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लॉकडाउन के बाद से लोगों में साइक्लिंग का क्रेज बढ़ा है. इस डूबती इंडस्ट्री ने एक बार फिर रफ़्तार पकड़ा. अधिकतर लोग इसे फ़िटनेस टूल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं पर कई शौक़िया तौरपर भी, जो सेहत और हमारे पर्यावरण के लिए बहुत अच्छा है. साथ ही ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए यह उनका पैशन है. वह मीलों-मील का रास्ता साइकिल से तय करते हैं. कोई शहर के चक्कर काटता है, कोई दो शहरों की दूरी नाप आता है, तो कोई दो राज्यों की, और कई ऐसे भी महान लोग हैं, जो दो देशों की दूरी भी साइकिल पर सवार होकर तय करते हैं. हालांकि आपको इतना नहीं करना है. आप बस शुरुआत करिए, दो किलोमीटर ही सही!
आज पूरे विश्व में पांचवां विश्व साइकिल दिवस मनाया जा रहा है. इस मौक़े पर साइक्लिंग के पैशनेट और कई प्रतियोगिताओं में भाग ले चुके अभिषेक बक्शी ने साइकिल चलाने की शुरुआत करनेवालों के लिए पांच ऐसे टिप्स और ट्रिक्स बताए हैं, जिन्हें हर बिगिर्न्स को फ़ॉलो करना चाहिए.
साइकिल के टायरों में सही दबाव के साथ हवा भरें
साइकिल के सही रखरखाव आपकी शुरुआत को सही दिशा देने का काम करेगी. साइकिल के टायरों में सही दबाव के साथ हवा भरें. आप पूछेंगे कि सही दबाव क्या होता है तो आपको बता दें कि सभी टायरों के किनारों पर कितने दबाव में हवा भरी जानी चाहिए, लिखा होता है. उसे देखें लें. इसके अलावा यदि आप बारिश के दिनों में या किसी फिसलन वाली जगह पर साइक्लिंग करने जा रहे हैं तो टायरों में तय सीमा से कम हवा भरें. अगर आप किसी सूखी जगह के लिए निकल रहे हैं तो उसे पूरा भर सकते हैं.
अपनी ऊंचाई के अनुसार सीट सेट करवाएं या करें
अगर साइकिल सीट बहुत नीचे रहेगी तो पैडलिंग रेंज और लेग पावर का इस्तेमाल कठिन हो जाएगा और अगर यह ऊपर रहेगी तो इससे आपके पैरों को बहुत स्ट्रेस झेलना पड़ेगा और इससे चोट भी लग सकती है. एक आदर्श सीट सेट करने का तरीक़ा है कि जब आप सीट पर बैठेंगे तो आपके पैरों में हल्का खिंचाव पैदा होगा. साइक्लिंग से किसी तरह की परेशानी नहीं होती है, लेकिन अगर आपको हो रही है तो किसी अच्छी साइकिल शॉप पर जाकर यह जांच लें कि क्या आपकी सेटिंग सही है.
सही आउटफ़िट्स का चुनाव करें
‘ग़लत मौसम जैसी कोई चीज़ नहीं होती है, सिर्फ़ हमारे आउटफ़िट्स का चुनाव ग़लत होता है’, साइक्लिंग के लिए यह कहावत बहुत पुरानी है. कई बार मौसम में बदलाव बहुत अनएक्सपेक्टेड तरीक़े से होता है ख़ासतौर से बारिश के मौसम में. इसलिए ऐसे कपड़े पहनें, जिससे आपको अधिक ना परेशानी हो. पैडेड सीट की जगह पैडेड साइक्लिंग शॉर्ट्स चुनें, यह अधिक कम्फ़र्टेबल होता है. शॉर्ट्स के नीचे अंडरवेयर पहनने से बचें, इससे आपको रैशेज़ हो सकते हैं. इसके साथ ही अच्छी साइक्लिंग के लिए सही ग्ल्वस, हेलमेट और नीकैप का भी चुनाव सही करें.
अपने आपको हाइड्रेटेड रखें
साइक्लिंग करते समय डिहाइड्रेशन या ऊर्जा की कमी महसूस होना आपको इसके प्रति निराशा से भर सकता है. इसलिए कुछ खाकर और अच्छे से पानी पीकर निकलें. इसके अलावा यदि आप 40 किमी से अधिक साइक्लिंग के बारे में सोच रहे हैं तो कम से कम दो लीटर पानी अपने साथ रखें. साथ ही केला, फ़्लैपजैक या जेली अपने साथ रखें, जो आपको रिफ़्यूल करने में मदद करेंगी. इसके अलावा आप इलेक्ट्रोलाइट पेय और प्रोटीन बार साथ रखें जो आपको क्रैम्प्स से बचाएंगे.
