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By: divyahimachal
हिमाचल की सीमा पर पुन: खून की होली खेलता अपराध कई प्रश्न छोड़ गया और हम हाथ मलते रह गए। अज्ञात हमलावरों ने कांग्रेस नेता रविंद्र को गोलियों से भून दिया और ऊना जिला के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में चीखो-पुकार भर दी। जिन परिस्थितियों में यह वारदात हुई है, उसके सामने कानून-व्यवस्था की तमाम कमजोरियां इसलिए भी दर्ज हुईं क्योंकि कुछ समय पूर्व ही नालागढ़ की अदालत के बाहर एक गवाह पर इसी तरह के प्रहार का सदमा बिखर गया था। हैरानी यह कि न तब पुलिस इंतजाम पुख्ता दिखे और न ही अब ऊना की घटना में कानून-व्यवस्था के पहरे असरदार रहे। इसे पुलिस की शिथिलता क्यों न मानें कि अपराधी अब गोली-बारूद लेकर सरेआम निशाने ढूंढ रहे हैं। नालागढ़ में एक बड़े अपराध के सबूत मिटाने की कोशिश हुई, तो ऊना में एक सियासी पार्टी के नेता को क्रूर तरीके से हटाने का कारनामा अंजाम हुआ। ये दोनों घटनाएं अपराध की जघन्य श्रेणी में आती हैं। अभी हम ऊना की वारदात का कारण भले न चुन सकें, लेकिन ऐसे निशानों पर अगर अपराधी तत्त्व निरंकुश होकर कार्रवाई कर लें, तो हर कहानी राज्य से पूछेगी।
एक ऐसे प्रदेश की छवि के खिलाफ, जो कल तक अमन और शांति का दूत था, आज मौत के सन्नाटे में खुद पर तरस खा रहा है। हम पहले भी कहते आए हैं और पुन: दोहरा देते हैं कि प्रदेश में माफिया की जड़ें मजबूत होकर, अपराधीकरण की जद में सामाजिक ताने-बाने को नोच रही हैं। हम हर अपराध की वजह को छोटा मान लेते हैं, लेकिन यह तसदीक हो रहा है कि यहां संगठित रूप से आपराधिक तत्त्व सक्रिय हैं। इसी प्रदेश में नकली शराब से लोग मरते हैं और यह कारोबार बस्तियों के बीच जारी रहता है। यहां नशा धीरे-धीरे हमारे खून में भर रहा है, लेकिन इसकी शिनाख्त में प्रदेश कुछ सीख नहीं पाता। माफिया रेत-बजरी में घुस कर इतना छुपेरुस्तम हो गया कि आज इसकी लॉबी को कथित तौर पर राजनीतिक संरक्षण हासिल हो जाता है। पर्यटन उद्योग के भीतर काले साये, ट्रांसपोर्ट नेटवर्क में अपराध को ढोते मंसूबे और ठेकेदारी में प्रदेश के संसाधनों की लूट जब सीनाजोरी पर आ जाती है, तो अनियंत्रित प्रभाव से केवल दहशत पैदा हो सकती है। हम यह नहीं कह सकते कि रविंद्र की हत्या के पीछे कौनसे कारण रहे, लेकिन इस जंग में बहा खून बता रहा है कि कहीं न कहीं अपराध के कई पक्ष और साझेदारियां चल रही हैं। विडंबना यह है कि पुलिस की वीआईपी ड्यूटी बढ़ रही है, लेकिन सामान्य नागरिक की हिफाजत में नफरी कम पड़ रही है। ऐसे में शिमला में सजी-धजी पुलिस की वरिष्ठता में पदों के अंबार से कहीं ज्यादा जरूरी है कि प्रदेश के सीमांत क्षेत्रों में बढ़ते अपराध को समझते हुए पुलिस बल बढ़ाया जाए।
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पुलिस थानों की संख्या में बढ़ोतरी के बजाय कानून-व्यवस्था की चौकसी को स्तरोन्नत किया जाए। अगर कहीं ऊना की हत्या में राजनीतिक कारण दर्ज होता मिल गया, तो यह अंडरवल्र्ड की निशानी में अगला सफर होगा। इसी तरह औद्योगिकीकरण या भौतिकवादी प्रभाव से होती निजी तरक्की का दुराभाव आपसी रंजिश से घुल-मिल गया, तो हमारी तैयारी क्या होगी। दरअसल पुलिस का कौशल, तैयारी और जवाबदेही अब कई स्तरों पर करनी होगी। शिमला से बाहर कुछ बड़े पुलिस अधिकारियों के तहत बार्डर एरिया की सघन छानबीन तथा चौकसी इंतजाम बढ़ाने की जरूरत है। दिन और रात की पेट्रोलिंग को असरदार बनाने के साथ सूचना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल बढ़ाना होगा। पुलिस के लिए अलग से कॉडर समीक्षा तथा ट्रांसफर पालिसी बनाने की निहायत जरूरत है। किसी भी पुलिस कर्मी की अपने जिला या घर से पचास किलोमीटर से कम दूरी पर नियुक्ति नहीं होनी चाहिए। हिमाचल में पुलिस के साथ रिश्ते अब सांठगांठ का ऐसा अभिप्राय बन गए हैं, जहां रिपोर्टिंग की सामान्य प्रक्रिया भी सियासी दखल की गुलाम बन रही है।
Rani Sahu
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