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कोरोनावायरस की दूसरी लहर में पीड़ित मरीज़ों को सबसे ज्यादा परेशानी सांस लेने में हो रही है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। कोरोनावायरस की दूसरी लहर में पीड़ित मरीज़ों को सबसे ज्यादा परेशानी सांस लेने में हो रही है। कोरोना संक्रमण के कई लक्षणों में सांस लेने में तकलीफ एक प्रमुख लक्षण है। कोरोना की चपेट में आए मरीज़ों को निमोनिया का खतरा अधिक हो रहा है, जिसकी वजह से उनके फेफड़ों को नुकसान पहुंच रहा है। कोरोना से मुक्ति पाने के लिए जितनी दवा की जरूरत है उतनी ही एक्सरसाइज़ भी जरूरी है। सांस में दिक्कत होने वाले मरीज़ों को चाहिए कि वो फेफड़ो से जुड़ी एक्सरसाइज करें ताकि सांस की समस्या से छुटकारा पाया जा सके। सांस लेने में दिक्कत होने वाले मरीज़ों के लिए चेस्ट फिजियोथेरेपी सबसे बेस्ट है। जानिए क्या है चेस्ट फिजियोथेरेपी और उसे कैसे करें।
चेस्ट फिजियोथेरेपी क्या है? कोरोना से बचाव में दवा के साथ चेस्ट फिजियोथेरेपी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस थेरेपी का सीधा संबंध श्वसन की प्रक्रिया से है। ऐसे में सभी लोग चेस्ट फिजियोथेरेपी से फेफड़े को और मजबूत कर कोरोना का मुकाबला आसानी से कर सकते हैं। फेफड़ों की सक्रियता को बढ़ाने में चेस्ट फिजियोथेरेपी एक कारगर उपाय है। निमोनिया जैसी स्थिति से लेकर कोरोना के गंभीर मरीजों के लिए चेस्ट फिजियोथेरेपी बेहद उपयोगी है। इसकी मदद से सांस लेने की क्षमता में सुधार करने में मदद मिलती है। एक ट्रीटमेंट सेशन 20 से 40 मिनट तक चलता है। इस थेरेपी की मदद से फेफड़ों में जमा बलगम और कफ़ कम किया जा सकता है।
चेस्ट फिजियोथेरेपी फायदें: इसमें पॉश्च्युरल ड्रेनेज, चेस्ट परक्यूजन, चेस्ट वाइब्रेशन, टर्निंग, डीप ब्रीदिग एक्सरसाइज जैसी कई थेरेपी शामिल होती हैं। इसकी मदद से फेफड़ों में जमा बलगम बाहर निकालने में मदद मिलती है। मरीज को अलग-अलग पोश्चर में लेटा कर गहरी सांसें लेने व छोड़ने को बोला जाता है। मरीज की पीठ, छाती व पसलियों के बीच में थप-थपाकर और कंपन उत्पन्न कर फेफड़ों में जमे बलगम को बाहर निकल जाता है।
चेस्ट फिजियोथेरेपी कैसे करें:
कपिंग और वाइब्रेशन (2-3 मिनट):
इसे लेटकर या आराम से कोई सहारा लेकर किया जाता है। चेस्ट पर वाइब्रेशन देने के लिए कुछ माइल्ड वाइब्रेशन डिवाइज का सहारा लिया जाता है जैसे ट्रिमर।
गहरी सांस लेने की एक्सरसाइज (3-4 मिनट):
पहले चरण के साथ आराम से और गहरी सांस से बलगम को इकट्ठा करने में मदद मिलती है।
यह प्राणायाम फेफड़ों की सेहत बढ़ाता है, इसे करने से खून में ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ जाती है।
टफिंग और हफिंग टेक्निक्स (5-6 मिनट): इससे फेफड़ों से बलगम को बाहर निकालने में मदद मिलती है। फेफड़ों से बलगम को बाहर निकालने के लिए पोस्टुरल ड्रेनेज होता है। इसे नियामित समय अंतराल के बाद लेटने जैसे पेट के बल लेटना, शरीर के दोनों साइड लेटना की मुद्रा में किया जाता है। इसे बाकी स्ट्रेप्स के 2-3 चक्र करने के बाद एक बार किया जाता है।
थेरेपी से जुड़ी खास बातें:
चेस्ट फिजियोथेरेपी के लिए खाने से पहले का समय या खाने के डेढ़ से दो घंटे का वक्त सबसे अनुकूल है। इस समय में थेरेपी करने से उल्टी होने का खतरा नहीं होता।
इस थेरेपी को एक सीरीज की तरह साइकल बनाकर करना चाहिए।
फेफड़ों को बेहतर बनाने के लिए एक पीरियड में थेरेपी की 2-3 साइकल करने की जरूरत पड़ती है।
भांप के साथ इस थेरेपी को करने से बलगम और स्राव को कम किया जा सकता है।
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