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हम एक अभूतपूर्व महामारी के दौर में जी रहे हैं. जहां हमें दिनभर नकारात्मक और विचलित कर देनेवाली ख़बरें सुनने मिल रही हैं. जिन परिवारों में अब तक कोरोना नामक इस बीमारी ने दस्तक नहीं भी दी है, वे भी इसकी मार सहन कर रहे हैं, क्योंकि इस समय आर्थिक गतिविधियां एक तरह से ठप हो गई हैं. नौकरियां जा रही हैं, वर्क फ़ोर्स को पे कट का सामना करना पड़ रहा है. सालभर से अधिक समय हो गया है, पर वर्कफ्रॉम होम में काम के घंटे निश्चित नहीं हो पा रहे हैं. जहां कंपनियों को लगता है कि घर से काम करते हुए एम्प्लॉयी सीरियसनेस नहीं दिखा रखे हैं, वहीं कर्मचारियों की आम भावना है कि ऑफ़िस वाले उनका ख़ून चूस रहे हैं. यानी हम कह सकते हैं कि भारत की वर्किंग पॉप्युलेशन अनिश्चितता और अवसाद के घेरे में फंसती जा रही है, जो किसी भी देश के लिए अच्छा नहीं कहा जा सकता. हर तरफ़ स्ट्रेस्ड आउट हो रही वर्किंग पॉप्युलेशन की बात हो रही है, पर इन सबके बीच एक आयुवर्ग ऐसा भी है, जो वैसे तो स्कूल बंद होने, ऑनलाइन पढ़ाई के कारण मिले स्मार्ट फ़ोन्स से ख़ुश दिख रहा है. जी हां, हम बच्चों की बात कर रहे हैं. ऊपरी तौर पर सभी यही समझते हैं कि बच्चों ने इस बदली परिस्थिति से सामन्जस्य बिठा लिया है, पर आप ज़रा ग़ौर करें, यह बच्चे भी उतने ही तनाव में हैं. उतने ही चिड़चिड़े और भविष्य को लेकर आशंकित हो रहे हैं, जितने उनके माता-पिता या घर के दूसरे बड़े. उनके मन में भी नकारात्मक ख़बरों का उतना ही असर पड़ रहा है, जितना बड़ों के. तो क्या करें, अगर आपका बच्चा हर बीतते दिन के साथ नकारात्मकता से भरता जा रहा हो.
कैसे पता करें, बच्चा परेशानी से जूझ रहा है?
ईमानदारी की बात करे तो इस समय हम बड़े ख़ुद अपने हिस्से की समस्याओं में इस क़दर उलझे हुए हैं कि शायद ही बच्चों पर माइन्यूटली ध्यान दे पा रहे हों. पर जिस तरह यह सबकुछ हमारे लिए नया है, अजीब है और डरावना है, उसी तरह बच्चे भी पहली बार अपने आसपास इस तरह का अजीबोग़रीब माहौल देख रहे हैं. आजकल सोशल मीडिया के चलते वे हमसे ज़्यादा जानकारियों से एक्सपोज़ रहते हैं. तो ज़ाहिर है, इस परिस्थिति के बारे में भी उन्हें काफ़ी जानकारी होगी. अमूमन जब हमारे पास ज़रूरत से ज़्यादा जानकारियां हो जाती हैं, तब वे हमें नकारात्मक रूप से प्रभावित करने लगती हैं. हमारा अवचेतन मस्तिष्क उन जानकारियों का विश्लेषण करता रहता है. यही मेकैनिज़म बच्चों पर भी काम करता है. वे भी अधिक जानकारी के चलते नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रहे हैं.
जब हम नकारात्मकता से भरते जाते हैं, तब हमारे रूटीन में बदलाव आना शुरू हो जाता है. जैसे या तो हम बहुत ज़्यादा सोने लगते हैं या रात रातभर नींद नहीं आती. हमारा व्यवहार बदल जाता है. हम अधिक उग्र हो जाते हैं या बिल्कुल ही शांत हो जाते हैं. खाना खाने के मामले भी यही होता है. या तो स्ट्रेस में बहुत खाते हैं या डायट एकदम से कम हो जाती है. हमें हर वक़्त भारीपन और थकान का अनुभव होता है. अपने पसंद की गतिविधियों में मन नहीं लगता. अगर आप अपने बच्चे में ये बदलाव देख रहे हैं तो बिल्कुल भी इग्नोर न करें.
