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इन्सान 4,000 से अधिक वर्षों से हल्दी का इस्तेमाल कर रहा है। खाने से लेकर सौंदर्य प्रसाधन तक में हल्दी का बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। पारंपरिक आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में भी गठिया से लेकर एसिडिटी तक, तमाम विकारों के इलाज के लिए हल्दी का बढ़-चढ़कर सहारा लिया जाता है।
हल्दी के चिकित्सकीय गुणों को लेकर कई लेख और सोशल मीडिया पोस्ट हैं, जिनमें इस भारतीय मसाले के दिमाग दुरुस्त रखने के साथ ही दर्द और सूजन में कमी लाने में मददगार होने का दावा किया गया है। हालांकि, इनमें से कई दावों की वैज्ञानिक पुष्टि की जा चुकी है, लेकिन संबंधित अध्ययन मुख्यत: कोशिकाओं और जानवरों पर किए गए हैं, जिससे मानव सेहत पर हल्दी के सकारात्मक प्रभाव पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हो पाए हैं।
हल्दी में 100 से ज्यादा यौगिक पाए जाते हैं, लेकिन स्वास्थ्य संबंधी इसके अधिकतर फायदे कर्क्युमिनॉयड से जुड़े हुए हैं, जिनमें मुख्य रूप से कर्क्युमिन शामिल है। कर्क्युमिनॉयड ऐसे फेनोलिक यौगिक होते हैं, जो पौधों द्वारा उन्हें विशिष्ट रंग देने के वास्ते वर्णक के रूप में या फिर जानवरों को उन्हें खाने से हतोत्साहित करने के लिए पैदा किए जाते हैं। विभिन्न अध्ययनों में कर्क्युमिनॉयड में एंटी-ऑक्सीडेंट प्रभाव होने की बात सामने आई है।
एंटी-ऑक्सीडेंट कोशिकाओं को फ्री रैडिकल से होने वाले नुकसान से बचाने या उनका दुष्प्रभाव कम करने में कारगर माने जाते हैं। विभिन्न अध्ययनों में सामने आया है कि फ्री रैडिकल मानव शरीर में सूजन से लेकर हृदयरोग और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी का कारण बन सकते हैं।
दर्द पर असर: मानव शरीर पर हल्दी के सकारात्मक प्रभावों की पुष्टि करने वाले अध्ययनों की कमी के बावजूद इस भारतीय मसाले को प्रमुख दर्द निवारक एवं सूजन रोधी तत्व के रूप में प्रचारित किया जाता है, जो जोड़ों के दर्द से लेकर गठिया तक के इलाज में प्रभावी है।
मनुष्यों पर किए गए विभिन्न परीक्षणों के विश्लेषण के मुताबिक, कुछ मामलों में हल्दी के सप्लीमेंट दर्द पर ‘प्लेसिबो’ से कुछ खास प्रभावी नहीं साबित होते, जबकि कई मामलों में इनका असर दर्द एवं सूजन रोधी दवाओं जितना होता है।
मालूम हो कि किसी अध्ययन में दवा का असर आंकने के लिए एक नियंत्रित समूह को दवा बताकर दिए जाने वाले गैर-हानिकारक एवं निष्क्रिय पदार्थ को ‘प्लेसिबो’ कहते हैं। हालांकि, इनमें से ज्यादातर परीक्षण बेहद छोटे समूह पर किए गए थे। यही नहीं, उनमें प्रतिभागियों को दी जाने वाली हल्दी की खुराक भी अलग-अलग थी।
ऐसे में यह स्पष्ट रूप से कह पाना मुश्किल है कि हल्दी दर्द के एहसास में कमी लाने में असरदार है।
कैंसर रोधी गुण: एंटी-ऑक्सीडेंट प्रभाव के कारण हल्दी में कैंसर रोधी गुण होने का भी दावा किया गया है। एक अध्ययन में ‘कर्क्युमिन’ को डीएनए में होने वाले उन बदलावों को पलटने में कारगर पाया गया है, जो स्तन कैंसर का कारण बनते हैं।
लेकिन, यह पूरी तरह से साफ नहीं है कि ‘कर्क्युमिन’ कैंसर के खतरे में कमी लाता है या फिर इसके इलाज में सहायक साबित होता है। कुछ अध्ययनों में दावा किया गया है कि सिर या गले के कैंसर से जूझ रहे मरीज अगर हल्दी मिले पानी से गरारा करें, तो उन्हें रेडियोथेरेपी से होने वाले साइइइफेक्ट कम झेलने पड़ते हैं।
हल्दी एक दुर्लभ अनुवांशिक विकार ‘फैमिलियर एडिनोमेटस पॉलीपोसिस’ के शिकार मरीजों के लिए भी बेहद फायदेमंद साबित हो सकती है। एक क्लीनिकल परीक्षण में सामने आया था कि रोजाना एक चम्मच (120 मिलीग्राम) ‘कर्क्युमिन’ का सेवन करने से ‘फैमिलियर एडिनोमेटस पॉलीपोसिस’ से पीड़ित लोगों में कैंसर को जन्म देने वाले ‘पॉलिप’ (शरीर के आंतरिक अंगों की रक्षा करने वाली श्लेष्मल झिल्ली की सतह पर बनने वाली सूक्ष्म गांठें) का विकास काफी धीमा बढ़ जाता है।
क्या हल्दी वाकई असरदार है: हल्दी हमारे शरीर में काम करे, इसके लिए ‘कर्क्युमिन’ का आंत से निकलकर खून में घुलना बेहद जरूरी है। हालांकि, ‘कर्क्युमिन’ एक बड़ा यौगिक है, जो पानी में ज्यादा घुलनशील नहीं है। इसके चलते, यह खून में आसानी से नहीं घुल पाता। कुछ अध्ययनों में कहा गया है कि हल्दी आंत में मौजूद हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करके शरीर को लाभ पहुंचाती है, जिसके चलते इसका खून में घुलना जरूरी नहीं है।
लेकिन, यह बात इन्सानों के संबंध में भी लागू होती है या नहीं, इसकी पुष्टि के लिए और अध्ययन किए जाने की जरूरत है। इसके अलावा, यह पता लगाने की भी चुनौती है कि सेहत पर हल्दी के फायदे देखने के लिए कितनी मात्रा में इसका सेवन जरूरी है।
ज्यादातर अध्ययनों में सिर्फ ‘कर्क्युमिन’ के फायदे आंके गए हैं, जो हल्दी पाउडर का महज तीन फीसदी हिस्सा होता है। चूहों पर किए गए अध्ययनों में ‘कर्क्युमिन’ सिर्फ एक ग्राम से अधिक मात्रा में दिए जाने की सूरत में ही सेहत के लिए फायदेमंद मिला है। ऐसे में इन्सानों के संबंध में यह मात्रा कुछ किलोग्राम के आसपास बैठेगी। किसी व्यक्ति के लिए दिनभर में इतनी मात्रा में हल्दी का सेवन करना लगभग नामुमकिन है।
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Apurva Srivastav
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