें जागरुक करना है, साथ ही गर्भवती महिलाओं में रक्ताल्पता (रक्त की कमी) की समस्याओं को दूर करने की कोशिश के साथ-साथ सामान्य प्रसव, प्रसव के पश्चात गर्भवती की देखभाल आदि पर ध्यान दिया जाता है, जो नवजात शिशु एव माताओं के लिए अति आवश्यक
असुरक्षित मातृत्व के कारण
भारत में असुरक्षित मातृत्व की कई वजहें हैं. गरीबी, कुपोषण, अंध विश्वास, छोटी उम्र में विवाह के पश्चात गर्भधारण करना अथवा बलात्कार जैसे वजहें अकसर गर्भवती माँओं के लिए जोखिम भरी होती है, जो कभी-कभी माँ और नवजात दोनों के लिए जानलेवा साबित होता है. इसके अलावा इन्फेक्शन, असुरक्षित गर्भपात, लो या हाई ब्लड प्रेशर अथवा अपेंडिक्स के कारण भी माँ, माँ-बच्चे अथवा बच्चे की मृत्यु हो जाती है. कभी-कभी सीजेरियन के समय डॉक्टर या नर्स की भूल की भी सजा प्रसविता को भुगतनी पड़ती है. कुछ चिकित्सकों के अनुसार प्रसव के दौरान लगभग 30 प्रतिशत महिलाओं को आपातकालीन मदद की जरूरत पड़ती है, लेकिन गांवों या छोटे कस्बों में पर्याप्त मेडिकल सुविधाएं नहीं होने से भी प्रसूता की जिंदगी खतरे में पड़ जाती है.


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