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लेखिकाः उपमा ऋचा
मनुष्य स्वभावतः सामाजिक प्राणी है. अभिव्यक्ति और जुड़ाव उसकी वह ज़रूरतें हैं, जिन्हें पूरा करने के लिए कभी उसने संबंधों को सींचा. कभी परिवार बसाए. कभी अक्षर-अक्षर जोड़कर शब्द गढ़े और कभी शब्द-शब्द जोड़कर भाषा... उसने उत्सव रचे. त्यौहार बनाए. कोरे कागज़ रंगकर आसमान कबूतरों की फड़फड़ाहटों से भर दिया. किसलिए? केवल उसी जुड़ाव को क़ायम रखने के लिए, जिसकी तलाश में आजकल लोगों को डिजिटल दुनिया का पता पूछते नज़र आते हैं. बेशक तकनीक और विकास के सपनों ने साझे चूल्हों को तोड़कर मॉड्यूलर किचन में फ़िट कर दिया हो, लेकिन फ़ेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम और गूगल प्लस पर लगातार बढ़ती आबादी कह रही है कि जो अकेलापन हमने अपनी दिनचर्या में लिख लिया है. वह हमारी आदत नहीं मजबूरी है. हालांकि वास्तविक संसार के बरक्स खड़े हो गए साइबर संसार को लेकर लगातार चिंताएं जताई जा रही हैं. सवाल किए जा रहे हैं, लेकिन एक्स्पर्ट्स की मानें तो सोशल नेटवर्किंग साइट कोरी वक़्त की बर्बादी नहीं है. थोड़ी समझदारी दिखाकर यूज़र न केवल अपने सोशल मीडिया अकाउंट से अपने फ़ेवर में नतीजे हासिल कर सकते हैं. बल्कि इकोनॉमिकल, सोशल, सायकोलॉजिकल, एजुकेशनल लाभ कमा सकता है. कैसे? आइए जानें
नौकरी की नई संभावनाएं
बढ़ती बेरोज़गारी के दिनों में सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म उम्मीद की एक नई किरण बनकर आए हैं. ख़ासतौर पर ट्विटर, लिंक्डइन जैसी साइट्स ‘जॉब हंटर्स’ को होने वाले नियोक्ता के साथ सीधे जुड़ने, बात करने, अपनी शर्तों पर नौकरी पाने की सुविधा दे रही हैं. हालांकि यह सही है कि ‘विद ग्रेटर एक्सेस कम्स ग्रेटर चांस टु गेट थिंग्स रॉन्ग’ लेकिन थोड़ी-सी सावधानी और सही एप्रोच से सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल को ‘पॉकिट-सैटिस्फ़ैक्शन’ तलाशने का ज़रिया बनाया जा सकता है. यह प्लैटफ़ॉर्म केवल उन्हीं के लिए ख़तरनाक हो सकता है, जो नहीं जानते कि इसका ठीक तरह कैसे प्रयोग किया जाए. क्योंकि कुछ बरसों में फ़ेसबुक और ट्विटर जैसी साइट्स ज़िंदगी के लिए ब्रेड-बटर हो गई हैं. महज़ डाउनलोड-अपलोड करना भर सीख जाने से लोग ख़ुद को एक्स्पर्ट समझ बैठते हैं. जबकि असलियत में यहां सही इस्तेमाल करने वालों से ज़्यादा तादाद ग़लत ढंग से प्रयोग करने वालों की है. इसीलिए जब प्रोफ़ेशनल नेटवर्किंग करने के लिए सोशल मीडिया का प्रयोग करने की बात आती है, तब तमाम जानकारियां और अनुभव सहायक के बजाय बाधक ही साबित होते हैं.
How to use social media to build career?
क्या करें
1. बेसिक इन्फ़ॉर्मेशन अप-टू-डेट रखें. अगर अदर सोशल प्लैटफ़ॉर्म पर भी अकाउंट हों, तो बायो में उनकी जानकारी देकर दोहरा लाभ उठा सकते हैं. ख़ासतौर पर कंपनी पेज पर दूसरी वेबसाइट्स की लिंक जोड़ने से एक्स्ट्रा प्रमोशन मिल सकता है. क्योंकि तब दूसरे ठिकानों पर भी ट्रैफ़िक पहुंचता है.
