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आपको अपने ग़ुस्से को पहचानना चाहिए से हमारा मतलब है
क्या आप अक्सर वाद-विवाद की गहमागहमी में अपना आप खो बैठते हैं? फिर चाहे वाद-विवादों दोस्तों के साथ हो रही हो या पार्टनर के साथ. हम कह सकते हैं कि आप तर्कों की जगह इमोशन को प्रधानता देते हैं. हम इसके लिए आपको ज़िम्मेदार नहीं ठहरा रहे हैं. वाद-विवाद के दौरान दिमाग़ को ठंडा रखना चाहिए यह कहने में आसान लगता है, पर असल में ऐसा कर पाना बहुत ही मुश्क़िल होता है. ख़ासकर, जब कोई आपकी किसी कमज़ोर नस को बारबार दबाकर आपको उत्तेजित कर रहा हो, आपको उकसा कर मज़े ले रहा हो. यहां हम कुछ रणनीतियों के बारे में बात करना चाहते हैं, जो वाद-विवाद के दौरान आपको शांत रहने में मदद करेंगी.
उकसावे के जाल से सावधान रहें
कभी-कभी आप वाद-विवाद के दौरान दूसरों के उकसावे में आ जाते हैं. आमतौर पर जिन लोगों के पास कुछ भी तथ्यातम तर्क नहीं होते, वे सामनेवाले को यहां-वहां की बातों से उकसाते हैं. आपको किसी दूसरी बात में घसीटने की कोशिश करते हैं. आप उनके उकसावे में आकर अपना आपा खो देते हैं. देखनेवालों को लगता है कि आप उग्र हो रहे हैं. देखनेवालों की सिम्पैथी उग्र लोगों के ख़िलाफ़ होती है. यानी जो ख़ामोश रहता है, वह दूसरों की नज़रों में बेचारा साबित हो जाता है. लोगों की सहानुभूति उसे मिल जाती है. आपको वाद-विवाद में टॉपिक से नहीं भटकना चाहिए. उकसावे के जाल से सावधान रहेंगे तो आपका आपा भी नहीं खोएगा.
अपने ग़ुस्से को पहचानें
आपको अपने ग़ुस्से को पहचानना चाहिए से हमारा मतलब है कि आपको अपने ग़ुस्से के पैटर्न से वाकिफ़ होना चाहिए. यानी वह कौन-सी बातें होती हैं, जो आपको ग़ुस्सा दिलाती हैं आपको पता होना चाहिए. जब आप अपने ग़ुस्से से भली तरह परिचित होंगे तो उस दिशा में बढ़ने से बचेंगे, जिस ओर जाकर आप लाल-पीले हो सकते हैं.
सामनेवाले की पूरी बात सुनें
हमें ग़ुस्सा इसलिए आता है क्योंकि हम सामनेवाले की पूरी बात ध्यान से नहीं सुनते. तो अगर आप चाहते हैं कि ग़ुस्सा आपकी नाक से उतर कर आपकी ज़ुबान पर न चढ़े तो सामनेवाले की पूरी बात ख़त्म होने के पहले किसी कन्क्लूज़न पर न पहुंचें. ज़्यादातर मामलों में सामनेवाले का पूरा नज़रिया समझने के बाद हमें ग़ुस्सा करने की ज़रूरत भी नहीं पड़ती.
अपनी आवाज़ को सौम्य रखें और बॉडी लैंग्वेज को शांत
आवाज़ बात को बनाती है और बिगाड़ती भी है. जब आप तेज़ आवाज़ में बात करते हैं तो आप भले ही ग़ुस्सा न हों, सामनेवाले को ऐसा लगता है कि आप क्रोध में कुछ बोल रहे हैं. वह भी अपनी आवाज़ को तेज़ कर लेता है. उसका जवाब देने के लिए आप अपनी आवाज़ को थोड़ा और तेज़ करके उसमें न चाहते हुए भी ग़ुस्सा मिला देते हैं.
आवाज़ के अलावा हमारी बॉडी लैंग्वेज भी क्रोध की अग्नि को भड़का सकती है. हाथों को बांधकर रखना, मुट्ठी बांधकर बात करना या उंगली दिखाकर अपनी बात रखना भी ग़ुस्से को भड़काने का काम करता है.
गहरी सांसें लें
पुरानी कहावत है कि जब डर लगे या ग़ुस्सा आए तो गहरी और लंबी सांसें लेनी चाहिए. तो जब आप किसी से गर्मागर्म बहस करने जा रहे हों तो पहले ठंडा पानी पी लें और गहरी सांसें भर लें. गहरी सांसें लेने से दिमाग़ शांत होता है. वह दिमाग़ को और शांत करने के लिए हार्मोन्स रिलीज़ करने में मददगार है.
अपने ईगो को बगल रख दें
आपको केवल इसलिए बेमतलब की बहस से बचना चाहिए कि इससे सामनेवाला जीतता हुआ नज़र आ रहा है. अगर सामनेवाले ने अच्छे तर्क हैं तो आपको उसकी तारीफ़ करनी चाहिए न कि चिढ़कर कुतर्क करके अपना आपा खोना चाहिए. और आपको यह याद रखना चाहिए कि आपका असली लक्ष्य था अपने ग़ुस्से पर क़ाबू पाना न कि बहस में जीत हासिल करना.
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Apurva Srivastav
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