परेशानी को समझें और समझदारी से हैंडल करें
इस बात की बहुत ज़्यादा संभावना है कि अगर आप बच्चे से पूछें कि कोई प्रॉब्लम है क्या? तो वह मना कर दे और कहे सब ठीक है. उसकी सब ठीक है वाली बात को सुनकर आप रिलैक्स न होइए. उसे मॉनिटर करते रहें. हम यह भले ही सोचते हों कि अपने पैरेंट्स की तुलना में हम काफ़ी खुले विचारों वाले हैं, बच्चे हमसे सबकुछ बताते हैं, पर इस बात को मत भूलिए, आप उनके पैरेंट्स हैं और पैरेंट्स हमेशा पैरेंट्स रहते हैं. ज़्यादातर बच्चे अब भी पैरेंट्स को सारी बातें नहीं बताते. ऐसे में आप बच्चे में विश्वास पैदा करें. उन मुद्दों को न छेड़ें, जिनपर आपकी राय एक जैसी न हो. उन्हें यह बताएं कि हर परिस्थिति में आप उनके साथ हैं. उनके साथ रोज़ाना टाइम बिताएं, क्योंकि भरोसे का यह माहौल एक दिन में तो नहीं बनाया जा सकता है ना.
बच्चों के साथ टाइम बिताने के लिए आप उनके साथ इनडोर गेम खेल सकते हैं. उनके पसंदीदा टॉपिक पर डिस्कशन कर सकते हैं. उन्हें नई बातें बता सकते हैं. अपने बचपन की कहानियां सुना सकते हैं. बात करते करते उनसे उनकी समस्या के बारे में पूछें. कहने का मतलब यह है कि बच्चों को उनकी हाल पर नहीं छोड़ना है. वे चाहे कितना भी मना क्यों न करें, उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश करें और समाधान भी सुझाएं. बेशक, इस काम में आपको बहुत ज़्यादा टाइम लग सकता है, पर हार न मानें.
हर समस्या यूनीक होती है, तो समाधान भी अलग ही होगा
जब आपको समस्या के बारे में पता चल जाए तो धैर्य के साथ समाधान की तरफ़ बढ़ें. उनकी समस्याओं को छोटी करके न आंकें और न ही अपनी बड़ी प्रॉब्लम्स के साथ कम्पेयर करें. हर समस्या यूनीक होती है तो समाधान भी यूनीक होना चाहिए. आप अपना उदाहरण उन्हें दे सकते हैं, पर यही सही रास्ता है ऐसा नहीं कह सकते.
अगर किसी पॉइंट पर आप ऐसा फ़ील करें कि आपसे उनकी समस्या हल नहीं हो सकेगी तो प्रोफ़ेशनल हेल्प लेने में हिचकिचाएं नहीं. बच्चों के मनोविज्ञान को चाइल्ड थेरैपिस्ट बेहतर ढंग से समझते हैं.
काउन्सिलिंग वाले रास्ते के अलावा आपको अपने बच्चे की रूटीन को हेल्दी बनाने के बारे में सोचना चाहिए. मसलन, यह ख़्याल रखें कि वे अच्छा खाएं, एक्सरसाइज़ करें, ध्यान योग करें, परिवार के साथ समय बिताएं. उनके सुबह उठने और रात के सोने का टाइम सबसे पहले फ़िक्स कर दीजिए. सोशल मीडिया पर उनका समय कम कराएं. मोबाइल, कम्प्यूटर और इंटरनेट के बजाय किताबों से उनकी दोस्ती कराएं. घर में टीवी पर न्यूज़ चलता हो तो सबसे पहले वह बंद कराएं. बजाय इसके कुछ अच्छी हल्की-फुल्की पारिवारिक फ़िल्में साथ देखें. ये सारे रास्ते बच्चे को नेगेटिविटी यानी नकारात्मकता से दूर ले जाएंगे.
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