2. अलग-अलग सोशल मीडिया प्लैटफ़ॉर्म के बायो का नेचर अलग-अलग होना चाहिए. जैसे फ़ेसबुक पर ख़ुद को डिस्क्राइब करने का तरीक़ा लिंक्डइन की तुलना में अलग होगा, क्योंकि दोनों साइट्स का फ़ोकस अलग है. जहां लिंक्डइन की रुचि आपके विचारों से ज़्यादा आपकी जॉब हिस्ट्री में होती है. वहीं फ़ेसबुक एक्सप्रेशन पर बल देती है. हालांकि यह बात अलग है कि आज के दौर में फ़ेसबुक भी बिज़नेस में इकोनॉमिक बढ़त हासिल करने की सुविधा दे रही है.
3. अपना टार्गेट स्पष्ट रखें और फिर अपने अकाउंट पर उसी तरह का ट्रैफ़िक क्रिएट करने की कोशिश करें और अपनी वॉल पर पोस्ट अपडेट करने से लेकर अपनी फ्रेंड-लिस्ट में लोग जोड़ने तक में इसी मूलमंत्र को याद रखें.
4. अपने प्रॉडक्ट को सही तरह से डिस्क्राइब करना आना चाहिए, वरना अच्छा प्लैटफ़ॉर्म भी आपको मनचाहा लाभ नहीं दे पाएगा.
5. लिंक्डइन के प्रोफ़ेशनल्स अक्सर शिकायत करते हैं कि उन्हें न्यू जॉब सीकर्स की ओर से अक्सर बड़े अजीब-ओ-ग़रीब संदेश मिलते हैं. वीवी फ्रीडगुट, फ़ाइनैंशियल एड्यूकेटर फ़ॉर यंग पीपल और डायरेक्टर, ब्लैक बिलियन ने इस बारे में विचार रखते हुए कहा कि ‘कई बार सोशल मीडिया प्रोफ़ाइल और प्रोफ़ेशनल प्रोफ़ाइल का कॉम्बिनेशन नए लोगों के लिए परेशानी की वजह बन जाता है. क्योंकि वे सोशल मीडिया के बारे में तो जानकारी से लबालब होते हैं, लेकिन प्रोफ़ेशनल प्रोफ़ाइल के बारे में नहीं. इसी के चलते वे कंपनी पर ग़लत प्रभाव छोड़ बैठते हैं. प्रार्थना, याचना, दुहाईयों की सुनामी नियोक्ता को आपकी ग़लत छवि बनाने की ओर धकेलता है.
बेहतर शिक्षा की ओर
कुछ समय पहले बेलर विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स ऐंड साइंसेज़ में ‘फ़ेसबुक शिक्षा में बाधक या सहायक’ विषय पर बोलते हुए समाजशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर केविन डोगेर्टी ने माना कि फ़ेसबुक जैसी सोशल मीडिया साइट्स पढ़ाई और विषय पर अच्छी पकड़ बनाने में भी मदद करती हैं. उन्होंने स्पष्ट कहा कि,‘‘कुछ शिक्षक इस बात से चिंतित रहते हैं कि सोशल मीडिया पाठ्यक्रम से छात्रों का ध्यान हटाती है, लेकिन हमने पाया फ़ेसबुक ग्रुप ने विद्यार्थियों को निष्क्रिय मूकदर्शक से सक्रिय अध्यययनकर्ता में बदलने में मदद की और यह छात्रों के प्रदर्शन के लिए महत्वपूर्ण है. ख़ासतौर पर अगर हमारे लैंग्वेज टीचिंग इंस्टिट्यूट सही ढंग से लाभ उठाना सीख लें, तो सोशल मीडिया उनके लिए अत्यंत प्रभावकारी उपकरण बन सकता है.’’
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