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अपने बच्चों को संस्कार
ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति की असल पहचान उसके व्यवहार से होती है और व्यवहार ही संस्कारों की मूरत बनता है। अपने देश में रहकर बच्चों में अच्छे संस्कार डालना ज्यादा मुश्किल नहीं होता है।
ऐसा इसलिए क्योंकि बच्चा घर में शुरुआत से उन रीति-रिवाजों और बड़ों द्वारा उन सत्कर्मों को देखता आता है जो वो रोजाना करते हैं। बच्चा घर में और आसपास के धार्मिक माहौल में पलता-बढ़ता है और फिर धीरे-धीरे कर खुद भी उन संस्कारों को धारण करता है।
हालांकि ऐसा विदेश में रहकर कम ही संभव हो पाता है क्योंकि दोनों जगहों की संस्कृति में एक बहुत बड़ा अंतर है। अगर आप भी विदेश में रहते हैं और अपने बच्चे में अपनी संस्कृति और सभ्यता से जुड़े संस्कार डालना चाहते हैं तो आप ज्योतिष एक्सपर्ट डॉ राधाकांत वत्स द्वारा बताये गए भगवद्गीता के ये तरीके अपना सकते हैं।
बच्चों में संस्कार डालने का सही तरीका
बच्चे के जन्म के बाद से उसे भगवान की कथाएं, सकारात्मक कहानियां और दिव्य मंत्र सुनाएं।
ऐसा न समझें कि छोटा बच्चा कुछ नहीं समझता या सुनता है। छोटे बच्चों का दिमाग बहुत तेज होता है।
बचपन में जो वह सबसे ज्यादा सुनते, देखते और समझते हैं उसी के आधार पर उनका व्यक्तित्व बनता है।
बच्चों के सामने पूजा-पाठ कीजिये। उन्हें अपनी संस्कृति के बारे में बताइये और अपने देश की सभ्यता से जोड़िये।
apne bachchon ko kaise de sanskar
बच्चों को घर के बड़ों के साए में रखें। घर के बड़ों द्वारा बताई गई बातें बच्चों को बहुत प्रभावित करती हैं।
बच्चों को सभी बड़ों का आदर करना सिखाएं। रिश्तों की परख सिखाएं। बड़ों से बातचीत करने दें।
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बच्चों को रोजाना मंदिर अवश्य ले जाएं। बच्चों को मंत्रों का जाप करना भी सिखाएं।
बच्चों से रोजाना कोई एक नेक काम करवाएं जैसे कि पशु-पक्षियों को दाना-पानी डालना।
इसके अलावा किसी को कुछ दान करना, दूसरों की मदद करना आदि।
बच्चों में संस्कार डालने का सबसे सरल तरीका है भगवद्गीता का पाठ।
बच्चों से रोजाना भगवद्गीता का पाठ करवाएं। आप चाहे तो रामायण पाठ भी करवा सकते हैं।
बच्चों को सही गलत का अंतर बताएं और कुछ गलत करने पर प्यार से समझाएं।
इससे बच्चे आपकी बात समझेंगे, ढीट नहीं बनेंगे और गलत चीजों की तरफ आकर्षित नहीं होंगे।
अन्य जरूरी बातें
जन्म से 5 साल तक के बच्चे को सही खानपान दें क्योंकि इस समय में बच्चे का मासिक विकास उसके खानपान पर निर्भर करता है।
6 से 10 साल तक के बच्चे को शुभ और अशुभ आदतें आने लगती हैं। ऐसे में उसे धर्म, ईश्वर और सात्विक व्यवहार से जोड़ें।
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11 से 16 तक के बच्चे को मन्त्रों और आसन के बारे में बताएं। ताकि एकाग्रता बढ़ने से शिक्षा और ज्ञान अच्छे से प्राप्त किया जा सके।
17 से 21 साल तक के बच्चे को धार्मिक कार्यों में जुटाएं और ज्यादा से ज्यादा बुजुर्गों के साथ समय बिताने दें।
तो इस तरह विदेश में रहकर भी अपने बच्चों को दे सकते हैं आप अपने घर के संस्कार। अगर हमारी स्टोरीज से जुड़े आपके कुछ सवाल हैं, तो वो आप हमें आर्टिकल के नीचे दिए कमेंट बॉक्स में बताएं। हम आप तक सही जानकारी पहुंचाने का प्रयास करते रहेंगे। अगर आपको ये स्टोरी अच्छी लगी है, तो इसे शेयर जरूर करें। ऐसी ही अन्य स्टोरी पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी से।
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