लाइफ स्टाइल

पांव पांव सिंदबाद ठांव ठांव यात्राएं

Rani Sahu
13 Sep 2022 6:56 PM GMT
पांव पांव सिंदबाद ठांव ठांव यात्राएं
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जिसे देखो, जहां देखो, जैसे देखो, जब देखो सब अपनी अपनी सहूलियत के हिसाब से, अपनी अपनी दिक्कतों के मनमाफिक अपनी अपनी यात्रा पर निकला हुआ है। कोई अपनी टूटती पीठ पर पीठ से भारी इच्छाओं, आकांक्षाओं का पी उठाए तो किसी को पी उठाए। कोई मरियल घोड़े पर बैठ मोक्ष की आह भरता तीर्थयात्रा पर निकला है तो कोई…यात्रा पर निकले कोई चलते चलते हाथ में ली रोटी खा रहा है तो कोई रोटी बजा रहा है। क्या शहर! क्या गांव! किसी के पांव में जूते हैं तो किसी के जूते में पांव। कोई इसके पांव के जूते अपने पांव में पहने है तो कोई उसके हिस्से के जूते अपने पांव में। कोई जूते घिसने के डर से अपने जूते उसके सिर उठाए यात्रा पर है तो कोई उनके जूते चुराए। यात्रा में किसी के हाथ में हथकंडे हैं तो किसी के हाथ में डंडे। यात्रा में किसी के हाथ में देशभक्ति के नाम पर खालिस धंधे हैं तो किसी के हाथ में नित बदलने वाले झंडे। ये जीवन एक यात्रा है। कोई आ रहा है तो कोई जा रहा है। कोई देश जोड़ो यात्रा कर रहा है तो कोई देश तोड़ो। कोई सिर फोड़ो यात्रा पर निकला है तो कोई कुर्सी मरोड़ो यात्रा पर। कोई जनसेवा के बहाने कुर्सी यात्रा पर है तो कोई…लीगल इलीगल इच्छाएं अनंत, यात्राएं अनंता! कोई महंगाई के खिलाफ महंगाई की पीठ थपथपाता जनता का पसीना पोंछते हुए यात्रा पर निकला है तो कोई दंगाई यात्रा में हो हल्ला किए गर्व से सिर ऊंचा किए है।
मतलब, कोई यहां कुछ करें या न करें, पर सब यात्रा जरूर कर रहे हैं। कुछ टिकट लेकर तो कुछ टिकट देकर। यहां नेता से लेकर अभिनेता और समर्थक से लेकर दर्शक तक सब यात्राएं कर रहे हैं। कोई सिंदबादी तो कोई रिंदवादी। कई इतने यात्रा प्रेमी होते हैं कि वे चारपाई पर सोए सोए भी यात्रा करते रहते हैं। जूते न पहने हों तो न सही, सोए सोए ही रुके पैरों से चलने का अभिनय करते रहते हैं। जिंदगी में उतना महान सच में काम करना नहीं होता जितना महान काम करने का अभिनय करना होता है। इसलिए समझदार लोग सच में काम कतई नहीं करते, पर काम करने का अभिनय पूरी शिद्दत से करते हैं। काम करने का अभिनय करते हुए उनके चेहरे पर इतना पसीना आ जाता है कि जितना सच में काम करने वालों के चेहरे पर नहीं आता। मेरे जैसे रोज सुबह घर से नौ बजे दफ्तर की यात्रा पर निकलते हैं बैग में शाम की दाल सब्जी पहले से ही तय लंच में लिए। ब्रेक फास्ट हो गया तो हो गया। परांठे के साथ चाय हो गई तो हो गई, खट्टा दही मिल गया तो मिल गया, वर्ना रगड़ दिए सूखे परांठे ही। नहा गए तो नहा गए। वर्ना मुंह पर पोंछा मारा आजू बाजू असली नकली खुशबू के दो चार फुस फुस किए और और फार्म फ्रेश हो लिए। सच कहूं जो बाजार में आज ये असली नकली खुशबुएं न होतीं तो मेरे जैसे पता नहीं कितने ही ऑफिस यात्रियों का बदन कुर्सियों पर बदबू मारा करता।
धन्य हो हे खुशबुओं का निर्माण करने वालो तुम! जो हम जैसे अनेकों की बदबू समाज की नाकों से छिपाए रखते हो। हे असली नकली खुशबू निर्माताओ! तुम्हारी असली नकली खुशबू दिन दुगनी रात चौगुनी तरक्की करे और मेरे जैसे अनंत बदबूदारों की तुम्हारे सहारे हर रोज ऑफिस यात्रा मंगलमय होती रहे, प्रभु से बस यही कामना! मेरे घर से मेरा दफ्तर बीस किलोमीटर दूर है। रोज रोज की मेरी इस यात्रा के पीछे रोटी का बवाल है, कपड़े का बवाल है, बच्चों की फीस का बवाल है, फ्लैट खरीदने पर लोन ली किश्तों का बवाल है। और भी कई और छोटे बड़े बवाल हैं जो मुझे यात्रा पर निकलने को प्रेरित करते हैं। या कि जो मुझे ऑफिस की यात्रा करने को विवश करते हैं। मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक तो मेरे जैसे बदबुनुमा खुशबुदारों की दौड़ ऑफिस तक।
अशोक गौतम
ashokgautam001@Ugmail.कॉम

By: divyahimachal

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