लाइफ स्टाइल

कैसे निपटें नापसंद कलीग से?

Admin2
14 May 2023 2:56 PM GMT
कैसे निपटें नापसंद कलीग से?
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ऑफ़िस में अलग-अलग स्वभाव और मिज़ाज के लोग होते हैं. इसलिए इस बात की संभावना बनी रहती है कि कोई आपका पक्का साथी बन जाए, तो कोई आपको फूटी आंख न सुहाए. यह एक बड़ी जटिल स्थिति होती है. जिसे सही तरीक़े से डील न किया जाए, तो कुछ लोग परेशान होकर नौकरी तक छोड़ देते हैं, कुछ आत्मविश्वास खोने लगते हैं, तो कुछ डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. इस स्थिति से निपटने का तरीक़ा हम आपको बता रहे हैं.
ऑफ़िस में लोगों का व्यवहार समझाते हुए मुंबई की करियर काउंसलर मालिनी शाह बताती हैं,“हर ऑफ़िस में ऐसे लोग संभावित हैं, जिन्हें हम पसंद नहीं करते. और दिक़्क़त यह है कि हमें उनके साथ दिन के कम-से-कम आठ घंटे बिताने होते हैं. मैं सबसे पहले आपको याद दिलाना चाहती हूं कि हाथ की पांचों उंगलियां बराबर नहीं होतीं. कोई छोटी तो कोई बड़ी होती है. सबसे एक तरह की उम्मीद नहीं की जा सकती. ऑफ़िस में कलीग्स से किसी भी तरह की उम्मीद हमें सबसे ज़्यादा परेशान करती है.” वहीं क्लीनिक साइकोलॉजिस्ट पूनम राजभर का कहना है,“मेरे हिसाब से ऑफ़िस में जिन लोगों को हम नापसंद करते हैं, उनमें से 90 प्रतिशत के साथ संबंधों को थोड़ी सजगता से सुधारा जा सकता है. ये संबंध कम्यूनिकेशन गैप, मिस कम्यूनिकेशन, ग़लतफ़हमी और ज़्यादा अपेक्षाओं के कारण बिगड़ते हैं. बचे 10 प्रतिशत लोगों से संबंध सुधारना असंभव होता है. ऐसा करना पत्थर पर सिर फोड़ने जैसा हो सकता है. पर इस सबके बावजूद हम इन 10 प्रतिशत लोगों के साथ सकारात्मक डील कर बुरी परिस्थितियों से बच सकते हैं.”
पसंद-नापसंद की कई हैं वजह
कई कारणों से हम ऑफ़िस में अपने किसी कलीग को नापसंद करते हैं. कुछ लोगों को ज़ोर-ज़ोर से बोल कर डिस्टर्ब करने के कारण, कुछ को खाते समय अजीब आवाज़ निकालने जैसे छोटे-मोटे ग़लत व्यवहारों तो कुछ को अनप्रोफ़ेशनलिज़्म की वजह से. जैसे कुछ कलीग्स काम करने से ज़्यादा क्रेडिट लेने की फ़िराक़ में होते हैं, कुछ आपकी पीठ पीछे बुराई करते हैं. कुछ कलीग्स ऐसे भी होते हैं, जो अपनी अक्षमता छुपाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना कर आपको नीचा दिखाने का प्रयास करते हैं. मालिनी कहती हैं,“कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो अपने निजी जीवन का डिप्रेशन ऑफ़िस में संभाल नहीं पाते और उनका नकारात्मक स्वभाव ऑफ़िस के माहौल को बिगाड़ता है. वहीं कई बार हम पूर्वाग्रहों के चलते किसी व्यक्ति को नापसंद करने लगते हैं. अगर हम थोड़ी-सी सावधानी बरतें तो कई तरह की परेशानियों से बचा जा सकता है. यदि किसी का ज़ोर से बोलना आपको डिस्टर्ब कर रहा है तो उसे प्यार से बताएं कि उसकी आवाज़ आपके काम में बाधा डाल रही है. यदि कोई आपके काम का क्रेडिट ले रहा है, तो उसे रोकते हुए बॉस को सकारात्मक ढंग से बताएं कि यह काम आपने किया है. जब भी कोई परिस्थिति आए तो सही बात कहने से हिचकिचाइए नहीं.”
काम को अहमियत दें
मालिनी बताती हैं,“हमें यह याद रखना चाहिए कि हम ऑफ़िस में हैं. और सिर्फ़ काम है, जो हमें जोड़ता है. हो सकता है कि किसी से हमारे संबंध गहरे हो जाएं. पर सभी के साथ यह ज़रूरी नहीं है. हाल ही में मैंने यूरोप के एक ऑफ़िस का अध्ययन किया. वहां लोग एक-दूसरे से हंस-हंस कर बातें कर रहे थे. पर किसी के पास किसी का पर्सनल नंबर नहीं था. वहां ऑफ़िस का एक माहौल होता है, घर से जुदा. हम भारतीय बहुत जल्दी जुड़ जाते हैं. हम ऐसा ही चाहते हैं कि पूरी दुनिया हमारे अगल-बगल घूमती रहे, पर यह संभव नहीं है. हम ऑफ़िस में एक घर बना लेते हैं, जो किसी तरह से ठीक नहीं होता.” जब हम किसी को किसी भी कारण से नापसंद करते हैं, तो हमें उसे बदलने की बजाए ख़ुद को बदलना चाहिए.
