लाइफ स्टाइल

देश की पांच अनदेखी अनजानी घूमने की जगहें

Sanaj
6 Jun 2023 4:12 AM GMT
देश की पांच अनदेखी अनजानी घूमने की जगहें
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सफ़र उम्र का हो या रास्तों का, हम हज़ारों मर्तबा कही बातों
लाइफस्टाइल | यात्रा चाहे मन की हो या जीवन की, यात्रा चाहे मन की हो या जीवन की, सफ़र उम्र का हो या रास्तों का, हम हज़ारों मर्तबा कही बातों को ही दोहराते रहते हैं. हर बार वही देखकर संतुष्ट हो जाते हैं, जो सैकड़ों मर्तबा देखा, सुना, बताया गया है. जबकि आज भी हज़ारों रास्ते ऐसे हैं, जिन्हें इंतज़ार है हमारे क़दमों का. जो हमारी दृष्टि को एक नई दिशा दे सकते हैं और मन को एक नया बोध. तो आइए, चलते हैं इस बार एक ऐसे ही अनदेखे, अनजाने सफ़र पर जिसके रास्ते भी नए हैं और नज़ारे भी और खोजते हैं कुछ नई दिशाएं.

बिहार में दरभंगा मंडल के अंतर्गत एक शहर है मधुबनी, जिसने अपने नाम के अनुरूप ही अपने भीतर कला और संस्कृति का मधुवन बसाया हुआ है. मिथिला संस्कृति का द्विध्रुव माने जाने वाले इस शहर में यूं तो मैथिली और हिंदी बोली जाती है, लेकिन इसके पास रंगों की एक और भाषा भी है. जिसके सहारे यह आने वालों के मन पर कभी न भूली जा सकने वाली यादों की इबारत लिखता है. मधुबनी को मिथिला पेंटिंग और मखाना के पैदावार की वजह से विश्वभर में जाना जाता है. यह जानना रोचक है कि धरती पर रंगों से शगुन रचने की कला यानी रंगोली से शुरू होकर मिथिलाकला धीरे-धीरे कपड़ों, दीवारों और काग़ज़ों तक फैलती चली गई. आज यहां के कलाकार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना रहे हैं. मधुबनी के इतिहास की मुट्ठी में अगर बापू के आंदोलन में भाग लेने के क़िस्से हैं, तो भारत छोड़ो आंदोलन में शिरकत करने की कहानियां भी कम नहीं. लेकिन सौराथ के महादेव मंदिर, कोइलख के भद्रकाली मंदिर, बलिराज गढ़ की महिमा से लिपटा इसका वर्तमान भी पर्याप्त दर्शनीय है.

उत्तर में मालवा, मध्य क्षेत्र में विंध्यांचल रेंज और दक्षिण में नर्मदा घाटी. पश्चिमी मध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र में स्थित धार ऐतिहासिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण है. मध्यकाल में परमार वंश के राजा भोज द्वारा बसाए इस शहर में दूर-दूर तक पहाड़ियों, झीलों, हरे-भरे दरख़्तों की छांव नज़र आती है और नज़र आते हैं यहां-वहां बिखरे हिन्दू-मुस्लिम स्मारकों के अवशेष. समय किस तरह शेष होकर भी शेष नहीं होता, यह धार जाकर सहज ही अनुभव किया जा सकता है. कहते हैं कि 1857 में स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने धार के क़‌िले पर अपना कब्ज़ा कर लिया था और तब इसे बहुत राजनीतिक उठापटक का शिकार होना पड़ा था. लेकिन आज भी यहां प्राचीन क़‌िला, भोजशाला मंदिर, प्रसिद्ध जैन स्थल मोहन खेड़ा, बाग नदी के किनारे स्थित गुफाएं, 5वीं और 6वीं शताब्दी की चित्रकला के नमूने, बौद्धकला के शेषांश और मंदिर ही नहीं दूसरे कई ऐसे दर्शनीय स्थल हैं, जो सहज ही पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं.

को ही दोहराते रहते हैं. हर बार वही देखकर संतुष्ट हो जाते हैं, जो सैकड़ों मर्तबा देखा, सुना, बताया गया है. जबकि आज भी हज़ारों रास्ते ऐसे हैं, जिन्हें इंतज़ार है हमारे क़दमों का. जो हमारी दृष्टि को एक नई दिशा दे सकते हैं और मन को एक नया बोध. तो आइए, चलते हैं इस बार एक ऐसे ही अनदेखे, अनजाने सफ़र पर जिसके रास्ते भी नए हैं और नज़ारे भी और खोजते हैं कुछ नई दिशाएं.

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