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लाइफस्टाइल : इंफ्लामेटरी बाउल डिजीज (IBD) एक ऐसी बीमारी है, जिसमें आंतों में सूजन हो जाती है। यह एक क्रॉनिक कंडिशन है, यानी लंबे समय तक रहने वाली बीमारी है। दरअसल, यह कुछ डिसऑर्डर्स का समूह होता है, जिसमें क्रॉन्स डिजीज, अल्सरेटिव कोलाइटिस शामिल हैं। इसकी वजह से पाचन तंत्र के टिश्यूज में सूजन हो जाती है, जिसके कारण पेट दर्द, डायरिया, रेक्टल ब्लीडिंग, थकान जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।
कुल लोगों के लिए यह बीमारी ज्यादा परेशानी का सबब नहीं बनती है, लेकिन कुछ लोगों के लिए यह जानलेवा स्थिति भी पैदा कर सकती है। इसलिए हर साल लोगों को इस बीमारी के बारे में जागरूक बनाने के लिए 19 मई को World IBD Day मनाया जाता है। इस बीमारी के लक्षणों की मदद से इसका जल्दी पता लगाया जा सकता है, जो इसके इलाज में काफी मददगार साबित हो सकता है। इसलिए इस बारे में और जानने के लिए हमने डॉ. अनुकल्प प्रकाश (सी.के. बिरला अस्पताल, गुरुग्राम के गैस्ट्रोइंटेरोलॉजी विभाग के लीड कंसल्टेंट) से बात की। आइए जानते हैं उन्होंने क्या बताया।
क्या हैं IBD के लक्षण?
डॉ. प्रकाश ने बताया कि IBD में क्रॉन्स डिजीज और अल्सरेटिव कोलाइटिस शामिल हैं, जिनकी वजह से गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सिस्टम में सूजन आ जाती है। इसके सामान्य लक्षणों में डायरिया, जो अक्सर होता रहता है, पेट में दर्द या ऐंठन, रेक्टल ब्लीडिंग शामिल हैं। इनके अलावा, थकान, भूख न लगना, वजन कर होने जैसे लक्षण भी इस बीमारी में देखने को मिलते हैं। भूख न लगने की वजह से कई बार कुपोषण और एनीमिया की समस्या भी हो सकती है। इस बीमारी के कारण कुछ लोगों में बुखार, जोड़ों में दर्द और त्वचा से जुड़ी समस्याएं भी देखने को मिलती हैं। इन लक्षणों के बढ़ने की वजह से कई मामलों में यह बीमारी गंभीर रूप भी ले लेती है।
इसका इलाज क्या है?
IBD के इलाज का मुख्य उद्देश्य सूजन कम करना और इसके लक्षणों को कंट्रोल करना है, ताकि मरीज को इससे लंबे समय तक आराम मिल सके। इसके इलाज के लिए कई तरह की दवाओं की मदद ली जाती है, जो इम्यून सिस्टम की सहायता करते हैं, जिससे इसके लक्षणों को कम करने में मदद मिले। इसके लिए बायोलॉजिकल प्रोडक्ट्स, स्टेरॉइड मेडिकेशन और इम्यून मॉड्यूलेटर्स की मदद ली जाती है। कुछ मामलों में IBD की वजह से इन्फेक्शन भी हो सकता है, जिसके इलाज के लिए एंटीबायोटिक्स की मदद ली जाती है। इसके बेहतर इलाज के लिए डॉक्टर्स मरीज के इलाज पर निगरानी रखते हैं, ताकि उस हिसाब से इलाज को आगे बढ़ाया जाए या उसमें बदलाव किए जाएं।
इस बीमारी के इलाज के लिए कुछ मामलों में सर्जरी की भी मदद लेनी पड़ती है, जिसमें गैस्ट्रोइंटेस्टाइन के प्रभावित हिस्से को निकाल दिया जाता है। इस बीमारी की वजह से होने वाली परेशानियों को कम करने और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए डाइट में सुधार और पोषण के लिए कुछ सप्लीमेंट्स की मदद ली जाती है। साथ ही, इसके लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए लाइफस्टाइल में कुछ जरूरी बदलाव करना आवश्यक है। नियमित एक्सरसाइज और तनाव कम करने से भी इसके लक्षणों से आराम मिलता है और व्यक्ति का जीवन बेहतर होता है।
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Apurva Srivastav
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