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टायलेट ट्रेनिंग बच्चों की परवरिश का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है. अगर आपने बच्चों को सही समय पर यह ट्रेनिंग देनी नहीं शुरू की तो यह काम आपकी सोच से भी अधिक मुश्क़िल हो सकता है. आप अपनी सुविधा के अनुसार बच्चों की पॉटी ट्रेनिंग नहीं शुरू कर सकते, बजाय इसके इसे एक बड़े टास्क की तरह लें और भले ही कितना भी बोरियत भरा क्यों न लगे, इस ट्रेनिंग में हीलाहवाली न करें. आइए जानते हैं बच्चों को कैसे आप स्टेप-बाय-स्टेप टॉयलेट ट्रेनिंग दे सकते हैं.
कब करें इसकी शुरुआत?
आमतौर पर बच्चे डेढ़ से दो साल की उम्र में इस बात को समझने लगते हैं कि उन्हें टॉयलेट जाना है. जहां पहले वे कभी भी कहीं भी टॉयलेट कर देते थे, अब वे अपने पैरेंट्स को इशारे से बताने लगते हैं. हालांकि उन्हें इस उम्र में अपने आप टॉयलेट के लिए नहीं छोड़ सकते. अगले एक साल तक उनके इस काम में आपकी मदद बहुत ज़रूरी है. जब बच्चे तीन साल के हो जाते हैं, तब आप बेसिक टॉयलेट ट्रेनिंग शुरू कर सकते हैं. दरअस्ल तीन साल की उम्र तक बच्चे इशारों के बजाय अपने पैरेंट्स को सीधे-सीधे बताने लगते हैं कि उन्हें टॉयलेट जाना है. वे मल या मूत्र त्याग की प्राकृतिक इच्छा को कुछ सेकेंड्स तक कंट्रोल कर सकते हैं.
अब इसके लिए बच्चे को तैयार करें
आपने तो बच्चे के बताए संकेतों को पहचान लिया, अब ज़रूरी है बच्चे को भी इस ट्रेनिंग के लिए तैयार करना. इसके लिए आपको सबसे पहले उसकी क्लोदिंग पर काम करना होगा. उसे ऐसे पैंट्स या ट्राउशर्स पहनाना शुरू करें, जिसमें इलैस्टिक लगा हो. इससे बच्चे को टॉयलेट के लिए जाते समय पैंट्स निकालने में असानी होगी.
शुरू में बच्चों को घर के नॉर्मल कमोड में बैठने में दिक़्क़त आती है. इसके चलते भी बच्चे टॉयलेट जाने से आनाकानी करते हैं. ऐसे में आप उनके लिए पोर्टेबल कमोड ला सकते हैं. एक बार उनकी आदत पड़ जाए तो घर के मेन कमोड पर भी रिंग लगाकर बच्चों के बैठने लायक कस्टमाइज़ किया जा सकता है.
इसके अलावा आपको बच्चे के खानपान पर भी ख़ास ध्यान देना होगा. आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चा ठीक से खाए-पिए. जब बच्चा भरपेट खाएगा, पर्याप्त मात्रा में पानी पिएगा, तब वह ठीक से और समय पर वॉशरूम जाएगा. इस अच्छी आदत के लिए उसकी तारीफ़ भी करें. सच्ची तारीफ़ें कभी ख़ाली नहीं जातीं.
सबसे अहम् है समय निश्चित करना
बच्चों की टॉयलेट ट्रेनिंग के समय सबकुछ सही होने पर भी समस्या तब आती है, जब बच्चे कहते हैं उन्हें पॉटी आ ही नहीं रही. इसका कारण यह है कि पहले बच्चे कभी भी टॉयलेट कर लेते थे. पर ट्रेनिंग के दौरान आप उन्हें अपनी सुविधा के समय वॉशरूम जाने कहते हैं, तब उन्हें पॉटी आती नहीं. इसके लिए बहुत ज़रूरी है अपनी और बच्चे दोनों की ही सुविधा को दरकिनार करते हुए एक समय तय करना. आदर्श समय सुबह का समय होता है. बहुत संभव है शुरू के कुछ दिन उसे पॉटी न हो, पर आप टाइम पर स्टिक रहें. तीन-चार दिनों में उसे तय समय पर पॉटी आ ही जाएगी. सुबह के समय टॉयलेट से फ्री होकर वह हल्का और एनर्जेटिक भी महसूस करेगा.
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