World cycling day
टूल, स्पेयर और कैश साथ रखें
साइकिल को ठीक करनेवाले कुछ बेसिक टूल अपने पास ज़रूर रखें, ताकि छोटी-मोटी परेशानी होने पर आप उसे ठीक कर सकें. इसके अलावा साथ में कैश लेना ना भूलें, यह आपको कई परेशानियों से बचाने का काम करेंगे.
इसके अलावा समय-समय साइकिल की कंडीशन चेक करवाते रहे़ राइडिंग के दौरान फ्रंट और रियर लाइट ब्लिंकर्स का इस्तेमाल ज़रूर करें. सड़क स्थिति और यातायात की जांच के बाद ही आगे बढ़ने की योजना बनाएं़ गूबल पर मैप खोल लें, ताकि आगे बढ़ने में आसानी हो़ अपनी प्रोग्रेस रिकॉर्ड करने के लिए एक अच्छी नेविगेशन स्मार्ट घड़ी भी ले लें और अपनी साइक्लिंग का लुत्फ़ उठाएं़
माइग्रेन को साधारण सिरदर्द नहीं माना जा सकता है. इससे प्रभावित व्यक्ति के सिर के एक या दोनों भागों में काफ़ी तेज़ और रुक-रुककर दर्द उठता है. यह दर्द कनपटी या आंख को भी अपने घेरे में ले लेता है. अमूमन यह तकलीफ़ 4 से 72 घंटे तक बनी रहती है. माइग्रेन किस वजह से होता है इसके बारे में कारण सही ढंग से पता नहीं चल पाया है, लेकिन प्राय: कुछ वजह से यह ट्रिगर्स होता, जिसकी पहचान भी बहुत कम है: जैसे शारीरिक दबाव, खानपान और सोने की आदतों में बदलाव, सेंसरी ओवरलोड आदि कुछ सामान्य ट्रिगर्स होते हैं, लेकिन सबसे आम कारण है स्ट्रेस यानि तनाव है. हालांकि स्ट्रेस मैनेजमेंट काफ़ी मुश्क़िल हो सकता है, लेकिन करना ज़रूरी होता है. इसके लिए आप अपने रूटीन में कुछ आसान बदलाव लाकर या फिर कुछ उपायों का पालन करके तनाव से बच सकते हैं, जिससे माइग्रेन से भी बचाव होता है. हम आपको कुछ ऐसे ही उपायों के बारे में बता रहे हैं–
एक्टिव लाइफ़ –हर दिन 30 मिनट सैर, व्यायाम या अन्य किसी भी प्रकार के शारीरिक व्यायाम ज़रूर करें. शारीरिक गतिविधि से आपके मस्तिष्क में न्यूरोट्रांसमिटर्स द्वारा एंडोरफिन्स पैदा होते हैं, जो कि कुदरती तौर पर दर्द निवारक (पेनकिलर्स) का काम करते हैं.
सही ढंग से नींद लेना–तनाव की वजह से आपकी नींद में बांधा पैदा होता है, जिसकी वजह से स्लीप पैटर्न गड़बड़ता है, जिसकी वजह से भी तनाव पैदा होता है. जब आप अच्छी नींद लेते हैं तो आपके शरीर को अगले दिन के लिए पूरा आराम मिलता है और वह ऊर्जावान बने रहते हैं. इसलिए हर दिन नियमित समय पर सोएं और उठें. सोते हुए अपने आसपास इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस न रखें. इसके साथ ही नींद की क्वालिटी काफ़ी हद तक आपके बिस्तर पर भी टिका होता है.
स्वास्थ्यवर्धक व संतुलित खानपान–सेहतमंद और संतुलित खानपान से आप तनाव से दूर रह सकते हैं. आप अपनी खुराक़ में ताज़े फल, सब्ज़ियां और साबुत अनाज शामिल करें. सही मात्रा और सही खानपान आपको तनाव से बचाने में सहायक होता है. ताज़े फलों- जैसे कि संतरे, एवोकाडो और ब्लूबेरी तथा ताज़ी सब्ज़ियों मैं शिमला मिर्च, आलू, गाजर, गोभी व सूखे मेवों में बादाम, पिस्ता आदि का सेवन करें. कुछ ख़ास तरह के फ़ूड और बेवेरेज़ जैसे कि शराब, कैफ़ीन आधारित ड्रिंक्स जैसे कॉफ़ी और ईस्ट युक्त बेक्ड खानपान सामग्री-जैसे सारडो ब्रेड, चॉकलेट, कल्चर्ड डेयरी प्रॉडक्ट्स जैसे योगर्ट आदि का सेवन न करना भी माइग्रेन से बचाव में कारगर होता है.
