लाइफ स्टाइल

भारत में बिरयानी की कैसे हुई शुरुआत, जानिए इसकी शुरुआत की कहानी और यह पुलाव से कितना है अलग?

Nilmani Pal
29 May 2021 2:22 PM GMT
भारत में बिरयानी की कैसे हुई शुरुआत, जानिए इसकी शुरुआत की कहानी और यह पुलाव से कितना है अलग?
x
पुलाव दुनिया ज़िक्र मध्य एशिया और हिन्दुस्तान में होता रहा है लेकिन बिरयानी का नहीं

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अगर मैं कहूं कि भारत की राष्ट्रीय डिश कौन सी है तो इस पर समन्वय नहीं बन पाएगा. लेकिन, कुछ पकवान ऐसे हैं जो देश के हर कौन में मिल जायेंगे और उनकी किस्म हर इलाक़े में अलग होगी. दाल चावल इन में से एक ऐसी चीज़ है, लेकिन उस में वो बात नहीं जिसको देख पर मुंह से पानी निकल जाए. लेकिन, अगर मैं बिरयानी का नाम लूं तो इस पर राजनीतिक बहस हो जाएगी. आजकल बिरयानी एक समुदाय से जोड़ कर देखी जाती है और माना जाता है कि बिरयानी बाहर से आयी है. जबकि सच ये है कि पुलाव दुनिया ज़िक्र मध्य एशिया और हिन्दुस्तान में होता रहा है लेकिन बिरयानी का नहीं.


आपको जानकार बड़ी हैरानी होगी कि बिरयानी शब्द का इस्तेमाल किसी भी मध्यकालीन किताब में नहीं होता है. यानी 19वीह शताब्दी में ही ये शब्द देश की आम भाषा में आया है. हिन्दुस्तान में कम से कम 50 से ज़्यादा किस्म की बिरयानी हैं और सभी की सभी इतनी ही हिन्दुस्तानी हैं जितना आम आलू. यानी बिरयानी जो आज है वो हिन्दुस्तानी रसोई का नतीजा है.-
जो शब्द मध्य एशिया से आता है वो है पुलाव या पलाव. इसी से ख्याली पुलाव और हमारे मरने के बाद क्या होगा, लोग रोएंगे और पुलाव खाएंगे जैसे मुहावरे निकले हैं. मध्य एशिया में पुलाव का मतलब था चावल, नमक , कटी गाजर और नमक. हिंदुस्तान आते आते ये पुलाव ज़्यादा खुशबुदार हुआ और इस में गरम मसाले भी शामिल हो गए. खाने पीने के जानकार और खाद्य इतिहासकार पुष्पेश पंत का कहना है कि ये कहना गलत नहीं होगा कि बिरयानी का मध्य कालीन भारत और प्राचीन भारत से कोई लेना देना नहीं था. यानी बिरयानी शब्द निमतनामा और आईने अकबरी में भी नहीं मिलता है. यानी मुग़ल साम्राज्य से बिरयानी नादारद थी. ना कभी इससे खिजियों ने खाया नहीं तुग़लक़ों ने.

महाभारत में भी है जिक्र
उनका कहना है की महाभारत तक में पुलाव का ज़िक्र है लेकिन बिरयानी शब्द एक बार नहीं आता है. उनका मानना है कि बिरयानी का ताल्लुक़ हैदराबाद के निज़ाम की रसोई से है. मुग़ल काल के बाद निज़ाम सबसे बड़ी और अमीर रियासत थी और वहां निज़ाम अपनी रसोई पर ख़ास ध्यान देते थे. माना जाता है कि वहीं से बिरयानी निकली जहाँ खाना बनाने की ईरानी पद्यति की शादी दक्खन में मिले वाले खान पान की चीज़ों से हुई. इसी को हम आज हैदरबादी खाने के नाम से जानते हैं. यहीं से पुलाव और बिरयानी दो अलग अलग पकवान हो गए.

