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फास्ट फूड से बढ़ रहा ऑटोइम्यून रोगों का खतरा, वैज्ञानिकों ने जताई चिंता
Bhumika Sahu
12 Jan 2022 2:58 AM GMT
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दुनियाभर में फास्टफूड के शौकीनों की कमी नहीं है। मगर, लंदन में हुए एक हालिया अध्ययन की मानें तो फास्टफूड के अधिक सेवन के कारण लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित हो रही है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। दुनियाभर में फास्टफूड के शौकीनों की कमी नहीं है। मगर, लंदन में हुए एक हालिया अध्ययन की मानें तो फास्टफूड के अधिक सेवन के कारण लोगों की प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित हो रही है। वैज्ञानिकों के अनुसार, बर्गर और चिकन नगेट्स सहित भारी प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ खाने से दुनियाभर में ऑटोइम्यून बीमारियों में इजाफा हो रहा है। दरअसल, फास्टफूड के कारण लोगों का इम्यून सिस्टम भ्रमित हो रहा है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि लोग पीड़ित हैं, क्योंकि फास्टफूड के कारण उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली एक स्वस्थ कोशिका और शरीर पर आक्रमण करने वाले वायरस जैसे जीव के बीच अंतर नहीं बता सकती है।
फाइबर अवयवों की कमी मुख्य कारणः
लंदन में फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के शोधकर्ता इस कारण का अधिक विस्तार से अध्ययन कर रहे हैं। फिलहाल उन्हें उम्मीद है कि फास्ट-फूड आहार में फाइबर जैसे अवयवों की कमी के कारण ऐसा होता है, जो किसी व्यक्ति के माइक्रोबायोम को प्रभावित करता है। माइक्रोबायोम हमारे पेट में मौजूद सूक्ष्म जीवों का संग्रह है, जो विभिन्न शारीरिक क्रियाओं को नियंत्रित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
टाइप 1 मधुमेह, गठिया, आंतों की सूजन का रोग, मल्टीपल स्केलेरोसिस सहित ऑटोइम्यून रोग शरीर द्वारा अपने खुद के ऊतकों और अंगों पर हमला करने के कारण होते हैं।
एक समय में एक से अधिक बीमारीः
फ्रांसिस क्रिक इंस्टीट्यूट के जेम्स ली और कैरोला विनुसा के अनुसार लगभग चालीस साल पहले ब्रिटेन सहित पश्चिमी देशों में ऑटोइम्यून मामलों में वृद्धि देखी गई थी और यह प्रवृत्ति अब उन देशों में भी उभर रही है, जिन्हें पहले कभी यह बीमारी नहीं थी। शोधकर्ताओं के अनुसार, पश्चिम में रहने वाले कुछ लोग अब एक समय में एक से अधिक ऑटोइम्यून बीमारियों से जूझ रहे हैं। मध्य पूर्व और एशिया में सूजन आंत्र रोग के मामलों में इजाफा हुआ है, ऐसे स्थान जहां हाल तक शायद ही कभी इस बीमारी को देखा गया हो। ली और अन्य शोधकर्ता विभिन्न प्रकार की बीमारियों के सटीक कारण का पता लगाने और आहार के लिंक की तलाश कर रहे हैं।
पश्चिमी देशों में चालीस लाख लोग प्रभावितः
ब्रिटेन में ऑटोइम्यून बीमारी वाले करीब 40 लाख लोग हैं। वहीं, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर यह मामले प्रति वर्ष 3 से 9 प्रतिशत के बीच बढ़ रहे हैं। पिछले अध्ययनों में पर्यावरणीय कारकों और ऐसी स्थितियों में इजाफे के बीच एक कड़ी मिली थी, जिसमें शरीर में अधिक माइक्रोप्लास्टिक कण का प्रवेश शामिल हैं।
ली का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में मानव आनुवंशिकी में कोई बदलाव नहीं आया है, इसका मतलब है कि बाहरी दुनिया में कुछ इस तरह का बदलाव है, जो ऑटोइम्यून बीमारी के लिए हमारी प्रवृत्ति को बढ़ा रहा हो। शोधकर्ताओं का कहना है कि फास्ट-फूड आहार में फाइबर जैसे कुछ महत्वपूर्ण अवयवों की कमी होती है। यह सबूत बताते हैं कि यह परिवर्तन किसी व्यक्ति के माइक्रोबायम को प्रभावित करता है।
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