अपने माइग्रेन के बारे में जानकारी जुटाएं- आपको कब और किन कारणों से माइग्रेन हुआ, इसकी पहचान करने के लिए एक डायरी बनाएं जिसमें ट्रिगर्स आदि का ब्योरा रखें तथा अपने लिए कारगर उपचारों की लिस्ट भी बनाएं. इस डायरी में यह ज़रूर लिखें कि आपको कब माइग्रेन हुआ, उससे पहले आप क्या कर रहे थे और क्या करने से आपको दर्द से राहत मिली.
मस्तिष्क और शरीर को राहत देने के तरीक़े अपनाएं- रिलैक्सेशन जैसे योग, ध्यान और प्राणायाम आदि से स्ट्रेस एवं माइग्रेन में राहत मिलती है. इनसे आप अपनी पूरी सेहत का भी बेहतर ख़्याल रख सकते हैं. जब भी ख़ुद को दबाव में महसूस करें तो कुछ क्षणों के लिए रिलैक्सेशन तकनीकों का अभ्यास करें और इससे आप ख़ुद को तरोताज़ा महसूस करेंगे. सैर करें, अपनी मनपसंद किताब पढ़ें या गुनगुने पानी से स्नान करें.
धूम्रपान छोड़ें और शराब का सेवन सीमित रखें- प्राय: माइग्रेन को ट्रिगर करता है. यदि आप अल्कोहल का सेवन करते हैं तो इसकी मात्रा 1-2 ड्रिंक्स तक ही सीमित रखें. स्मोकिंग की वजह से भी कुछ लोगों को माइग्रेन होता है. इसलिए इसपर भी रोक लगाएं.
प्रोफ़ेशनल मदद लें- यदि आप स्ट्रेस और माइग्रेन से लगातार जूझ रहे हैं और इससे उबर नहीं पा रहे हैं तो समय रहते प्रोफेशनल मदद लेने लें. प्रोफेशनल थेरेपिस्ट आपको अपनी इससे उबरने में मदद दे सकते हैं. इसी तरह, एक्यूपंचर और मालिश आदि से भी तनाव एवं माइग्रेन में लाभ मिलता है. अपने डॉक्टर से सलाह लें और पता लगाएं कि ये थेरेपी आपके मामले में कारगर हो सकती हैं या नहीं.
यह लेख हेल्थ बिफोर वेल्थ की फ़ाउंडर सपना जयसिंह पटेल के इनपूट्स पर आधारित है.
स्वस्थ्य जीवन जीने के लिए पोषण और व्यायाम के बाद तीसरी सबसे ज़रूरी चीज़ है अच्छी नींद! मानसिक और शारीरिक तौर पर आपको पूरी तरह स्वस्थ रखने और भावनात्मक रूप से अच्छा महसूस करने में सुखद अनुभूति के साथ अच्छी नींद बड़ी भूमिका निभाती है. असल में नींद शरीर के उपचार तंत्र के लिए भोजन की तरह है और एक अच्छा मैट्रेस वास्तव में आपके सोने के तरीक़े में सकारात्मक बदलाव ला सकता है. बीते कुछ वर्षों से हम कोविड महामारी का सामना कर रहे हैं और ऐसे चुनौतीपूर्ण दौर में 40 फ़ीसदी से भी ज़्यादा लोग नींद संबंधी परेशानियों से पीड़ित हैं. ग़लत तरीक़े से सोना इसमें शामिल है. कोविड-19 के दौरान नींद की समस्याओं ने लोगों के मानसिक स्वास्थ्य को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है. सही नींद के लिए कई ज़रूरी वस्तुओं में एक मैट्रेस भी आता है, जिससे आपकी पीठ को सहारा मिलता है और आपको कई तरह के दर्द से भी निज़ात मिलती है.
