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विसंगतियों के साथ आइए देखते हैं, गंगा के पानी में कितनी आस्था है
लाइफस्टाइल | कहीं ठहरे हुए गंदले पानी की तरह दिखती है, कहीं कलकल बहती है. कहीं पूजी जाती है, कहीं चढ़ावे में गंदे नाले पाती है. कहीं थकी, उदास और प्यासी नज़र आती है तो कहीं राह की सखियों से मिल फिर मुस्कुराती है. कहने को हम इसे मां कहते हैं, पर एक सीवेज लाइन समझते हैं... इन्हीं विसंगतियों के साथ आइए देखते हैं, गंगा के पानी में कितनी आस्था है, विकास की कितनी संभावनाएं और कितना प्रदूषण है?
गंगा यात्रा पर चलते हुए दर दर गंगे नामक किताब के सहलेखक अभय मिश्र ने दिए गंगा से जुड़े कई और सवाल उठाए और उनके जवाब भी दिए, जैसे-वर्ष 2012 में क्यों गंगा ने उत्तर काशी में धारण किया था रौद्र रूप? क्यों गंगा को कानपुर में लोग छूना भी नहीं चाहते? क्यों दफ़नाए जा रहे हैं गंगा की गोद में हिंदुओं के शव? क्यों गंगा से ग़ायब हो रही हैं डॉल्फ़िन और हिलसा मछलियां? क्यों फरक्का बांध साबित हो सकता है अगली बड़ी तबाही का कारण? क्यों यक़ीन नहीं होता गंगा को निर्मल बनाने के वादों पर?गंगा चाहे जिस रूप में हो, चाहे कितनी भी मैली क्यों न हो गई हो, अब भी हमारी आस्था का केंद्र है. तभी तो हम कभी यह नहीं सोचते कि जिस हर की पौड़ी में हम आस्था की डुबकी लगाते हैं, वो दिल्ली को पानी पिलानेवाली नहर है. संगम के जिस पवित्र जल में हम अपने पाप धोते हैं, वो यमुना के साथ आया मध्य प्रदेश की नदियों चंबल और बेतवा का पानी है. वर्ना 90% गंगा तो नरौरा में ही रोक ली गई है. आस्था के नाम पर, जहां एक ओर ऋषिकेश में घाटों के किनारे मूर्तियां रखकर अतिक्रमण किया जा रहा है, वहीं हरिद्वार में गंगा का पूरा व्यवसायीकरण हो गया है. वास्तव में गंगा आरती आस्था न होकर उत्पाद हो गई है, जिसे हर कोई बेचना चाहता है. नए-नए घाटों पर गंगा आरती का आयोजन होने लगा है. बनारस एक ऐसा शहर है, जहां सौ से अधिक घाट हैं. यहां के घाटों पर आस्था की इंद्रधनुषी आभा नज़र आती है. बावजूद इसके इन्हीं घाटों के बीच से कई नाले सीधे गंगा में गिरते हैं, जिनके साथ हर रोज़ 75 हज़ार करोड़ लीटर का सीवेज सीधे गंगा में मिल जाता है. इसके अलावा 3000 टन अधजला मांस, 6000 मरे हुए पशु गंगा में तैरते और सड़ते रहते हैं. इतना ही नहीं डेढ़ लाख लोग भी हैं, जो रोज़ाना बनारस की गंगा में अपना पाप धोने के लिए डुबकी लगाते हैं. सबसे अधिक दुख गंगा आरती के लिए मशहूर दशाश्वमेध घाट को देखकर होता है. जिस जगह रोज़ाना आरती होती है, ठीक उसी के नीचे एक नाला गंगा की गंदगी बढ़ाने का काम करता है! आस्था और विश्वास के नाम पर हम फूल-माला गंगा में प्रवाहित करते हैं. समझ नहीं आता, जब एक भगवान पर चढ़ा फूल दूसरे पर नहीं चढ़ाया जाता तो फिर आप उसे गंगा पर क्यों चढ़ा रहे हैं?
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