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आंखों की देखभाल के लिए कुछ टिप्स दिए हैं जिन्हे अपना कर रख सकते हैं,अपनी आंखों की रोशनी सुरक्षित

Kajal Dubey
14 Oct 2021 9:31 AM GMT
आंखों की देखभाल के लिए कुछ टिप्स दिए हैं जिन्हे अपना कर रख सकते हैं,अपनी आंखों की रोशनी सुरक्षित
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आज विश्व दृष्टि दिवस यानी वर्ल्ड साइट डे है

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आज विश्व दृष्टि दिवस यानी वर्ल्ड साइट डे है. कोरोना काल में ऑनलाइन पढ़ाई, ऑनलाइन काम, ऑनलाइन मीटिंग, शॉपिंग और एंटरटेनमेंट समेत अन्य तौर तरीकों के कारण स्क्रीन को ज्यादा समय देने से आंखों के लिए रिस्क बढ़ा है. डब्ल्यूएचओ (WHO) ने आंखों के लिए बढ़ते रिस्क को देखते हुए इस बार की थीम 'लव योर आईज' (अपनी आंखों से प्यार करें) रखी है. इसका मकसद लोगों को यह बताना है कि वे अपनी आंखों को कैसे ठीक रखा जा सके और अपनी रोशनी सुरक्षित रख सकते हैं.आई स्पेशलिस्ट्स ने आंखों की देखभाल के लिए कुछ टिप्स दिए हैं.

कोरोना महामारी में ही ब्लैक फंगस आंखों के नए दुश्मन के रूप में सामने आया है. इसलिए डायबिटीज के मरीज या कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों को ज्यादा सतर्क रहने की जरूरत है. क्योंकि ब्लैक फंगस (म्यूकॉरमायकोसिस) ऐसे लोगों को अपना शिकार बनाकर आंखों पर हमला बोलता है. ब्लैक फंगस के 45,432 से अधिक मामले सामने आए हैं. जिनमें से 4200 से अधिक लोगों की जान गई, जबकि हजारों लोगों की जान बचाने के लिए डॉक्टरों को उनकी आंख तक निकालनी पड़ी है.
यूं दिखते हैं आंखों की बीमारी के लक्षण
आंखों में होने वाली तकलीफ को अगर समय रहते नहीं देखा गया तो ये गंभीर रूप ले सकती है. इसलिए आंखों की तकलीफ से जुड़े इन लक्षणों का ध्यान रखें. आंखों में दबाव, थकान महसूस होना, दूर या पास की चीज साफ न दिखाई देना, आंखों में सूखापन, कम रोशनी में दिखाई न देना, आंख में दर्द महसूस होना, धुंधला दिखाई देना, आंख में लालिमा और पानी आना, आंख में खुजली और जलन होना और एक ही चीज दो-दो दिखना खतरे के संकेत हैं.
क्या कहते हैं जानकार
इस न्यूज रिपोर्ट में नई दिल्ली के अखिल भारतीय आर्युविज्ञान संस्थान (AIIMS) कम्युनिटी ऑप्थैल्मोलॉजी (Community Ophthalmology) के ऑफिसर इंचार्ज डॉ. प्रवीण वशिष्ठ ने बताया है कि हमारे देश में लोग आंखों की तकलीफ को गंभीरता से नहीं लेते हैं. उनका कहना है कि 65 से 66 फीसदी लोगों की आंख की रोशनी जाने का कारण सफेद मोतियाबिंद होता है, जिसे टाला जा सकता है. डॉ वशिष्ठ ने कहा कि 40 सालों की स्टडी हमने पाया है कि शहरों में 100 में से 12 से 13 बच्चों को चश्मा लगाने की जरूरत पड़ रही है. वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में ये दर 8 फीसदी है. समय पर बच्चों की आंख की न तो जांच होती है और न ही चश्मा लगता है.
अच्छी डाइट और इलाज कारगर
डॉ विशिष्ठ का कहना है कि कॉर्नियल ब्लाइंडनेस (corneal blindness) का कारण आंख में गंभीर संक्रमण, चोट लगना या पोषक तत्त्वों की कमी से हो सकता है. इन मरीजों को नेत्र प्रत्यारोपण (eye transplant) से ही नई रोशनी मिल सकती है. देश में हर साल दो लाख नेत्रदान (eye donation) की जरूरत है. लेकिन 50 से 60 हजार नेत्रदान हर साल होते हैं. इसमें से 40 फीसदी ही प्रत्यारोपण लायक होती हैं. दुनिया में अल्प दृष्टि दोष यानी लो विजन (low vision) के 80 प्रतिशत मामले आते हैं, जिसे चश्मे से ठीक किया जा सकता है. हर साल करीब 50 हजार बच्चे जन्मजात दृष्टिहीन पैदा होते होते हैं. आंखों की तकलीफों को अच्छी डाइट और इलाज से ठीक किया जा सकता है. लेकिन काला मोतियाबिंद, ग्लूकोमा में नजर वापस नहीं आती है.
20-20-20 के फॉर्मूला है जरूरी
वहीं मुंबई के कोकिला बेन अस्पताल (Kokilaben Hospital) की नेत्र रोग विशेषज्ञ (Ophthalmologist) डॉ. श्रुति वासनिक बताती हैं, भारत में 18 साल से कम उम्र के 41 प्रतिशत बच्चों को विजन करेक्शन (नजर सुधार) की जरूरत होती है, पर माता-पिता इसे नजरअंदाज करते हैं. 42 फीसदी कर्मचारी और 45 फीसदी से अधिक बुजुर्ग नजर की तकलीफों को नजरअंदाज करते हैं.
डॉ. श्रुति बताती हैं कि कोरोना काल में स्क्रीन टाइम कई गुना बढ़ गया है. ऐसे में आंखों की सेहत के लिए हर किसी को 20-20-20 के फॉर्मूले को अपनाना चाहिए. कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल पर काम कर रहे हैं तो हर 20 मिनट पर उठें और बीस फुट दूर तक 20 सेकंड के लिए देखें. इससे आंखों पर पड़ने वाला दबाव कम होगा. आंखों में ड्राइनेस या जलन होती है तो आर्टिफिशियल टियर्स ड्रॉप लगा सकते हैं.
कोरोना में बढ़े आंखों के मरीज
जयपुर के सवाई मानसिंह कॉलेज के नेत्र रोग विभाग (ophthalmology department) के प्रो. किशोर कुमार बताते हैं कि स्क्रीनटाइम बढ़ने से आंखों के मरीजों की संख्या बढ़ी है. एक रिपोर्ट में महामारी में 27.5 करोड़ लोगों की नजर कमजोर होने की बात सामने आई है. जिनमें डायबिटीज के मरीज सर्वाधिक प्रभावित हैं. डॉ. किशोर के मुताबिक, 4 से 5 साल के बच्चे तकलीफ के बारे में नहीं बता पाते हैं. ऐसे में बच्चा बार-बार आंख मल रहा है, आंख में लालिमा है, पानी आ रहा है, किताब पास रखकर पढ़ रहा है या लिख रहा है, तो माता-पिता सतर्क हो जाएं


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