बाजार में अपने लिए सबसे अच्छे मैट्रेस तलाशते समय यह समझना काफ़ी अहमियत रखता है कि आपका शरीर किस तरह का है और आप किस मुद्रा में सोते हैं. अच्छा मैट्रेस वो होता है, जो आपके शारीरिक बनावट को सपोर्ट करते हुए आपकी पीठ के कुदरती कर्व्स के साथ तालमेल बिठाते हुए सही स्पाइनल अलायनमेंट को प्रमोट करे. ज़्यादातर लोग पीठ के बल सोते हैं, एक तरफ़ करवट लेकर सोते (साइड स्लीपर) हैं, पेट के बल सोते हैं या फिर थोड़े-थोड़े समय के लिए इन तीनों मुद्राओं में नींद पूरी करते हैं. पीठ के बल सोने वालों को स्पाइन स्लीपर भी कहा जाता है. इस तरह सोने पर रीढ़ की हडि्डयों पर घंटों काफ़ी दबाव बना रहता है. इसके चलते ऐसे लोग पीठ दर्द के शिकार हो जाते हैं. लेकिन यदि बिस्तर की सतह में ज़रूरत भर कड़ापन हो तो इससे कंधों और पीठ के निचले हिस्से में अनावश्यक तनाव कम या ख़त्म हो सकता है. याद रखें कि जहां पीठ के बल सोने वालों को सपोर्ट की ज़रूरत होती है, वहीं साइड स्लीपर के कंधों और कुल्हों को प्रेशर रिलीफ़ की दरकार होती है. इसका मतलब है कि ऐसे लोग आम तौर पर ऐसे नरम मैट्रेस चाहेंगे जो शरीर के कुदरती कर्व्स को सपोर्ट करे. पेट के बल सोने वाले लोगों का वज़न आमतौर पर सामान्य से ज़्यादा होता है. इसका मतलब यह है कि वे खासतौर पर थोड़ा सख़्त मैट्रेस के शौक़ीन नहीं होंगे, बल्कि सॉफ़्टनेस और सख़्त क्वालिटी के बीच संतुलन वाला मैट्रेस चाहेंगे, ताकि शरीर को मध्यम स्तर का सपोर्ट मिल सके.
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करवट लेकर सोने से कंधे और गर्दन में दर्द हो सकता है या पहले से दर्द हो तो बढ़ सकता है. इसके चलते मांसपेशियों का संतुलन बिगड़ सकता है. ऐसे लोग यदि जागते ही शरीर में दर्द का तकलीफ़ नहीं उठाना चाहते हैं तो उन्हें अपनी गर्दन और कंधों के अलायनमेंट का खयाल रखना चाहिए.
पीठ के निचले हिस्से में दर्द से बचने के लिए इको-फ्रेंडली और ऑर्गेनिक मैट्रेस सबसे अच्छे होते हैं. इसका एक कारण यह है कि उनके लेटेक्स शरीर का ख़्याल रखने में सक्षम होते हैं. यह लचीलापन प्रेशर पॉइंट और पीठदर्द से आराम दिलाने में मददगार साबित हो सकता है और आप अच्छी नींद ले पाएंगे. वास्तव में कई काइरोप्रैक्टर्स और ऑर्थोपेडिक विशेषज्ञ पीठ या गर्दन के दर्द से पीड़ित रोगियों को ऐसे मैट्रेस पर सोने की सलाह देते हैं.
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यदि आप गर्दन के दर्द से पीड़ित हैं तो बेहतर होगा कि एक तरफ़ करवट लेकर या पीठ के बल सोएं. ऐसा करते समय सिर के नीचे चपटा तकिया और गर्दन के नीचे गोल तकिया इस्तेमाल करें.
गर्दन का दर्द कम करने के लिए फेदर पिलो भी अच्छा विकल्प साबित हो सकता है. आप सर्वाइकल मेमोरी फोम पिलो इस्तेमाल करने पर भी विचार कर सकते हैं, जिसे गर्दन की ख़ास बनावट और उसकी ज़रूरतों के अनुरूप डिज़ाइन किया जाता है. गर्दन के दर्द से आराम के लिए तकिया ख़रीद रहे हों तो ध्यान रखें कि वह बहुत कठोर या ज्यादा ऊंचा न हो. ऐसा न होने पर सोते वक़्त आपकी गर्दन ग़लत पोज़िशन में होगी. नतीजन सुबह जागने पर आपको दर्द हो सकता है.
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वैसे तो सोने के लिए सही मैट्रेस का चयन सभी के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है; लेकिन जो लोग करवट लेकर सोने के आदि हों, उनके लिए इसकी ख़ास अहमियत होती है, क्योंकि इस तरह सोने पर आपके शरीर का सारा भार एक ही हिस्से को उठाना पड़ता है. सबसे अच्छा यह होगा कि मैट्रेस ज़्यादा सख़्त या ज़्यादा नरम न हो. संतुलन ज़रूरी है. मध्यम कठोरता वाला मैट्रेस शरीर के वज़नदार हिस्से को सपोर्ट करता है और वह भी कुल्हों और कंधों पर दबाव बनाए बगैर.
यदि आप एक तरफ करवट लेकर सोते हैं तो आपने गौर किया होगा कि एक साधारण तकिए की मदद से सिर को सीढ़ के साथ अलाइन करना मुश्क़िल होता है. इस परेशानी से बचने का आसान तरीक़ा यह है कि दो तकिए या मोटा चिकित्सकीय तकिए का इस्तेमाल करें. इससे रीढ़ के साथ सिर का सही तरीक़े से अलायनमेंट को सकेगा.
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