जैसे को तैसा न दें
अक्सर हमें सिखाया जाता है कि बुरे के साथ बुरा व्यवहार करना अच्छी नीति है. पर ऑफ़िस में यह नीति पूरी तरह से काम नहीं करती. जिन लोगों को हम पसंद नहीं करते, हमें उनके साथ भी अच्छा व्यवहार करना चाहिए. क्योंकि काम तो आपको उनके साथ ही करना है, फिर चाहे आप ग़ुस्से से करें या प्यार से. अगर आप बुराई करने वाले की बुराई करने लगेंगे तो काम से आपका ध्यान हट जाएगा. जिन्हें हम पसंद नहीं करते उन्हें समझने, ऑब्जर्व करने की ज़रूरत होती है.
फिर भी ऑफ़िस डेकोरम बनाए रखें
यदि उस कलीग के साथ बात करते-करते बात झगड़े में बदल जाए, तो अपने वॉइस टोन और हावभाव पर नियंत्रण रखें, ताकि ऑफ़िस का डेकोरम बना रहे. यदि आप बॉस हैं, तो अपनी टीम के साथ एक दिन की मीटिंग भी रख सकते हैं, जिसमें ऑफ़िस में लोगों के व्यवहार पर सकारात्मक चर्चा हो. यदि आपकी टीम का कोई सदस्य किसी तरह के डिप्रेशन में है तो उसे काउंसलिंग की सलाह दें. अपनी टीम को पूरी सजगता से ऑफ़िस में गॉसिपिंग से बचने की सलाह दें. स्थिति चाहे जो भी हो, अपने व्यवहार को सौम्य और नियमों के अनुरूप बनाए रखें.
जब मामला हाथ से निकल जाए
पूनम बताती हैं,“कई बार कुछ लोगों का व्यवहार ऐसा होता है कि आप उनका चाहे जितना भला सोचें, वे आपको ग़लत ही समझेंगे. ऐसे लोग हर बात को नकारात्मकता की छन्नी में छानकर देखते-समझते हैं. अक्सर पाया जाता है कि नकारात्मकता अयोग्यता से आती है. ये अयोग्य लोग बहुत डरे हुए होते हैं. जब आपको लगे कि आपकी सारी कोशिशों के बावजूद चीज़ें ठीक नहीं हो रही हैं, तो अपनी एनर्जी वेस्ट न करें. जितना संभव हो अकेले में बातचीत करने से बचें. ऐसे कलीग्स से लिखित कम्यूनिकेशन करें. ईमेल आप अपने मौजूदा बॉस को ज़रूर सीसी करें. जब इससे भी बात न बनें और आपको बॉस के पास जाना ही पड़े तो गॉसिप वाले या शिकायती लहज़े में अपनी बात रखने की जगह साफ़-साफ़ अपना पक्ष रखें. बॉस से यह कहने की बजाय कि आपको उस कलीग से परेशानी है, उन्हें बताएं कि उस व्यक्ति के कारण ऑफ़िस का क्या नुक़सान हो रहा है.
अच्छे व्यवहार की सीख
यह छोटी-सी कहानी हमें ऑफ़िस में व्यवहार से जुड़ी अच्छी सीख देती है.
एक बच्ची रोज़ अपनी मां से स्कूल से आकर शिकायत करती कि उसकी क्लास में एक लड़की जो उसके बगल में बैठती है, बहुत बुरी है. उसकी मां ग़ौर से बात सुनती रही और कुछ दिनों बाद उसने अपनी बेटी से कहा कि आज तक तुमने उस लड़की के बारे में वह बातें बताईं जो तुम्हें पसंद नहीं हैं. कल से मुझे कुछ ऐसी बातें बताना, जो उसमें अच्छी हों. बच्ची ने दूसरे दिन से बताना शुरू किया, आज मेरी पेंसिल टूट गई, तो उसने अपनी पेंसिल दी. फिर आज उसने मुझे बैठने के लिए जगह दी. एक महीने में बच्ची की उस लड़की से गहरी दोस्ती हो गई.
हमें भी अपने कलीग्स की क्वॉलिटीज़ पर नज़र रखनी चाहिए. चाहे वे एक प्रतिशत ही क्यों न हों. गुलाब में कांटें देखेंगे तो गुलाब की सुंदरता नहीं देख पाएंगे. पर यह सारी बातें 90 प्रतिशत लोगों पर लागू होती हैं. 10 प्रतिशत लोगों के साथ ये प्रयोग सफल नहीं हो सकते. हमें उनके साथ संतुलित रहकर डील करनी चाहिए.
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