पुष्पेश पंत का कहना है कि ये एक भ्रांति है कि बिरयानी ईरान से आयी. वहां बिरयान का मतलब है रूमाली रोटी पर गोश्त जबकि हिन्दुस्तान में बिरयानी का मतलब है चावल के साथ गोश्त. उनका कहना है कि बिरयानी शब्द पहली बार बिरिंज बिरयाँ से आता है जिसका मतलब होता है तला हुआ चावल. उनका ये भी कहना है कि हर गोश्त जो चावल के साथ पका होता है उसे बिरयानी नहीं कहते हैं.

क्या होती है बिरयानी?
पुलाव में भी चावल और गोश्त इस्तेमाल होता है लेकिन मध्य एशिया में पुलाव में फल, सूखा मेवा और बेर भी भी अलग से इस्तेमाल होता है. बिरयानी में मिलन केवल चावल और गोश्त का है लेकिन पुलाव तरह तरह से बन सकता है. वैसे मालाबार बिरयानी में मछली इस्तेमाल होती हैऔर हलकेअरबी मसाले पड़ते लेकिन फिर भी मछली और चावल अलग पकती है और बाद में दोनों को स्टीम किया जाता है.

पुष्पेश पंत कहते हैं की पुलाव और बिरयानी में सबसे बड़ा फ़र्क़ ये है कि पुलाव में चावल गोश्त का रस सोख लेता लेकिन बिरयानी में चावल पर फैट की परत होती है जिससे चावल और गोश्त का स्वाद अलग अलग आता है. वैसे बिरयानी भी दो तरह की होती हैं. कच्चे और पक्के गोश्त की बिरयानी. कच्चे गोश्त की बिरयानी में गोश्त को मैरीनेड करने के बाद चावल के साथ दम दिया जाता है. उधर पक्के गोश्त की बिरयानी में चावल और गोश्त को अलग अलग पका कर फिर परत बना कर साथ दम दिया जाता है.

बाजार में मिलती थी बिरयानी
पुष्पेश पंत का कहना है कि बिरयानी का जन्म सड़क पर इसलिए भी नहीं हो सकता है क्योंकि उसके पकाने की तकनीक ऐसी है जिसमें काफी वक़्त और नफासत की ज़रुरत होती है. इसलिए बिरयानी शुरू में घरों में नहीं बाज़ार में मिलती थी. यानी उसे पकाने में वक़्त लगता था. उस में वो चीज़ें पड़ती थी जो घर में इस्तेमाल नहीं होती थी. पुष्पेश पंत कहते हैं कि अच्छी बिरयानी में इत्र का इस्तेमाल भी होता है लेकिन ये सब चीज़ें घर में नहीं की जा सकती हैं.

बहरहाल, आज हिन्दुस्तान में बिरयानी हर जगह मिल जाएगी. चिकन की भी होगी, मछली की भी मटन की भी और सब्ज़ी की भी. लेकिनअसल में हिन्दुस्तान में बिरयानी बकरी के गोश्त के साथ शुरू हुई. लेकिन आज बिरयानी हर तरह से हिन्दुस्तानी पकवान हैं. मोटा मोटी हम कह सकते हैं कि बिरयानी एक ऐसा खाना है जो शुरू तो पुलाव से हुआ लेकिन उसका सफर अलग हो गया.

बिरयानी आज इस्लाम से जोड़ कर देखी जाती है लेकिन उसको खाने वाले हर धर्म के लोग हैं. बिरयानी उत्तर भारत या दक्षिण भारत नहीं बल्कि दक्खन की रसोई में तैयार हुई है. बिरयानी का इस्तेमाल राजनीति में हो रहा है लेकिन जो लोग कर रहे हैं उनको दस बार सोचना चाहिए क्योंकि जिस साबूदाने को सात्विक सोच कर व्रत तोड़ते है वो भी बाहर से आया था.



Next Story